Barnar river : बरनार नदी से बालू खनन के बाद उन खेतों में वीरानगी सी छाई है जहां पूरे वर्ष लहलहाते फसलों से हरियाली छाई रहती थी। बरनार नदी के किनारे बसे कन्हायडीह, सलोना, धोगठ, मोरा, बंधोरा, मांगोंबंदर, फरका, कागेश्वर, दिनारी, कोल्हुआ, निजुआरा, भंडररा, गंगरा, केशोफरका, मंडरो, अमेठीयाडीह आदि दर्जनों गांव के किसान आज बेरोजगार हो गये हैं। उन्हें करने के लिये कोई काम नहीं रह गया है। इन गांव के किसान नदी से सिंचाई की सुविधा होने के कारण वर्ष भर कृषि कार्य में व्यस्त रहा करते थे। खरीफ के बाद रबी फसल की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में गर्मी के दिनों में बरनार नदी एवम आस पास के सहयोगी नदियों के पानी से गर्मा धान मूंग आदि की खेती किया करते थे, लेकिन बरनार नदी से बालू खनन के बाद नदी इतनी गहरी हो गई है कि अब नदी का पानी खेतों में यानी पटवन के पैइन तक नहीं पहुंच पा रहा है। जिससे इन सभी गांवों का खेती अब चौपट हो गई है।
बरनार नदी इन गांवों के लिये बरदान हुआ करता था
बरनार नदी इन गांवों के लिये बरदान हुआ करता था। जब से नदी में बालू का खनन शुरू हुआ है एक तो हम लोगों का युगयुगान्तर से चला आ रहा पराप्रिक निःशुल्क सिंचाई का संसाधन जो नदी से था वह छीन लिया गया जिससे कृषि कार्य चौपट हो गया। नदी के पानी के सहारे हमलोग गर्मी फसल तक का ऊपजा लिया करते थे। अब तो खरीफ व रबी फसल भी सिंचाई के अभाव में सुख गया है। साथ ही जानमाल की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है। बड़े-बड़े मशीनों से नदी में बालू उठाव के बाद नदी में बन आये बड़े-बड़े गड्ढे में जमा पानी में डूबने के खतरा सदैव बना रहता है। पूरे क्षेत्र में भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं लोग बालू उठाव के साथ ही क्षेत्र का भू-जलस्तर लगातार नीचे की ओर भाग रहा है। लगातार खिसकते भू-जलस्तर के कारण क्षेत्र में भीषण जल संकट उत्पन्न हो गया है। क्षेत्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। क्षेत्र के लोग पानी के लिये आंदोलित हैं। इसके बाबजूद जल संकट से जूझ रहे क्षेत्र वासी का जलसंकट रूपी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है।
2 सौ एकड़ खेतों में पटवन हो गई प्रभावित
बरनार नदी से अधिक बालू उठाव होने से पैइन के मुहाने पर नदी की गहराई अधिक हो गई है। साथ ही नदी की जलधारा बदल जाने से पैइन से सिंचाई होना इस बार संभव नहीं होगा। बरनार नदी के पानी से ही प्रखंड के नदी किनारे बसने वाले डुमरी, असरहुआ, मडरौ, केशोफरका, चुरहेत, सोनो, बलथर, केवाली सहित दर्जनों गांवों के पांच सौ एकड़ भूमि की सिंचाई होती थी। नदी से निकलने वाले आधा दर्जन पैइन से चरैया बहियार, बलथर बहियार, भडारी बहियार, कमरख बहियार, चुरहेत ,कन्हायडीह, सलोना, धोगठ, मोरा, बंधोरा, मांगोंबंदर, फरका, कागेश्वर, दिनारी, कोल्हुआ, निजुआरा, भंडररा, गंगरा, केशोफरका, मंडरो, अमेठीयाडीह, बहियार के दो एकड़ फसलों की प्यास बुझती थी, लेकिन इस बार नदी की धार नीचे व खेत उपर होने से परिस्थितियां बदल गई है। जो किसानों के लिए परेशानी का कारण बनेगा।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञ कहते हैं कि बालू में पानी को अवशोषित करने की अपार क्षमता होती है। रेत के अंदर जलस्तर सुरक्षित बना रहता है। यही कारण है सुखी नदी में भी रेत हटाते ही पानी का धार दिखाई देने लगता है। नदी से बहुत गहराई से बालू खनन किये जाने के बाद अब नदी में बालू का लेयर समाप्त हो गया और मिट्टी का लेयर शुरू हो बालू का लेयर समाप्त होने के कारण बालू जो जल को अवशोषित कर जल स्तर बनाए रखता था अब अवशोषित करने की क्षमता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है जिसके कारण लगातार भू-जलस्तर नीचे खिसक रहा है।
जिस तरह से गिद्धौर नदी यानी कि नागी नदी के बीच में रोड बना दिया गया है जिसके कारण पूरी तरह से नदी का प्राकृतिक सभावः पूरी तरह से नस्ट कर दिया गया है । सरकार के कानूनों को बालू खनन माफिया सरे आम धज्जियां उड़ा रहे है।
सरकार द्धारा बनाया गया कानून में यह प्रावधान था की बालू इकट्ठा करने का डंप की जगह नदी से तकरीबन 5 से 8 किलो मीटर का फासला यानी दूरी होना चाइए था मगर बालू माफिया के रहनुमा या करता धर्ता को किसी का भी डर नहीं है वो कहते है ना जब सईया भयो कोतवाल तो अब डर काहे का यानी की इन सब कानून को तोड़ने मैं मंत्री से लेकर प्रशासन तक का मिली भगत है। और सरकार द्धारा इन सब बालू के ठेकेदार को घोटाला करने का सुनहरा मौका थाली में परोस कर दिया गया है। बालू के ठेकेदार रात को बालू नदी किनारे ही 50 गज पार बालू खनन का लाइंस दिया गया है जिससे वह रोजाना बालू उठाते है और उसी बालू को बेचा जाता है और डंप किया बालू वैसे के वैसे ही रहता ,इस बालू घोटाले के बारे में आवाज़ उठाता है तो उनके गुंडे उनको परेशान करता है और मारपीट किया जाता है , जमुई जिला में बालू और रोड दुघर्टना के सैकड़ों मुकदमा दर्ज है और जिन पर मुकदमा दर्ज है वो छोटे किसान है या जिनकी जमीनें बालू खनन की वजह से नष्ट हो गया यहां तक कि गरीब किसानों के खेत अब खेती करने लायक नहीं रहा है। सरकार का यह दायित्व है की वो वाटर हार्वेस्टिंग और पैइन की पक्की करन करके उनके खेतों और किसानों को बचाना सरकार का दयात्व है।