“एक नासमझ इश्क” ek naasamajh ishq
बिहार के “पटना जंक्शन” से दिल्ली की ओर जाने वाली मेंने एक ट्रेन पकड़ी..
उस ट्रेन के स्लिपर कम्पार्टमेंट में, मेरी सामने वाली सीट पर बैठी “एक लड़की” ने मुझसे कहां..
“हैलो सर और पूछा..
क्या आपके पास मोबाइल सिम निकालने वाली पिन है क्या?..”
लड़की ने अपने बैग से एक फोन निकाला और वो नया सिम कार्ड उस फ़ोन मे डालना चाहती थी। लेकिन, सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है, जो उसके पास नहीं थी।
मैंने “हाँ” में अपना गर्दन हिलाई और अपने वॉलेट से पिन निकालकर उस लड़की को दे दी। लड़की ने “थैंक्स” कहते हुए पिन ले ली और वो, अपने मोबाइल में सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी।
कुछ देर बाद, वो लड़की फिर से इधर उधर देखने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. और मैंने उनसे से पूछ लिया कि “कोई परेशानी हैं क्या?”
वो लड़की बोली.. ये सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने उनसे मोबाइल मांगा, उसने दिया..।
मैंने उनसे कहा.. सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। सिम एक्टिव होने के बाद “आईडी वेरिफिकेशन” होगा, उसके बाद ही आप ये सिम इस्तेमाल कर सकेंगी।
लड़की ने पूछा, “आईडी वेरिफिकेशन” वो क्यों?
मैंने कहा.. “अब वेरिफिकेशन के बाद ही सिम एक्टिव होती है, जिसके नाम से ये सिम खरीदी गई है, उसका डिटेल पूछा जाएगा, वो आप उसे बता देना”
लड़की कुछ बुदबुदाई और बोली “ओह्ह “
मैंने, लड़की को समझते हुए कहा.. “इसमें परेशानी की कोई बात नहीं हैं”
वो, लड़की अपने एक हाथ से दूसरा हाथ को दबाती रही, जैसे मानो कि वो किसी परेशानी में हो।
मैंने फिर विन्रमता से उससे पूछा.. “आपको कहीं फ़ोन करना हो, तो मेरा मोबाइल इस्तेमाल कर लीजिए”
लड़की ने कहा.. “जी फिलहाल नहीं, पर इसके लिए थैंक्स, लेकिन मुझे यह नहीं पता कि ये सिम किसके नाम से खरीदी गई है।”
मैंने कहा.. “एक बार ये सिम एक्टिव होने दीजिए, तब आपको पता चल जाएगा, जिसने आपको ये सिम दी है, उसी के नाम की होगी”
उसने कहा.. “ओके, कोशिश करते हैं”
मैंने लड़की से पूछा.. “आपको जाना कहाँ है?”
लड़की ने कहा.. “मुम्बई”
और आप कहां जा रहे हो?, लड़की ने मुझसे पूछा..
मैंने कहा.. “मुम्बई ही जा रहा हूँ, वहां मुझे तीन दिन का काम है,
आप मुम्बई में रहती हो या…?”
लड़की बोली “नहीं नहीं, मुम्बई में कोई काम नहीं, ना ही मेरा घर है वहाँ”
तो? मैंने उत्सुकता वश पूछा..
वो लड़की बोली.. “दरअसल ये मेरी दूसरी ट्रेन है, जिसमें मैं आज हूँ, और दिल्ली से तीसरी ट्रेन पकड़नी है मुझे, फिर हमेशा के लिए मैं आज़ाद”
आज़ाद?
लेकिन किस तरह की कैद से?
मुझे फिर जिज्ञासा हुई, किस कैद में थी ये कमसिन सी अल्हड़ लड़की..
लड़की बोली.., उसी कैद में थी, जिसमें हर लड़की होती है। जहाँ घरवाले कहे.. शादी कर लो, जब जैसा कहे वैसा करो, इसलिए मैं घर से भाग चुकी हूं..
मुझे आश्चर्य हुआ, मगर मैं अपने आश्चर्य को छुपाते हुए..
और हंसते हुए उस लड़की से पूछा “अकेली भाग रही हो आप?,
आपके साथ कोई नज़र नहीं आ रहा? “
वो बोली “अकेली नहीं, साथ में है कोई”
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कौन?
मेरे प्रश्न खत्म ही नहीं हो रहे थे,
लड़की बोली.. दिल्ली से एक और ट्रेन पकड़ूँगी, फिर अगले स्टेशन पर वो जनाब मिलेंगे, फिर उसके बाद हम किसी को नहीं मिलेंगे..
