बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में जातिगत समीकरण एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन बेरोज़गारी-प्रवासन जैसे विकास-संबंधी मुद्दे भी उतने ही जोर पकड़ रहे हैं। नई पीढ़ी के नेता तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर और कन्हैया कुमार बेरोज़गारी और पलायन को मुख्य मुद्दा बनाकर युवाओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं ।

इन नेताओं का कहना है कि बिहार के लाखों युवा काम की तलाश में दूसरे राज्यों को जाते हैं। दूसरी ओर, स्थापित पार्टियाँ भी रोज़गार सृजन के वादे कर रही हैं ।

बिहार में प्रमुख राजनीतिक दलों के रुख

आरजेडी (महागठबंधन) – तेजस्वी यादव बेरोज़गारी पर केंद्रित हैं। उन्होंने 2020 में 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया था और अब दावा किया है कि अपनी सरकार बनने पर बिहारवासियों के लिए सरकारी नौकरियों में 100% डोमिसाइल नीति लागू करेंगे।

पिछले चुनाव में तेजस्वी ने 5 लाख नौकरियाँ देने का भी दावा किया था

जेडीयू (नीतीश कुमार) – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विकास-केंद्रित एजेंडा है। हाल ही में उनकी सरकार ने 1.2 लाख नए शिक्षकों को नियुक्त किया और उन्होंने भी 10 लाख रोजगार का लक्ष्य बताया है ।

 

जेडीयू ने यह दिखाने की कोशिश की है कि उनकी सरकार कानून-व्यवस्था और बुनियादी ढांचे पर काम कर रही है, न कि सिर्फ जातिगत समीकरणों पर । भाजपा (NDA) – गठबंधन में भाजपा ने भी रोजगार पर जोर दिया है। बिहार भाजपा के उपमुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि सरकार विधानसभा चुनाव तक 10 लाख सरकारी नौकरियाँ देगी. इसके अलावा, ‘बिहार दिवस’ पर प्रवासी बिहारीयों से जुड़ने के लिए विशेष कार्यक्रम किए गए, ताकि बाहर गए कार्यकर्ता भी वोट बैंक में लौटें ।

बिहार

 

भाजपा अपने ‘डबल इंजन’ विकास एजेंडे (राज्य+केंद्र) पर गर्व करती है । कांग्रेस (महागठबंधन) – कांग्रेस ने भी बेरोज़गारी-प्रवास पर फोकस किया है। युवा नेता कन्हैया कुमार ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ का रोडशो चला रहे हैं  .उन्होंने कहा है कि बिहार में रोजगार नहीं मिलने से हर समस्या पैदा होती है । कांग्रेस का ध्यान लॉकडाउन के दौरान बिहार के 35 लाख प्रवासी मज़दूरों पर भी गया था । जन सुराज (प्रशांत किशोर) – चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर भी भ्रष्टाचार, पलायन और बेरोज़गारी पर बात कर रहे हैं । उन्होंने वादा किया है कि उनकी सरकार बनने पर बेरोज़गारों को बिहार के बाहर नहीं जाना पड़ेगा, बल्कि उन्हें राज्य में ही रोज़गार मिलेगा ।

मतदाताओं की प्राथमिकताएँ

हाल के हुए सर्वे बताते हैं कि बिहार के मतदाताओं की सबसे बड़ी चिंता रोज़गार है। फरवरी 2025 में C-Voter/इंडिया टुडे के सर्वे में 45% मतदाताओं ने बेरोज़गारी को शीर्ष मुद्दा बताया है, जबकि महंगाई 11% पर रही है और बिजली-जल-सड़क जैसे बुनियादी सुविधाएँ 10% मतदाताओं की चिंताओं में शामिल थीं ।

युवा आबादी भारी होने के चलते (लगभग 70% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की) शिक्षा, कौशल विकास और रोज़गार जैसे मुद्दे मुख्य हैं । कुल मिलाकर, मतदाता विकास और रोज़गार को जातिगत राजनीति से ऊपर रख रहे हैं।

प्रमुख सर्वेक्षण डेटा:

बेरोज़गारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानने वालों की संख्या 45%.

महंगाई 11%, बिजली/पानी/सड़क जैसे मुद्दे 10% मतदाताओं ने बताए.

35 वर्ष से कम उम्र के लोगों का अनुपात 70%.

