History of Mahakumbh Mela : महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपराओं का गहरा प्रतीक है। इस मेले का महत्व करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, जो हर बार इसके आयोजन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस वर्ष, 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में होने जा रहा है, और यह मेला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ का आयोजन हो रहा है।
महाकुंभ का इतिहास
महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है, लेकिन जब यह पूर्ण महाकुंभ होता है, तो यह 144 साल के अंतराल पर आता है। महाकुंभ का इतिहास बहुत पुराना है और यह कई रहस्यों से भरा हुआ है, जो हमारे धार्मिक ग्रंथों में समाहित हैं। आइए, जानते हैं महाकुंभ के इतिहास और इसके रहस्यों के बारे में।
महाकुंभ का प्रारंभ कब और कहां हुआ था?
महाकुंभ के आयोजन का संदर्भ कुछ पुराणों में मिलता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसका पहला आयोजन कब और कहां हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह आयोजन सतयुग से ही होता आ रहा है। हालांकि, इस पर विस्तार से जानकारी नहीं मिलती।
महाकुंभ का इतिहास कितना पुराना है?
कुछ ग्रंथों के अनुसार, कुंभ मेला 850 साल से भी पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने महाकुंभ की शुरुआत की थी। कुछ कहानियों में यह भी कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद कुंभ मेला आयोजित होने लगा था। वहीं कुछ विद्वान मानते हैं कि यह आयोजन गुप्त काल में शुरू हुआ था, लेकिन राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में इसके प्रमाण स्पष्ट रूप से मिलते हैं।
कुंभ मेला आयोजन की मान्यता
कुंभ मेले के आयोजन को लेकर एक ऐतिहासिक संदर्भ चीनी यात्री ह्वेनसांग से मिलता है, जिन्होंने अपनी यात्रा के दौरान इस मेले का उल्लेख किया था। उन्होंने राजा हर्षवर्धन के बारे में भी लिखा था कि वह हर पांच साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा धार्मिक आयोजन करते थे, जिसमें वह अपनी सारी संपत्ति गरीबों और धार्मिक लोगों को दान में दे दिया करते थे।
महाकुंभ न केवल एक धार्मिक मेला है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर भी है, जो समय के साथ और भी समृद्ध हुआ है।