AVN News Desk New Delhi : मानहानि मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार ( 26 फ़रवरी) को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। 2018 में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ध्रुव राठी की ओर से जारी एक वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा करने से जुड़े एक आपराधिक मानहानि मामले में जारी समन को हाईकोर्ट के आदेश में बरकरार रखा गया था। गौरतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ इस मामले पर सोमवार को सुनवाई कर सकता है। पांच फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि कथित अपमानजनक सामग्री को दोबारा पोस्ट करने पर मानहानि का कानून लागू होगा।
मानहानि मामले में हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था?
दिल्ली हाई कोर्ट ने पांच फरवरी, 2024 के अपने फैसले में कहा था कि कथित अपमानजनक सामग्री को दोबारा पोस्ट करने पर मानहानि का कानून लागू होगा. हाई कोर्ट ने आगे कहा था कि जिस सामग्री के बारे में किसी को जानकारी नहीं है, उसे रीट्वीट करते समय जिम्मेदारी की भावना से जुड़ी होनी चाहिए.
उसने यह भी कहा था कि मानहानिकारक सामग्री को रीट्वीट करने वाला व्यक्ति अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) संलग्न नहीं करता है तो दंडात्मक समेत उस पर अन्य कार्रवाई होनी चाहिए. हाई कोर्ट ने कहा था, ‘‘इस अदालत का विचार है कि यदि कोई व्यक्ति आम जनता के देखने, सराहने और विश्वास करने के उद्देश्य से कथित मानहानिकारक टिप्पणियों या सामग्री को रीट्वीट/रीपोस्ट करता है, तो प्रथम दृष्टया भारतीय दंड सहिता की धारा 499 (मानहानि) की कठोरता प्रभावी होगी.’’

सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के स्थायी कमीशन मामले में सोमवार को होगी सुनवाई
भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) की महिला अधिकारी प्रियंका त्यागी की याचिका पर भी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा, जिसमें भारतीय तटरक्षक बल में भी महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की मांग की गई है। हालांकि, पहले की हुई सुनवाई में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इन्कार करने के लिए केंद्र और भारतीय तटरक्षक (आईसीजी) को सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आईसीजी (IECG) में महिलाओं के उत्थान के लिए ऐसी नीति बनानी चाहिए, जो कि महिलाओं के लिए ईमानदारी से काम करें।
आप नारी शक्ति की बातें करते हैं फिर अपवाद क्यों हैं?
मामले में पहले की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा था कि आप नारी शक्ति की बातें करते हैं, तो इस मामले में भारतीय तटरक्षक बल में महिला अफसर पर अपवाद क्यों हैं? शीर्ष अदालत ने तटरक्षक बल में कार्यरत एक महिला शॉर्ट सर्विस अपॉइंटमेंट अधिकारी को स्थायी कमीशन देने पर विचार करने से इन्कार पर केंद्र सरकार की आलोचना की थी। कहा था, जब महिला अफसर सीमा संभाल सकती हैं, तो तटों की रक्षा क्यों नहीं कर सकतीं है। अदालत ने कहा है कि, जब सेना और नौसेना महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दे रही है, तो तटरक्षक बल को अछूता नहीं रखा जा सकता है।