ओह्ह, तो ये “प्यार” का मामला है।
उसने कहा.. “हां जी”
मैंने उसे बताया कि ‘मैंने भी लव मैरिज की है।’
ये बात सुनकर वो खुश हुई, और बोली..
“वाओ, कैसे, कब और कहाँ?..
लव मैरिज की बात सुनकर, वो मुझसे बात करने में अब रुचि लेने लगी।
मैंने कहा “कब?, कैसे? और कहाँ?..
वो, मैं आपको बाद में बताऊंगा, पहले आप बताओ कि आपके घर में कौन -कौन है?
लड़की ने अपनी “होशियारी” बरतते हुए कहा..
“वो मैं, आपको यह क्यों बताऊं?
कि मेरे घर में कोई भी हो सकता है, मेरे पापा, मम्मी, भाई -बहन या हो सकता है कि भाई ना हो सिर्फ बहनें हो, या ये भी हो सकता है, कि बहने ना हो और 2-3 गुस्सा करने वाले बड़े भाई हो”।
मतलब, मैं आपका नाम भी नहीं पूछ सकता..
“मैंने काउंटर किया”
वो बोली.., ‘कुछ भी नाम हो सकता है मेरा, पूजा, पूनम, पूर्णिमा, प्रियंका या और कुछ’
बहुत बातूनी लड़की थी वो.. थोड़ी इधर उधर की बातें करने के बाद उसने मुझे “टॉफी” दी जैसे छोटे बच्चे देते है क्लास में,
बोली आज मेरा बर्थडे है।
मैंने उसकी हथेली से “टॉफी” उठाते बधाई दी और पूछा.. “कितने साल की हुई हो अब?”
वो बोली “18”
“मतलब अब भागकर शादी करने की कानूनी उम्र हो गई आपकी”
वो “हंसी”
कुछ ही समय में काफी फ्रैंक हो चुके थे हम दोनों, जैसे बहुत पहले से जानते हो, एक दूसरे को..
मैंने उसे बताया कि “मेरी उम्र 36 साल है, यानि 18 साल बड़ा हूं”
उसने मेरी चुटकी लेते हुए कहा.. “लग तो नहीं रहे हो आप”
मैं मुस्कुराया और उससे पूछा “तुम घर से भागकर आई हो, तुम्हारे चेहरे पर चिंता के निशान जरा भी नहीं है, इतनी बेफिक्री मैंने पहली बार किसी लड़की में देखी है”
खुद की तारीफ सूनकर वो लड़की खुश हुई और बोली.. “मुझे उन जनाब ने, यानि कि मेरे लवर ने पहले से ही मुझे समझा दिया था, कि जब घर से निकलो तो बिल्कुल बिंदास रहना, घरवालों के बारे में बिल्कुल भी मत सोचना, बिल्कुल भी अपना मूड खराब मत करना, सिर्फ मेरे और हम दोनों के बारे में सोचना और मैं वही कर रही हूँ”
मैंने फिर चुटकी ली, और कहा.. “उसने तुम्हें मुझ जैसे अनजान मुसाफिरों से दूर रहने की सलाह नहीं दी?”
लड़की ने हंसकर जवाब दिया “नहीं, शायद वो भूल गए होगा ये बताना”
मैंने उसके प्रेमी की तारीफ करते हुए कहा.. ” वैसे आपका “लवर” काफी टैलेंटेड है, उसने किस तरह से तुम्हे अकेले घर से निकला व रवाना किया, तुम्हें नई सिम और मोबाइल दिया, तुमसे तीन ट्रेन बदलवाई.. ताकि कोई ट्रेक ना कर सके तुम्हें, वेरी टैलेंटेड पर्सन”
लड़की ने हामी भरी, और “बोली.. जी हां बहुत टैलेंटेड है वो, उसके जैसा कोई नहीं”
मैंने उसे बताया कि “मेरी शादी को 11 साल हुए हैं, एक 9 साल की बेटी है और एक बेटा 1 साल का, ये देखो उनकी तस्वीर”
मेरे फोन पर बच्चों की तस्वीर देखकर उसके मुंह से निकला “सो क्यूट”
मैंने उसे बताया कि “बेटी जब पैदा हुई, तब मैं अरब कंट्री में था, एक पेट्रो कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब थी मेरी, सेलेरी भी बहुत अच्छी थी..
