Maharashtra Politics With Onion: महाराष्ट्र के प्याज की कीमतों में और एनडीए यानी केंद्र में मोदी सरकार को लोकसभा के इलेक्शन में तगड़ा झटका लगा था। और यहां पर उसे छह में से महज एक ही यानी इकलौती सीट पर जीत हासिल हुई थी। इसकी मुख्य वजह फसल के एक्सपोर्ट पर बैन भी था। इतना ही नहीं राज्य में विधानसभा चुनाव होने में भी कुछ ही समय अब बचा हुआ है। और आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। और व्यापारियों और किसानों ने बजट में प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन नहीं हटाने पर अपनी नाराजगी को अब पूरी तरह जाहिर की है।
नासिक में एक भारतीय जनता पार्टी के नेता ने इस बात को माना है कि प्याज के एक्सपोर्ट पर लगे बैन की वजह से पार्टी को बहुत भारी नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे नेता केंद्रीय नेतृत्व को इसके राजनीतिक असर के बारे में सही से नहीं समझा पाए हैं।
महाराष्ट्र में प्याज के लिए फेमस बेल्ट
नासिक, बीड, डिंडोरी, औरंगाबाद, अहमदनगर और धुले लोकसभा सीटें राज्य की प्याज बेल्ट के लिए जानी जाती हैं। इन सभी की भागीदारी करीब करीब 34 फीसदी है। अकेले नासिक में राज्य की प्याज की खेती का 40 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा है। केवल औरंगाबाद की सीट को छोड़कर ये सभी सीटें एनडीए ने गवां दी थी। औरंगाबाद सीट पर शिंदे की शिवसेना के संदीपन भुमारे ने जीत दर्ज किया था। अहमदनगर और बीड में एनसीपी (SP) के नीलेश लंके और बजरंग सोनवणे जैसे नए लोगों ने सुजय विखे-पाटिल और पंकजा मुंडे जैसे बड़े बीजेपी के दिग्गजों को करारी शिकस्त दी थी।
वही नासिक जिले के बलगन तालुका से शिवसेना के एक नेता ने कहा है कि विपक्षी नेताओं की तरफ से लगातार प्याज की कीमतों का मुद्दा उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा आगे है कि हमने अपने नेताओं से केंद्र के सामने एक्सपोर्ट का मुद्दा उठाने को कहा था। विधानसभा चुनाव काफी करीब हैं और बजट में इस मुद्दे पर कोई भी चर्चा नहीं हुई है। इस वजह से हमारे लिए बाजी शायद उल्टी भी पड़ सकती है।
वही डिंडोरी लोकसभा सीट से एक किसान ने कहा है कि पिछले साल प्याज की कीमतें पर एक्सपोर्ट पर बैन की वजह से कम रहीं थी। मुझे लगा था कि सरकार बजट पर बैन हटा देगी। लेकिन केंद्र सरकार ने इस चीज से कोई भी सबक नहीं सीखा है। विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा छाया रहेगा। हममें से ज्यादातर लोग इस बात से नाराज भी हैं।
एनसीपी (SP) सांसद ने महायुति केंद्र सरकार पर बोला हमला
एनसीपी (SP) के चुने गए सांसद अमोल कोल्हे ने किसानों की मांगो को दोहराते हुए महायुति सरकार पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि चाहे प्याज हो या सोयाबीन सरकार ने इन सब सभी मुद्दों पर पूरी तरह से आंखें बंद कर ली हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव में भी उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। वही सोयाबीन मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाकों में उगाई जाती है। डेयरी किसान भी कम कीमत मिलने की वजह से राज्य सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं। वही 28 जून को महाराष्ट्र विधान सभा में बजट पेश किया गया था। और उस समय डिप्टी सीएम अजित पवार ने डेयरी किसानों के लिए 5 रुपये प्रति लीटर सब्सिडी का ऐलान भी किया था।
वही पिछले साल दिसंबर के महीने में केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र में सूखे की वजह से और कम उपज की आशंका के चलते प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था। और इस साल मार्च में बैन हटा लिया था। इतना ही नहीं कुछ शर्तें भी तय कर दी गईं थीं। शर्तों में यह था कि एमईपी 550 डॉलर प्रति टन और 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी तय किया गया था। व्यापारियों ने कहा है कि इससे प्याज की कीमतों में भारी उछाल आ गया और यह बाकी देशों की तुलना में काफी ज्यादा महंगी हो गई है।
प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष भरत दिघोले ने कहा है कि देश के सबसे बड़े लासलगांव थोक बाजार में प्याज का कारोबार अभी ठीक-ठाक है। यह फिलहाल 2,600-2,800 रुपये प्रति क्विंटल के बीच में है। उन्होंने कहा है कि अगर आप घाटे का हिसाब लगाएंगे तो यह कीमत उन्हें पूरा नहीं कर पाएगी। पहले किसानों को अपनी फसल कम दामों पर बेचने के लिए मजबूर भी होना पड़ता था। अगर सरकार तुरंत ही कोई कदम नहीं उठाती है तो लोकसभा इलेक्शन जैसा हाल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है।
खोखले वादों का नहीं होगा कोई असर
बजट में कृषि के लिए करीब 1.32 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। यह पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी इस बार ज्यादा है। हालांकि, प्याज पर सरकार के रुख ने किसानों को काफी निराश कर दिया है। एपीएमसी के पूर्व अध्यक्ष जयदत्त होलकर ने कहा है कि अगर आप लोकसभा इलेक्शन के नतीजों पर नजर डालें तो अब यह भी साफ है कि प्याज के किसानों ने दूसरे मुद्दों पर इकोनामी को अब प्राथमिकता दी है। और किसानों की युवा पीढ़ी के पास में जानकारी की कमी नहीं है। उन पर खोखले वादों का कोई भी असर नहीं होने वाला है।