2005 से लेकर 2025 तक यानी पूरे 20 सालों से नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे बने हुए हैं। “सुशासन बाबू” के नाम से मशहूर हुए, लेकिन आज जब आम लोग सड़क पर निकलते हैं तो कई सवाल लिए खड़े होते हैं – शराबबंदी के बावजूद शराब मिल रही है, बलात्कार और हत्या की घटनाएं रुक नहीं रही, और युवा आज भी रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं। आखिर इतने सालों में क्या बदला और क्या नहीं बदला, इस पर एक नजर डालते हैं।
1. शराबबंदी का सच: कागजों में बंद, ज़मीन पर चालू
2016 में नीतीश सरकार ने शराबबंदी का बड़ा ऐलान किया। कहा गया कि इससे समाज सुधरेगा, अपराध कम होंगे और परिवार मजबूत होंगे।
लेकिन हकीकत?
शराब अब भी धड़ल्ले से बिक रही है, बस अब ये काम चोरी-छिपे माफिया के हाथ में है।
2021-2024 के बीच जहरीली शराब पीने से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
शराब माफिया और पुलिस की मिलीभगत से धंधा जोरों पर है।
प्रश्न: जब शराबबंदी कानून है, तो माफिया कैसे चल रहा है? जवाब है – व्यवस्था की कमजोरी और भ्रष्टाचार।
2. अपराध – आंकड़ों से बाहर जमीनी डर
बिहार में कानून व्यवस्था पर सरकार चाहे जितना दावा करे, लेकिन जमीन पर स्थिति कुछ और कहती है:
2023 NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) रिपोर्ट के अनुसार:
बलात्कार के मामले: 1,650 से अधिक
हत्या: हर दिन औसतन 6 से 7 हत्या
महिलाओं पर अत्याचार: लगातार बढ़ोतरी
बिहार में गांव हो या शहर, महिलाएं आज भी खुद को सुरक्षित नहीं मानतीं। नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले भी चिंता का विषय बन चुके हैं। बिहार की राजधानी पटना में आए दिन कोई न कोई घटनाएं घटती रहती कभी सीएम के आवास से महज 300 मीटर की दूरी पर और जब राजधानी सैफ नहीं है तो आप इसी से आप अंदाजा लगा सकते है कि पूरे बिहार में कानून व्यवस्था की क्या हालत होगी।
पुलिस का हाल:
थानों में एफआईआर दर्ज कराना आज भी आम लोगों के लिए चुनौती है।
कई मामलों में पुलिस खुद आरोपियों के साथ मिली होती है।
3. बेरोजगारी – बिहार का सबसे बड़ा दर्द
नीतीश कुमार ने हर बार विकास, शिक्षा और युवाओं को नौकरी देने की बात कही, लेकिन…
हकीकत ये है:
2024 में CMIE रिपोर्ट के अनुसार बिहार की बेरोजगारी दर 17% से अधिक रही।
लाखों युवा रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।
सरकारी नौकरियों की परीक्षाएं या तो समय पर नहीं होतीं, या फिर पेपर लीक हो जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर:
बिहार STET (शिक्षक पात्रता परीक्षा) में देरी,
BPSC की परीक्षाओं में धांधली,
रोजगार मेले के नाम पर सिर्फ कागजी आंकड़े।
बिहार में युवा को कुछ समझ नहीं आ रहा उनके सपने अंधकार में या पूरी जिंदगी ही अंधकार भरा है । युवा सिर्फ वोट बैंक ही बन कर रह जाएंगे नेताओं और राजनीतिक पार्टियों की ? ये तो बिहार के युवाओं को अब सोचना होगा और जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने ही वाला है इस वर्ष तो उनके जन प्रतिनिधि यानी चुने हुए विधायक जी से तो ये सवाल पूछना होगा कि नेता जी आप ने तो अपना और अपने बच्चों का भविष्य तो बना लिया लेकिन वोटर का भविष्य कब बनेगा?
4. शिक्षा और स्वास्थ्य – न सुधार पाने वाली नींव
शिक्षा:
शिक्षक स्कूलों में गैरहाज़िर,
संसाधन की कमी,
स्कूलों में सिर्फ मिड-डे मील के सहारे चल रही पढ़ाई।
स्वास्थ्य विभाग का भी खस्ता हालत:
प्राइमरी हेल्थ सेंटर में डॉक्टर नहीं,
जिला अस्पतालों में इलाज के बजाय मरीजों को पटना रेफर कर दिया जाता है।
5. फिर भी काबिज़ क्यों हैं नीतीश कुमार?
गठबंधन की राजनीति और जातिगत गणित में नीतीश कुमार माहिर माने जाते हैं।
कभी बीजेपी, कभी RJD, कभी तीसरे मोर्चे के साथ – उन्होंने सत्ता में बने रहने का फॉर्मूला बना रखा है।
जनता का असली मुद्दा जैसे बेरोजगारी, अपराध और शिक्षा, चुनाव के वक्त जाति-धर्म और राजनीति के शोर में दब जाता है।

नीतीश कुमार का दो दशक लंबा राज इस सवाल के साथ खड़ा है – क्या सिर्फ पुल, सड़क और योजना ही विकास है? जब युवा बेरोजगार हैं, महिलाएं असुरक्षित हैं, अपराधी बेलगाम हैं और शराबबंदी कागज पर ही सीमित है – तो विकास का मतलब क्या?
बिहार को अब सिर्फ सरकार नहीं, ईमानदार बदलाव चाहिए। एक ऐसा सिस्टम, जो ज़मीन पर असर दिखाए, सिर्फ भाषणों में नहीं।