पिछले चुनावों में जाति बनाम विकास

पारंपरिक रूप से बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण निर्णायक होते रहे हैं। 2015 में महागठबंधन ने यादव-लालू और कुर्मी-नीतीश को साथ जोड़कर जीत हासिल की थी। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रमुख पार्टियों ने जाति को पीछे कर विकास पर जोर दिया था।

टाइम मैगज़ीन ने लिखा कि “2020 का चुनाव दशकों में पहला ऐसा था जिसमें जाति किसी भी बड़े दल का मुख्य मुद्दा नहीं रहा”.

भाजपा ने हिंदुत्व का संदेश दिया, पर समीपतम मतों से यह भी साफ हुआ कि जातिगत वोटबैंक का प्रभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है.

विश्लेषकों का कहना है कि विकास बनाम जाति की बहस अभी भी जारी है और सभी पार्टियाँ दोनों को साथ जोड़कर रणनीति बना रही हैं

बेरोज़गारी और पलायन की स्थिति

बिहार में बेरोज़गारी की दर चिंता का विषय है। सरकारी PLFS के आँकड़ों में जुलाई 2022–जून 2023 के बीच राज्य की बेरोज़गारी 3.9% दर्ज की गई

(देश की औसत 3.2% थी)। लेकिन निजी सर्वे (CMIE) दिसंबर 2022 तक इसे 19.1% बता चुके हैं, जो कि देश के औसत से दोगुना है । इस कारण ही बिहार से पलायन भी बना हुआ है । 2011 की जनगणना में बिहार से 74.54 लाख लोग अन्य राज्यों में बस चुके थे.

बिहार

हालिया आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर अवसरों से पलायन धीमा हुआ है, भारत में प्रवासियों की संख्या में 12% की कमी आई है.

फिर भी आंकड़े बताते हैं कि पलायन बहुत बड़ा मुद्दा है: ILO/IHD की 2024 रिपोर्ट के अनुसार 2021 में प्रवासियों में से 39% ने बेहतर रोज़गार के लिए बिहार छोड़ा.

राज्य की आर्थिक समीक्षा बताती है कि बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर अधिक निर्भर है (श्रमिकों का 54.2% रोजगार सिर्फ 19.9% आर्थिक उत्पादन पर आधारित क्षेत्र से मिलता है) और प्रति व्यक्ति आय भी सर्वाधिक कम (₹32,174) है. ये सब बताते हैं कि रोज़गार की कमी और पलायन बिहार की जड़ों में है।

प्रमुख आंकड़े:

बेरोज़गारी दर (PLFS): 3.9%

(देश की औसत 3.2%)
बेरोज़गारी दर (CMIE, Dec 2022): 19.1%

पलायनकारी बियॉण्ड-स्टेट: 74.54 लाख (2011 Census)

प्रवासियों में रोजगार कारण: 39% (2021 में ILO/IHD)

रोजगार क्षेत्र: प्राथमिक (कृषि) 54.2% रोजगार देता है

प्रति व्यक्ति आय (2023-24): ₹32,174 (राष्ट्रीय औसत ₹1.07 लाख)

घोषणापत्र और वादे

मुख्य पार्टियाँ अपने घोषणापत्रों में भी रोजगार-सृजन को प्राथमिकता दे रही हैं। RJD ने वादा किया है कि 100% डोमिसाइल नीति से बिहारवासियों को राज्य की सरकारी नौकरियों में बढ़त मिलेगी.

NDA की सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले 10 लाख नौकरियों का लक्ष्य रखा है. और नियुक्ति सूचियों में पारदर्शिता का आश्वासन दिया है. कांग्रेस भी पलायन रोकने और रोजगार देने की बात कर रही है; आने वाले घोषणापत्र में प्रवासी मजदूरों के लिए सहायता केन्द्र और रोज़गार योजनाएँ शामिल होने की उम्मीद है. सभी पार्टियाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, ग्रामीण विकास जैसी योजनाओं पर जोर दे रही हैं ताकि युवा और प्रवासी मजदूर घर से जुड़ सकें.

बिहार में यह साफ हो रहा है कि 2025 का चुनाव सिर्फ जाति के आधार पर नहीं चलेगा। बेरोज़गारी, पलायन और विकास से जुड़े मुद्दे भी बराबर ही अहम हैं। पार्टियाँ इन दोनों ही मोर्चों पर ग्राहकों यानी वोटरों को लुभाने की रणनीति बना रही हैं, क्योंकि मतदाताओं की जागरूकता बढ़ी है और वे रोज़गार में-भारी विकास चाहते हैं। इस बार बिहार में युवा जिस प्रकार नेताओं से सवाल करने लगे है अब लगता है बिहार का युवा जाग गया ओर जब बिहार का युवा जागेगा तो ही बिहार की तस्वीर और तग़दीर बनेगा.

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