फिर कुछ महीनों के बाद मैंने वो जॉब छोड़ दी, और अपने ही गांव में काम करने लगा।”
लड़की ने पूछा जॉब क्यों छोड़ी?
मैंने कहा.. “जब बच्ची को पहली बार गोद में उठाया तो ऐसा लगा, जैसे मानो कि मेरी सारी दुनिया मेरे हाथों में है। मैं एक महीने की छुट्टी पर घर आया था, मुझे वापस जाना था, लेकिन मैं जा ना सका। इधर बच्ची का बचपन खर्च होता रहे, उधर मैं पूरी दुनिया भी कमा लूं, तब भी मेरे लिए एक घाटे का सौदा है। मेरी दो टके की नौकरी, बचपन उसका लाखों का..”
उसने पूछा “क्या बीवी बच्चों को साथ नहीं ले जा सकते थे वहाँ?”
मैंने कहा.. “काफी टेक्निकल मामलों से गुजरकर, एक लंबे समय के बाद और कुछ शर्तें के साथ वहां रख सकते हैं, उस समय ये मुमकिन नहीं था.. मुझे दोनों में से किसी एक को चुनना था, आलीशान रहन सहन के साथ नौकरी या परिवार.. मैंने परिवार चुना, अपनी बेटी को बड़ी होते देखने के लिए। मैं अरब कंट्री वापस गया था, लेकिन अपना इस्तीफा देकर वापस लौट आया।”
लड़की ने कहा.. “आप वेरी इम्प्रेसिव है”
मैं “मुस्कुराकर” खिड़की की तरफ देखने लगा
लड़की ने पूछा.. “अच्छा” आपने तो “लव मैरिज” की थी न, फिर आप भागकर कहाँ गए थे?
कैसे रहे और कैसे गुजरा वो समय?
उसके हर सवाल और हर बात में मुझे महसूस हो रहा था कि ये लड़की अपनी लकड़पन के शिखर पर है, बिल्कुल नासमझ और मासूम छोटी बहन सी।
मैंने उसे बताया कि हमने भागकर शादी नहीं की, और ये भी है कि उसके पिता ने मुझे पहली नज़र में सख्ती से रिजेक्ट यानी की मना कर दिया था।”
उन्होंने आपको रिजेक्ट क्यों किया?
लड़की ने पूछा..
मैंने कहा.. “रिजेक्ट करने का कारण कुछ भी हो सकता है, मेरी जाति, मेरा काम, मेरा घर परिवार।
“बिल्कुल सही”, लड़की ने अपनी सहमति दर्ज कराई और आगे पूछा.. “फिर आपने क्या किया?”
मैंने कहा.. “मैंने कुछ नहीं किया, उसके पिता ने रिजेक्ट कर दिया, वहीं से मैंने अपने बारे में अलग से सोचना शुरू कर दिया था। “सानिया” ने मुझे कहा.. कि भाग चलते हैं, मेरी वाइफ का नाम “सानिया” है..
मैंने साफ मना कर दिया। वो, दो -दिन तक लगातार जोर देती रही, कि भाग चलते हैं।
मैं मना करता रहा.. और उसे समझाया कि “भागने वाले जोड़े में लड़के की इज़्ज़त पर पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, जबकि लड़की के पूरे कुल की इज्ज़त धुल -मिट्टी में मिल जाती है। वहीं भगाने वाला लड़का उसके और अपने दोस्तों में हीरो माना जाता है, लेकिन इसके विपरीत जो लड़की प्रेमी संग भाग रही है, वो “कुल्टा” कहलाती है, मुहल्ले के लड़के व लोग उसे चालू कहते है। बुराइयों के तमाम शब्दकोष लड़की के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। भागने वाली लड़की आगे चलकर बूढ़ी भी हो जाएगी तब भी जवानी में किये उस कांड का कलंक उसके माथे पर से नहीं मिटता।
मैं मानता हूँ, कि लड़का और लड़की को तौलने का ये दोहरा मापदंड गलत है, लेकिन हमारे समाज में है तो यही, ये नज़रिया गलत है, मगर सामाजिक नज़रिया यही है।
वो लड़की अपने नीचे के होंठ दांतों तले पीसने लगी, लड़की पानी की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूंट पिया।
मैंने कहा.. अगर मैं उस दिन “सानिया” को भगा ले जाता तो उसकी माँ तो शायद कई दिनों तक पानी भी ना पीती, इसलिए मेरी हिम्मत ना हुई, कि मैं ऐसा काम व कुछ करूँ..
