AVN News Desk New Delhi : देश में ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम‘ (CAA) के नियम जल्द ही लागू होने जा रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इसके लिए समस्त औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। सूत्रों के मुताबिक, अब सीएए नियम लागू होने का उल्टी गिनती शुरू हो गया है। संभव है कि अगले सप्ताह ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ के नियम लागू हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले ही तीन मुल्कों के छह गैर मुस्लिम प्रवासी समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता मिलने की राह प्रशस्त (Expansive) हो जाएगी।
सूत्रों के अनुसार मिली जानकारी, सीएए नियमों को लागू करने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दे दिया गया है। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही देश में ‘सीएए’ के नियम लागू हो जाएंगे। पिछले माह केंद्रीय गृह मंत्रालय को नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के नियमों को तैयार करने के लिए लोकसभा में अधीनस्थ कानून पर संसदीय समिति की तरफ से एक और विस्तार मिला था। पहले के सेवा विस्तार की अवधि 9 जनवरी को खत्म हो गई थी। सीएए के नियम तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय को सातवीं बार विस्तार प्रदान किया गया था। इससे पहले राज्यसभा से भी गृह मंत्रालय को उक्त विषय पर नियम बनाने व लागू कराने के लिए 6 महीने का विस्तार का समय मिला था।
सीएए नियमों के तहत ऑनलाइन पोर्टल के जरिए ही सभी आवेदन मांगे जाएंगे। इस प्रक्रिया का काम पूरा हो चुका है। नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों के तहत भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश, जिनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान शामिल हैं, वहां से आए गैर मुस्लिम प्रवासी लोगों के लिए भारत की नागरिकता लेने के नियम बहुत आसान हो जाएंगे। इन छह समुदायों में हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म शामिल हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था। एक दिन बाद ही इस विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति भी मिल गई थी। सीएए के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता लेने में बहुत आसानी होगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि सीएए के नियम लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही लागू होंगे।
सीएए, किसी भी व्यक्ति को खुद नागरिकता नहीं देता है। इसके जरिए पात्र व्यक्ति, आवेदन करने के योग्य बनता है। यह कानून उन लोगों पर लागू होगा, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए थे। इसमें प्रवासियों को वह अवधि साबित करनी होगी कि वे इतने समय तक भारत में रह चुके हैं। उन्हें यह भी साबित करना होगा कि वे अपने देशों से धार्मिक उत्पीड़न की वजह से ही भारत आए हैं। वे लोग उन भाषाओं को बोलते हैं, जो भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। उन्हें नागरिक कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को भी पूरा करना होगा। इसके बाद ही प्रवासी आवेदन के पात्र होंगे।
देश में अवैध प्रवासियों के लिए क्या है प्रावधान?
सभी अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार ने साल 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में कुछ संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन को छूट दे दी है। इसका मतलब यह हुआ कि इन धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उनलोगों को प्राप्त है जो भी 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले ही भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में कुछ संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 संसद में पेश किया गया था।
विधेयक का क्या हुआ?
इस विधेयक को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया। लेकिन उस समय राज्य सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से नए सिरे पेश करने की तैयारी है। अब फिर से संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा।
फिर दोनों सदनों से पास कराने की जरूरत क्यों?
फिर संसदीय प्रक्रियाओं के नियम के मुताबिक, अगर कोई विधेयक अगर लोकसभा में पास हो जाता है लेकिन राज्य सभा में पास नहीं हो पाता है और इसी बीच लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है यानी कि उसको फिर से दोनों सदनों में पास कराना होगा। वहीं राज्य सभा से संबंधित नियम बिलकुल अलग है। अगर कोई विधेयक राज्य सभा में लंबित हो और लोकसभा से पास नहीं हो पाता और लोकसभा भंग हो जाती है तो वह विधेयक निष्प्रभावी नहीं होता है। चूंकि यह विधेयक राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और इसी बीच 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया, इसलिए इस विधेयक को फिर से दोनों सदन में पास कराना पड़ा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर यानी सिग्नेचर के बाद यह कानून बन गया है।
कानून को लेकर विवाद क्या है?
विपक्षी पार्टियां का सबसे बड़ा विरोध यह है कि इसमें खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को ही निशाना बनाया गया है। उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का सीधा सीधा उल्लंघन है जो कि समानता के अधिकार की बात करता है।
पूर्वोत्तर के लोगों का आखिर क्या है रुख?
आप को बता दें कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक बड़े वर्ग का कहना है कि अगर नागरिकता संशोधन कानून 2019 को लागू किया जाता है तो पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का बहुत बड़ा संकट पैदा हो सकता है।