AVN News Desk New Delhi: लोकसभा चुनाव में अब कुछ सप्ताह का समय ही बचा है. भारत का निर्वाचन आयोग इस महीने किसी भी वक्त लोकसभा चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा कर सकता है. उससे पहले ही एक बहुत चौंकाने वाले घटनाक्रम में निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया है. उनके पद छोड़ने के बाद भारतीय निर्वाचन आयोग में चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार अकेले ही बचे हैं. तीन सदस्यीय इस आयोग में निर्वाचन आयुक्तों के दोनों पद अब खाली हो गए हैं.
अरुण गोयल के अलावा, दूसरे निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय इस साल फरवरी में ही सेवानिवृत्त हुए थे. तबसे उनकी जगह किसी की भी नियुक्ति नहीं हुई है. अब सवाल यह है कि क्या मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार अकेले ही आगामी लोकसभा चुनावों को संपन्न कराएंगे? आप को बता दें कि सरकार ने हाल ही में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए नया कानून में ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023’ बनाया गया है.
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाले कानून में हुआ है संशोधन
इस नए कानून में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करने वाली चयन समिति से भारत के प्रधान न्यायाधीश यानी चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) को बाहर रखा गया है. नई चयन समिति में प्रधानमंत्री, उनके द्वारा नामित एक किसी कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष शामिल हैं. नए कानून ने ‘चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामकाज का संचालन) अधिनियम, 1991’ को रिप्लेस किया गया है. पुराने कानून के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करने वाले सेलेक्शन पैनल में सीजेआई शामिल हुआ करते थे.
भारत का निर्वाचन (Election Commission of India) आयोग तीन सदस्यों से मिलकर बना है
भारत का निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के प्रावधानों के तहत ही भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों (ECs) से मिलकर ही बनता है. राष्ट्रपति सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर करते हैं/करती हैं. भारतीय निर्वाचन आयोग वर्ष 1950 में गठित हुआ था. ओर तब से लेकर 15 अक्टूबर, 1989 तक आयोग सिर्फ मुख्य निर्वाचन आयोग आयुक्त वाला एकल-सदस्यीय ही निकाय होता था.
फिर 16 अक्टूबर, 1989 से 1 जनवरी, 1990 तक यह तीन-सदस्यीय निकाय रहा है. इस दौरान आरवीएस शास्त्री मुख्य निर्वाचन आयुक्त, एसएस धनोवा और वीएस सहगल निर्वाचन आयुक्त के रूप में आयोग के तीन सदस्य रहे थे. 2 जनवरी, 1990 से 30 सितंबर, 1993 तक यह फिर एकल-सदस्यीय निकाय बन गया और एक बार फिर से 1 अक्टूबर, 1993 से यह तीन-सदस्यीय निकाय बन गया था. तब से ही भारत के निर्वाचन आयोग में सीईसी और 2 ईसी सहित तीन सदस्य होते हैं.
6 वर्ष के लिए होता है CEC और अन्य ECs का कार्यकाल
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दोनों निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष के लिए ही होता है. सीईसी की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष और चुनाव आयुक्तों की 62 वर्ष की होती है. चुनाव आयुक्त का पद और वेतनमान भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान ही होता है. मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग ( Impeachment) के जरिए ही हटाया जा सकता है. या फिर वह स्वयं अपने पद से ही इस्तीफा दे सकते हैं. भारत के निर्वाचन आयोग के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव संपन्न कराने की पूरी जिम्मेदारी होती है.
लोकसभा चुनावों से पहले ही छोड़ा पद
केंद्र सरकार ने अधिसूचना में बताया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 की धारा 11 के खंड (1) के तहत मिले अधिकारों को उपयोग करते हुए राष्ट्रपति ने अरुण गोयल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है जो तत्काल प्रभावी भी हो गया है। इससे पहले, चुनाव आयुक्त अनूप पांडे फरवरी में सेवानिवृत्त हो गए थे। कयास लगाए जा रहे हैं कि गोयल के इस्तीफे से चुनाव की तिथियों पर असर पड़ सकता है।
अरुण गोयल के इस कदम के बाद अब चुनाव आयोग में दो रिक्तियां यानी 2 पद खाली हो गई हैं। 1985 बैच के आईएएस अधिकारी अरुण गोयल ने 21 नवंबर, 2022 को चुनाव आयुक्त का प्रभार ग्रहण यानी संभाला था। वह भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव के पद पर भी रह चुके हैं। उनका कार्यकाल दिसंबर, 2027 तक था। वह अगले साल मुख्य चुनाव आयुक्त के सेवानिवृत्त (Retired) होने के बाद उनकी जगह लेने वाले थे।
अरुण गोयल की नियुक्ति विवादों से घिरी
गौरतलब है कि अरुण गोयल की नियुक्ति विवादों से घिरी रही है। उन्होंने 18 नवंबर, 2022 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। उसके अगले दिन ही उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर गोयल की नियुक्त को चुनौती दी थी। याचिका में उनकी नियुक्ति को मनमाना संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ ही चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यापार के लेन-देन) अधिनियम, 1991 के खिलाफ बताया गया था। शीर्ष अदालत (Supreme Court) की दो सदस्यीय पीठ ने पिछले साल याचिका खारिज कर दी और कहा कि संविधान पीठ ने मामले की समीक्षा की और गोयल की नियुक्ति को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