मैं जिससे प्रेम करूँ, उसके माता -पिता, मेरे माता- पिता के समान ही है, चाहे शादी ना हो, तो ना हो।
कुछ पल के लिए वो लड़की सोच में पड़ गई, लेकिन वो मेरे बारे में और अधिक जानना चाहती थी, उसने पूछा.. “फिर आपकी शादी कैसे हुई?
मैंने बताया कि “सानिया की सगाई कहीं और तय कर दी गई थी। धीरे- धीरे सबकुछ नॉर्मल होने लगा था। “सानिया” और उसके मंगेतर की बातें भी होने लगी थी फोन पर, लेकिन जैसे -जैसे शादी नजदीक आने लगी, वहीं लड़के के घरवालों की तरफ़ से डिमांड बढ़ने लगी”
डिमांड मतलब ‘लड़की ने पूछा’..
डिमांड का एक ही मतलब होता है, “दहेज” की डिमांड। परिवार में सबको सोने से बने तोहफे दो, दूल्हे को कीमती व लग्जरी कार चाहिए, सास और ननद को सोने से बने नेकलेस व गहने दो.. वगैरह -वगैरह, लड़के वाले ने कहां हमारे यहाँ की यही रीत है। लड़का भी इस रीत की अदायगी का पक्षधर था।
वो सगाई मैंने तुड़वा डाली.. इसलिए नहीं की सिर्फ मेरी शादी उससे हो जाये, बल्कि ऐसे लालची लोगों में “सानिया” कभी भी खुश नहीं रह सकती थी। ना उसका परिवार, फिर किसी तरह उसके घरवालों को समझा बुझा कर, मैं “सामने” आ गया और हमारी शादी हो गई। ये सब किस्मत की बात थी..
लड़की बोली “चलो अच्छा हुआ कि आप मिल गए, वरना वो गलत लोगों के में फंस जाती”
मैंने कहा.. “जरूरी नहीं कि माता -पिता का फैसला व निर्णय हमेशा सही हो, और ये भी जरूरी नहीं कि प्रेमी जोड़े की पसन्द और निर्णय हमेशा सही हो.. दोनों में से कोई भी गलत या सही हो सकता है.. मगर काम की बात यहां, ये है कि कौन किसके प्रति ज्यादा वफादार है या किसकी नियत और निति ज्यादा साफ है”।
लड़की ने फिर से पानी का घूंट लिया और तर्क दिया कि “हमारा फैसला गलत हो जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन उन्हें ग्लानि नहीं होनी चाहिए”
मैंने कहा.. “फैसला ऐसा हो.., जो दोनों का हो, बच्चे और उनके माता – पिता की सहमति हो, जिसमें दोनों परिवारों की सहमति हो और दोनों एक-दूसरे के प्रति वफादार हों, वो सबसे सही है। बुरा मत मानना, मैं कहना चाहूंगा.. कि तुम्हारा फैसला सिर्फ तुम दोनों का है, जिसमे तुम्हारे पेरेंट्स शामिल नहीं है, ना ही तुम्हें “इश्क” का असली मतलब पता है अभी”
लड़की ने मुझसे पूछा.. तो फिर “क्या है?, इश्क़ का सही अर्थ?”
मैंने कहा.. “तुम “इश्क” में हो.., जो अपना सबकुछ छोड़कर चली आई यहां, ये सच्चा इश्क़ है.., जो तुमने अपने दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं दिया, ये इश्क ही है.., तुमने न अपना फायदा, न नुकसान के बारे सोचा, ये इश्क है…
तुम्हारा दिमाग़ दुनियादारी के फितूर से बिल्कुल अलग और खाली था, उस खाली जगह में “इश्क” का फितूर भर दिया गया।
जिन जनाब ने इश्क को भरा..।
क्या?, वो इश्क में नहीं है.. यानि तुम जिसके साथ जा रही हो वो इश्क में नहीं, बल्कि होशियारी और हीरोगिरी में है।
जो इश्क में होता है.., वो इतनी प्लानिंग नहीं कर पाता है, तुमसे तीन ट्रेनें नहीं बदलवा पाता है, उसका दिमाग इतना काम ही नहीं कर पाता..
