Holika Dahan

!! Holika Dahan: होलिका दहन क्यों मनाया जाता है, जानिए प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप पौराणिक कथा !!

होली हिंदू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण स्थान है, होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धूलि और धुलंडी भी कहा जाता है।

होलिका दहन (Holika Dahan) क्यों मनाया जाता है:-

होली हिंदू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण स्थान है, होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलंडी, धुलेंडी और धूलि भी कहा जाता है। कई अन्य हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। लोग पेड़ो की सूखी टहनियांनही और पत्ते जुटाने लगते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत दृढ़ इच्छा शक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतिक के रूप में यह पर्व मनाया जाता है।

कब होता होलिका दहन (Holika Dahan):-

होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का समय चुना जाता है, जिसमें भद्रा का साया नहीं हो. ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन करने से पहले होलिका की पूजा करने से आपके मन से सभी प्रकार के भय दूर होते हैं और ग्रहों के अशुभ प्रभाव में भी राहत मिलती है। होलिका की पूजा में ही यह कथा भी पढ़े जाने का चलन काफी समय से चला आ रहा है।

Holika Dahan: क्या है होलिका दहन, हिंदू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण स्थान है, होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धूलि और धुलंडी भी कहा जाता है।

क्या है – होलिका दहन की पौराणिक कथा:-

होलिका दहन का पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित कहानी है प्रहलाद, होलिका और हिरण्य कश्यप की कहानी। राक्षस हिरण्य कश्यप का पुत्र प्रहलाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। वहीं, हिरण्य कश्यप भगवान नारायण यानी की विष्णु को अपना घोर शत्रु मानता था। पिता के कई बर मना करने के बावजूद प्रहलाद विष्णु की भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्य कश्यप ने कई बार अपने पुत्र को मारने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। हिरण्य कश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती। उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रहलाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठेगी, वह प्रहलाद को लेकर जलती चिता पर बैठी, पर भगवान विष्णु की ऐसी माया कि होलिका पुरी तरहा जल गई, जबकि प्रहलाद को तनिक भी आंच नहीं आई।

क्या है – होलिका दहन से जुड़ी एक कहानी:-

होलिका दहन से जुड़ी एक पौराणिक कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। श्री राम के पूर्वज रघु, के राज में एक असुर नारी थी। वह नगर वासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करती। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि उसने वरदान का कवच पहन रखा था। उसे सिर्फ बच्चों से डर लगता। एक दिन गुरु वशिष्ठ ने बताया कि उस राक्षसी को मारने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे नगर के बाहर लकड़ी और घास के ढेर में आग लगाकर उसके चारों ओर नृत्य करें, तो उसकी मौत हो जाएगी। फिर ऐसा ही किया गया और राक्षसी की मौत के बाद उस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।

 

.होलिका दहन पर नरसिंह मंत्र-

नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद दायिने

हिरण्यकशिपोर्वक्षः शिला-टङ्क-नखालये

इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो

यतो यतो यामि ततो नृसिंहः

बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो

नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये 

 

Note:

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By : KP

Edited  by : KP

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