Buddha Purnima 2024 : हर साल की तरह इस साल भी वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध को बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म भी हुआ था। बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म लुंबिनी में हुआ जो में वर्तमान नेपाल में है। बुद्ध को बिहार के बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपना पहला उपदेश वाराणसी के पास सारनाथ में दिया था। बुद्ध को कुशीनगर में महापरिनिर्वाण जिसका अर्थ है मृत्यु के बाद मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति हुई।
गौतम बुद्ध का जन्म
गौतम बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व की छठी शताब्दी में हुआ था। कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की पत्नी माया ने एक पुत्र को लुंबिनी के वन में जन्म दिया था, जिसका नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ ने बाद में बौद्ध धर्म की स्थापना की और महात्मा गौतम बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनकी माता के निधन के कुछ दिन बाद उनका पालन पोषण महामाया की बहन गौतमी ने किया।
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16 साल की उम्र में हो गई शादी
सिद्धार्थ का लालन-पालन राजसी ढंग से हुआ था। सिर्फ सोलह साल की उम्र में उनका विवाह यशोधरा से हो गया था। उन्होंने एक पुत्र को भी जन्म दिया, जिसका नाम राहुल था।
जब सिद्धार्थ को हुआ वैराग्य
सिद्धार्थ के पास सभी भोग-विलास की सुविधाएं थीं। उनके महल आलीशान और सभी सुख से भरपूर था, जिनमें हजारों नौकर-नौकरानियाँ थीं। उनके पास मनोरंजन के विभिन्न साधन भी थे। लेकिन एक दिन जब सिद्धार्थ सैर के लिए निकले, तो उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति मिला, जिसका शरीर झुक गया था, बाल सफेद हो चुके थे, और वह मुश्किल से चल पा रहे थे। उस दृश्य ने सिद्धार्थ को सोचने के लिए मजबूर कर दिया।
जब जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष देखा
एक बीमार व्यक्ति से मिलने के बाद, जो अपने अंतिम पड़ाव पर था, सिद्धार्थ ने जीवन और मृत्यु के बीच के संघर्ष को देखा। जब वे थोड़ा और आगे बढ़े, तो उन्हें एक अर्थी दिखाई दिया। चार लोग शव को उठाते हुए अपनी यात्रा की ओर बढ़ रहे थे, जबकि उनके साथी लोग विलाप कर रहे थे। इस दृश्य ने सिद्धार्थ को गहरे विचारों में डूबा दिया।
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जब एक संन्यासी से मिले
सिद्धार्थ के मन में एक विचार आया – कि एक दिन मैं भी बूढ़ा और बीमार हो जाऊंगा, और फिर मेरी भी मृत्यु हो जाएगी। फिर एक दिन, रास्ते में एक संन्यासी से मिले, जिसका चेहरा प्रकाशमय था और होठों पर एक अलग सी मुस्कान थी। संन्यासी का मन सारी मोहमाया से मुक्त था। उसकी उपस्थिति ने सिद्धार्थ को सच्चाई का पथ दिखाया।
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संन्यासी बनने का फैसला
सिद्धार्थ ने अपने सुखद महल को छोड़, भोग विलास को त्यागकर संन्यासी बनने का फैसला किया। उन्होंने अपनी पत्नी और नवजात पुत्र को पीछे छोड़कर वन में निवास किया। वहां उन्होंने कठिन तपस्या और साधना में अपना समय व्यतीत किया। लगभग 35 वर्ष की उम्र में, उन्हें बोधगया के बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्त हुई, और सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन गए। इस प्राप्ति की खुशियों को याद करते हुए, गौतम बुद्ध अनुयायी हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं।
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