कोई कहे.. मैं आशिक हुँ, और वो शातिर भी हो ये कैसे नामुमकिन है?।
मजनूं, जो इश्क में पागल हो गया था.., लोग उसे पत्थर मारते थे, इश्क में उसकी पहचान तक मिट गई। उसे दुनिया अब “मजनूं” के नाम से जानती है, जबकि उसका असली नाम “क़ैस” था, जो नहीं इस्तेमाल किया जाता। अगर?, वो शातिर होता तो “क़ैस” से मजनूं ना बन पाता।
फरहाद ने “शीरीं” के लिए पहाड़ों को खोदकर नहर निकाल डाली थी और उसी नहर में उसका लहू बहा था, वो “इश्क़” था।
इश्क़ में कोई “फकीर” हो गया, कोई “जोगी” हो गया, किसी “मांझी” ने पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाल लिया.. किसी ने भी अपना अतिरिक्त दिमाग़ नहीं लगाया.. और नहीं चालाकी की।
लालच, हवस और किसी को हासिल करने का नाम “इश्क़” नहीं है.. इश्क “समर्पण” करने को कहते हैं, जिसमें इंसान सबसे पहले खुद का समर्पण करता है, जैसे कि तुमने किया, लेकिन, तुम्हारा समर्पण हासिल करने के लिए था, यानि तुम्हारे इश्क में लालच की मिलावट हो गई, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी को धोखा देता है, वो इश्क नहीं है, जो इश्क़ करता है, ना तुम्हें, ना तुम्हारे परिवार को कभी तकलीफ़ देगा, और हर बुरे समय में तुम्हारे साथ खड़ा रहेगा वो, अंत में अगर कहूं इश्क़ एक “इमोशंस” है..!
वो लड़की, अचानक कई खो सी गई.. उसकी खिलख़िलाहट और खिलंदड़ापन एकदम सी खमोशी में बदल गई.. मुझे लगा, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, फिर भी मैंने बोलना जारी रखा, मैंने कहा.. “प्यार तुम्हारे पिता तुमसे करते हैं, कुछ दिनों के बाद उनका वजन आधा हो जाएगा, तुम्हारी माँ कई दिनों तक खाना नहीं खाएगी और ना पानी पियेगी.. जबकि आपको अपने “लवर” को आजमा कर देख लेना था, ना तो उसकी सेहत पर कोई फर्क पड़ता, ना ही दिमाग़ पर, वो अक्लमंद है, वो अपने लिए कुछ अच्छा सोच लेता।
आजकल गली, मोहल्ले के हर तीसरे लड़का या लड़की को इश्क़ हो जाता है, वो इश्क़ नहीं है, वो सिनेमा जैसा कुछ है। एक तरह की स्टंटबाजी, डेरिंग, अलग कुछ करने का फितूर.. और कुछ नहीं।
लड़की का चेहरे का रंग बदल गया, ऐसा लग रहा था कि वो अब यहाँ नहीं है, उसका दिमाग़ किसी अतीत में टहलने निकल गया है।
मैं अपने फोन को स्क्रॉल करने लगा.. लेकिन मेरे मन की इंद्री उसकी तरफ थी।
थोड़ी ही देर में उसका और मेरा स्टेशन आ गया.. बात कहाँ से निकली थी और कहाँ आ पहुंची.. उसके मोबाइल पर मैसेज टोन बजी, उसने देखा, सिम एक्टिवेट हो गई थी..
लड़की ने चुपचाप बैग में से आगे का टिकट निकाला और उसे फाड़ दिया.. और मुझे कहा.. एक कॉल करना है, और मेरा मोबाइल मांगा, मैंने अपना मोबाइल दिया.. उसने नम्बर डायल करके कहा..
“सोरी पापा, मुझे माफ़ कर दो और सिसक -सिसक कर रोने लगी, सामने से उसके पिता भी फोन पर बेटी को संभालने की कोशिश करने लगे.. उसने कहा.. पिताजी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए, मैं घर आ रही हूँ.. दोनों तरफ से भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा”
हम दोनों ट्रेन से उतरे, उसने फिर से पिन मांगी, मैंने पिन दी.. उसने मोबाइल से सिम निकालकर तोड़ दी और पिन मुझे वापस कर दिया..।
निष्कर्ष :
“ये मेरा दावा है, आपके माता पिता से ज्यादा तुम्हें दुनिया मे कोई प्यार नहीं करता।” जब आपके मन कोई ऐसा ख्याल आये तो अपने परिवार और उसके परिवार के बारे जरूर सोचें, आपके ना होने से उनका क्या होगा, क्योंकि कोई भी समस्या का सावधान एक दूसरे के परिवार से बात करके निकला जा सकता हैं, लेकिन आपका एक गलत कदम आपको और आपके परिवार को किस मोड़ ले जाएगा यह कोई नहीं जानता..।
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Note:
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