Interesting Facts :  श्री रामकृष्‍ण परमहंस ने बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के एक प्रमुख संत और सिद्ध योगी के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई। उनका जन्म बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गांव में हुआ था। 16 अगस्त 1886 को उनकी मृत्य हो गई। उनके पिता का नाम खुदीराम चटोपाध्याय था। तो चलिए अब, जानते हैं उनके जीवन के अद्भुत राज।

1. स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद के गुरु, वास्तव में एक अदबुध पुरुष थे। उन्हें अनेक विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थीं, जो हिंदू धर्म में परमहंस के योग्यता को साबित करती हैं।

2. उन्होंने अपना पूरा जीवन साधना और तपस्या में व्यतीत किया। रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, और इस्लाम जैसे विभिन्न मतों के अनुसार साधना की।

3. रामकृष्ण परमहंस के दिल में माता काली का अत्यंत भक्तिभाव था। उनके लिए हर जगह सिर्फ मां काली ही थी, और वे उनसे नित प्रतिदिन बातें किया करते थे।

4. रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी महाराज ने उनसे कहा कि कालिका तुम्हारे अंदर ही निवास करती है, मूर्ति में नहीं। तुम्हें इस भ्रम को छोड़कर ज्ञान की ऊँचाई पर पहुँचने के लिए आगे बढ़ना होगा।

5. स्वामी विवेकानंद अपनी अनगिनत जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण परमहंस की महिमा सुनकर नरेंद्र उनके पास तर्क करने के इरादे से पहुंचे, लेकिन परमहंसजी ने उन्हें तुरंत पहचान लिया और उन्हें अपने लिए चुना। उनके द्वारा प्राप्त आत्म-साक्षात्कार ने नरेंद्र को परमहंसजी के मुख्य शिष्य में बना दिया। रामकृष्ण के गहरे और रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन पूरी तरह से परिवर्तित हो गया। 1881 में उन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु माना, और संन्यास लेने के बाद उनका नाम विवेकानंद हुआ।

6. स्वामी रामकृष्ण परमहंस का असली नाम गदाधर चटोपाध्याय था, जो कि उनकी पूर्व जीवन की एक अहम पहचान थी।”

रामकृष्‍ण परमहंस के अदभुद राज

7. रामकृष्‍ण परमहंस ने शारदादेवी से विवाह किया था। उनकी पत्नी पहले उन्हें पागल समझती थी, लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि यह व्यक्ति तो एक ज्ञानी और सिद्ध है। रामकृष्‍ण परमहंस अपनी पत्नी को मां कहते थे, जो उम्र में उनसे बहुत छोटी थी।

रामकृष्‍ण परमहंस
8. रामकृष्‍ण के संपर्क में आने के बाद, महान दार्शनिक, समाज सुधारक और साहित्यकार ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जीवन नई दिशा में मुड़ गया।

9. किसी बार रामकृष्‍ण परमहंस जी सखी संप्रदाय की साधना करते समय, उनका चरित्र स्त्रीजैसा हो गया था, और कहते हैं कि इससे उनके शरीर में भी बदलाव आ गया था।

10. एक बार रामकृष्‍ण परमहंस हुगली नदी के किनारे बैठे थे, तभी वे अचानक चिल्लाने लगे कि ‘मुझे मत मारो!’। इससे चौंककर आसपास के लोग हैरान हो गए, क्योंकि किसी ने भी उन्हें हमला नहीं किया था, फिर भी उनके शरीर पर कोड़े के निशान दिखाई दिए। बाद में पता चला कि उनका यह दर्द उन्होंने नदी के दूसरी ओर गरीबों के साथी के दर्द को महसूस किया था, जो कोड़े से पीटा जा रहा था।

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