उत्तर प्रदेश में विकास और “हर घर बिजली” के बड़े-बड़े दावे तो रोज़ किए जाते हैं, लेकिन हक़ीक़त ये है कि आज भी एक गांव ऐसा हैं जो पूरी तरह अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।आजादी के 78 साल बीत जाने के बाद अभी भी इस गांव के लोग रात में रोशनी के लिए मोमबत्ती का सहारा लेते हैं। मामला सीतापुर जिले के बसावनपुर के ग्राम अन्नीपुर का है। यहां आजादी के बाद अब भी बुनियादी सुविधाओं का राह देख रही है। गांव में करीब 45 घर हैं। लगभग 700 की आबादी वाले इस गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है।

उत्तर प्रदेश के इस गांव में खंभे लगे, फोटो खिंचे, पर तार आज तक नहीं दौड़े

गांव के लोग बताते हैं कि कई बार बिजली विभाग और ठेकेदारों ने खंभे गाड़ दिए, फोटो खिंचवाया, कागजों में योजना पूरी दिखा दी—लेकिन तार आज तक नहीं लगाए गए।
योजना का उद्घाटन हुआ, नेताओं ने भाषण दिए, पर अंधेरा वहीं का वहीं है।

मोमबत्ती और लालटेन ही गांव की जिंदगी

आज भी गांव में बच्चे मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ने को मजबूर हैं। गर्मी में रातें काटना मुश्किल होता है, बूढ़ों की सेहत खराब होती है, और एक बुज़ुर्ग ने आह भरकर कहा—
“बिटवा, हमनी के नसीब में रोशनी कहाँ? बस नेता लोग चुनाव में वादा कर जात हैं।”

उत्तर प्रदेश
गांव में बच्चे मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ने को मजबूर

सरकारों की ऊँची-ऊँची बातें, पर जमीन पर ‘घोर अंधेरा’

केंद्र सरकार कहती है कि पूरा देश बिजली से रोशन है।
राज्य सरकार दावा करती है कि यूपी में 24 घंटे बिजली दी जा रही है। लेकिन सवाल ये है—अगर पूरा देश रोशन है, तो इस गांव का अंधेरा किसकी जिम्मेदारी है?

कागजों में गांव विद्युतीकृत है—लेकिन असल में हाल ये है कि रात 7 बजे के बाद गांव के रास्ते खामोश, घरों के आंगन काले, और किसानों की टोली हाथ में टॉर्च लेकर खेतों तक जाती है। स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र भी अंधेरे के सहारे ,स्कूल में पंखा तक नहीं चलता। स्वास्थ्य केंद्र में रात के वक्त डिलीवरी कराना जोखिम भरा है। मोबाइल चार्ज करने के लिए गांव वाले 3–4 किलोमीटर दूर जाने पर मजबूर हैं। ये सिर्फ विकास की कमी नहीं, बल्कि लोगों के साथ खुला धोखा है।

उत्तर प्रदेश में नेता चुनाव में आते हैं, वादों की फाइलें छोड़ जाते हैं

गांव वाले बताते हैं कि चुनाव के समय नेता जी हेलीकॉप्टर से उतर कर कहते हैं—
सरकार बनने दो, 10 दिन में बिजली दे देंगे।
लेकिन चुनाव जीतते ही नेता गायब और गांव फिर से अंधेरे के हवाले।

जमीनी हकीकत ये है कि बिजली विभाग–ठेकेदार–नेता की तिकड़ी ने मिलकर गरीबों के सपने लूट लिए।

गांव की उम्मीदें अब भी जिंदा… अंधेरे के बावजूद

अंधेरे में जीते-जीते लोग मजबूत जरूर हो गए हैं, लेकिन उम्मीद टूटी नहीं है।
गांव वालों को आज भी भरोसा है कि एक दिन उनके बच्चे भी उजाले में पढ़ेंगे, एक दिन इनके घरों में भी पंखे चलेंगे,
और एक दिन ये गांव भी रोशनी वाले भारत के नक्शे में शामिल होगा।

सवाल सरकारों से… जवाब कब मिलेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री तक ने सबका साथ, सबका विकास की बात कही।

पर इस गांव का विकास किस फाइल में फंसा है?

कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा?

और कब तक गांव अंधेरा ढोता रहेगा?

कागजों में उजाला, ground reality में अंधेरा—ये विकास नहीं, व्यवस्था की नाकामी है।

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