MSP पर कानून बनने के क्या होगा नुकसान? – जानें विस्तार से… what-will-be-the-harm-if-msp-law-is-made

MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम सर्मथन मूल्य भारत सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की एक प्रकार की गारंटी होती है। राशन प्रणाली (सिस्टम) के तहत जरूरतमंद लोगों को अनाज मुहैया कराने के लिए इस MSP पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है। अगर कभी फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर या कम भी हो जाती है, तब भी केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके।

MSP पर कानून

 

MSP पर कानून बनने के नुकसान 

जबरन खरीद (Forced Purchase): 

  • सरकार को MSP पर सभी उपज वा फ़सल खरीदने का आदेश देने से अत्यधिक उत्पादन हो सकता है, जिससे संसाधनों वा अनाज की बर्बादी और भंडारण की समस्या हो सकती है।
  • यह फसल चक्र को भी   प्रभाव प्रभावित कर सकता है (can also affect crop rotation) क्योंकि किसान अन्य फसलों की तुलना में MSP वाली फसलों को किसान प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे जैव विविधता और मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
  • यदि सरकार को उपज वा फ़सल खरीदनी पड़ती है क्योंकि MSP की पेशकश करने वाला कोई खरीददार नहीं है, तो उसके पास बड़ी मात्रा में भंडारण करने और बेचने के लिये संसाधन नहीं हैं।

किसानों का आपसी भेदभाव (Discrimination Among Farmers): 

ऐसे में MSP कानून समर्थित फसलें उगाने वाले किसानों और अन्य फसलें को उगाने वाले किसानों के बीच असमानता यानी कि भेदभाव पैदा कर सकता है।

बिना समर्थन वाली फसलें उगाने वाले किसानों को बाज़ार पहुँच और सरकारी समर्थन के मामले में नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

व्यापारियों का दबाव (Pressure From Traders):

फसल कि कटाई के दौरान, कृषि उपज की कीमतें आमतौर पर सबसे कम होती हैं, जिससे निजी व्यापारियों को फायदा होता है जो इस समय खरीदारी करते हैं। इस वजह से, निजी व्यापारी MSP के किसी भी कानूनी आश्वासन का विरोध करते हैं।

वित्तीय बोझ (financial burden):

सभी फसलों को MSP पर खरीदने की बाध्यता व दबाव के कारण बकाया भुगतान और राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

सामाजिक निहितार्थ (Societal Implications): 

ख़राब फसल चक्र और अत्यधिक खरीद के व्यापक सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं, जो खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता तथा समग्र आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।

विश्व व्यापार संगठन के साथ सदस्यता से बाहर  होना (World Trade Organization – WTO) 

MSP पर कनून बनने से WTO से सदस्यता छोड़नी पड़ेगी, WTO के सदस्य होने के करण WTO के माध्यम से अंतर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापर अन्य देशों के साथ किया जाता है,  जैसे कि इनपोर्ट और एक्सपोर्ट, WTO के सदस्य होने के करण वस्तु वा पेट्रोल आदि हमे सस्ते वा सब्सिडी पर मिलती हैं, अगर हमने WTO से सदस्यता ना रहने के करण भारत को नुकसान उठाना पड़ेगा।

MSP देने पर सरकार को 10 लाख करोड़ का भार

वित्त वर्ष 2020 के लिए, कुल MSP खरीद 2.5 लाख करोड़ रुपए, यानी कुल कृषि उपज का 6.25 फीसदी और MSP के तहत उपज का लगभग 25 फीसदी है. अगर MSP गारंटी कानून लाया जाता है, तो सरकार पर कम से कम हर साल 10 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा. खास बात तो ये है कि यह रकम केंद्र सरकार के उस कैपिटल एक्सपेंडिचर के बराबर है, जो कि देश के इंफ्रा (बुनियादी ढांचे) पर खर्च होना है. बीते 7 साल में सरकार ने औसतन 10 लाख करोड़ रुपए हर साल इंफ्रा यानी कि बुनियादी ढांचे पर भी खर्च नहीं किया है. साल 2016 से 2013 के बीच इंफ्रा (बुनियादी ढांचे) पर कुल खर्च 67 लाख करोड रुपए है. इसका मतलब साफ है कि यूनिवर्सल SMP डिमांड का कोई इकोनॉमिक और फिस्कल मतलब नहीं है. यह एक राजनीति से प्रेरित तर्क है जिसमें की सरकार ने अपने बीते 10 सालों में रिकॉर्ड वेलफेयर स्कीम का ऐलान किया है.

कहां से आएगा 10 लाख करोड़?

अगर किसानों का तर्क वा शर्तें मान भी लिया जाए और इस बात पर भी सहमति हो जाए कि सरकार पूरा पैसा वहन करेगी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि 

ये 10 लाख करोड़ रुपए आएगा कहां से? 

क्या देश बुनियादी ढांचे और डिफेंस से सरकारी खर्च को कम करने के पक्ष में होगा?

क्या डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष )को बढ़ाने के पक्ष में कोई है या होगा? 

 

ऐसे में समस्या कृषि या आर्थिक नहीं है. यह पूरा मामला राजनति से प्रेरित है. जिसे 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उठाने का प्रयास वा कोशिश किया जा रहा है. ताकि इन चुनावों को किसी भी तरीके से प्रभावित किया जा सके. 

सालाना 10 लाख करोड़ रुपए का बजट देश की इकोनॉमिक (अर्थव्यवस्था) की रफ्तार को पटरी से उतार सकता है. जो मौजूदा समय में दुनिया के किसी भी बड़े देश के मुकाबले सबसे तेज है. और अंत मे MSP का सारा बोझ उपभोक्त पर पड़ेगा जिसकी कीमत फ़सल व अनाज की ऊची कीमत देनी पड़ेगी और पहले के मुकाबले और अधीक कर वा टैक्स देना पड़ सकत है, MSP पर कानून बनाने से सिर्फ 6 ℅ किसान को इसका लाभ मिलेगा, लेकिन इसका नुकसान पुरा भारत को अधिक कीमत दे कर चुकानी पड़ेगी! 

 

Note:

|| मुझे उम्मीद है की आपको यह आर्टिकल (आलेख ), लेख “MSP पर कानून बनने के क्या होगा नुकसान? – जानें विस्तार से… what-will-be-the-harm-if-msp-law-is-made” जरुर पसंद आई होगी। हमारी हमेशा से यही कोशिश रहती है की रीडर को पूरी सही जानकारी प्रदान की जाये।

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By: KP

Edited  by: KP

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