AVN News Desk New Delhi: पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की ( 24 जनवरी) बुधवार को होने वाली 100वीं जन्म जयंती से पहले उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया है.
केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का आज ऐलान किया गया है. इस संबंध में राष्ट्रपति भवन की ओर से एक बयान भी जारी कर ये जानकारी दी गई.
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारत सरकार को बताते हुए बहुत ही गर्व हो रहा है कि देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिवंगत कर्पूरी ठाकुर को दिया जा रहा है. वह भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के पुरोधा और एक प्रेरणादायक शख्सियत थे. यह सम्मान समाज के वंचित वर्ग के उत्थान में कर्पूरी ठाकुर के जीवनभर के योगदान और सामाजिक न्याय के प्रति उनके अथक प्रयासों को एक श्रद्धांजलि है.
पूर्व मुख्य्मंत्री कर्पूरी ठाकुर की बुधवार को होने वाली 100वीं जन्म जयंती से पहले उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया है. जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग की थी. इस ऐलान के बाद से ही जेडीयू ने मोदी सरकार का आभार जताया है.
’36 साल की तपस्या का आज फल मिला’
पूर्व मुख्य्मंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा है कि हमें 36 साल की तपस्या का आज फल मिला है. मैं अपने परिवार और बिहार के तमाम 15 करोड़ो लोगों की तरफ से सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूं.

कौन थे पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर?
कर्पूरी ठाकुर जी का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. पटना से 1940 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की और स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी तरह से कूद पड़े थे. कर्पूरी ठाकुर जी ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ चलना बहुत पसंद किया. इसके बाद ही उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था. इसके चलते उन्हें काफी समय जेल में भी रहना पड़ा था.
साल 1945 में जेल से बाहर आने के बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का एक चेहरा बन गए, जिसका मकसद अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर पनपे जातीय व सामाजिक भेदभाव को दूर करने का था ताकि दलित, पिछड़े और वंचित वर्ग को भी एक सम्मान की जिंदगी जीने का हक मिल सके.

1952 में पहली बार बने थे विधायक
कर्पूरी ठाकुर जी 1952 में ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर पहली बार विधायक बने थे. 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी एक बड़ी ताकत बन कर उभरी थी, जिसका नतीजा था कि बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी थी.
महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने तो कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्हें शिक्षा मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था. कर्पूरी ठाकुर जी ने शिक्षा मंत्री रहते हुए छात्रों की फीस खत्म कर दी थी और अंग्रेजी की अनिवार्यता को भी खत्म कर दी थी. कुछ समय बाद बिहार की राजनीति ने एक ऐसी करवट ली कि कर्पूरी ठाकुर बिहार मुख्यमंत्री बन गए. इस दौरान वो छह महीने तक सत्ता में रहे थे. उन्होंने उन खेतों पर मालगुजारी यानी खेतों पर टैक्स खत्म कर दी, जिनसे किसानों को कोई मुनाफा नहीं होता था, साथ ही 5 एकड़ से कम जोत पर मालगुजारी खत्म कर दी गई और साथ ही उर्दू को राज्य की भाषा का दर्जा दे दिया था. इसके बाद ही उनकी राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और कर्पूरी ठाकुर बिहार की सियासत में समाजवाद का एक बहुत बड़ा चेहरा बन गए.
उन्होंने मंडल आंदोलन से भी पहले मुख्यमंत्री रहते हुए पिछड़ों को 27 फीसदी का आरक्षण दिया था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे.
कर्पूरी ठाकुर के शागिर्द हैं लालू प्रसाद यादव-नीतीश कुमार
बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए।