झाझा/जमुई झाझा में 9 साल से एक महिला अपने पति की हत्या के मुआवजे के लिए सरकारी दफ्तर के चक्कर काट रही हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता पर सवाल उठाने वाली यह कहानी केवल एक महिला की नहीं, बल्कि उन हजारों गरीब और मजबूर लोगों की भी है, जिनके अधिकार सरकारी फाइलों में वर्षों से दबे हुए हैं। उन सभी फाइलों पर धूल की परत बैठ गई है, और पीड़ित परिजन वर्षों से न्याय और मुआवजे के लिए सरकारी दफ्तर का चक्कर काट रहे हैं।

झाझा प्रखंड के कनौदी पंचायत की निवासी रीना देवी मुआवजे की राह निहारती

यह कहानी है झाझा प्रखंड के कनौदी पंचायत की निवासी रीना देवी की। उनके पति दरोगा साह की हत्या 9 साल पहले 5 मई 2015 को बांका जिले के नाढ़ा कनौदी गांव में अपराधियों ने गला रेतकर हत्या कर दी थी। उस घटना के बाद जिला प्रशासन ने पीड़िता से मुआवजे का वादा किया था, लेकिन आज तक पति की हत्या का मुआवजा उनके हाथ नहीं लगा। जहां एक ओर उनका पारिवारिक जीवन टूटा, वहीं दूसरी ओर सरकारी अधिकारियों की लापरवाही ने उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से और तोड़ दिया। पति दरोगा साह की मौत के बाद, रीना ने घर चलाने के लिए सिलाई का काम शुरू किया, ताकि किसी तरह अपने 3 बच्चों को पाल-पोस सके। उसकी एक बेटी जो अब 21 वर्ष की हो चुकी है, उसकी शादी की चिंता भी अब उनके सिर पर है। लेकिन 9 साल की लंबी अवधि में, उनके द्वारा मुआवजे के लिए किए गए सभी प्रयासों ने केवल एक ही परिणाम दिया- अधिकारियों के चैम्बर के बाहर घंटों का इंतजार और असंवेदनशीलता का सामना करती है। वह बताती हैं कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि पति के मौत के बाद जिला प्रशासन मुझे इतना बेबस और मजबूर करेगी। हर बार अधिकारी यही कहते हैं, ‘फाइल चली गई है, ऊपर से मंजूरी आनी है, इंतजार करो’। लेकिन हम और कब तक इंतजार करें?”। वही उनके लिए यह सवाल अब सिर्फ एक मुआवजे का नहीं है, बल्कि उस सिस्टम का है जो सिर्फ कागजों पर ही काम करता है। यह सिलसिला सिर्फ एक तक ही सीमित नहीं है। देशभर में ऐसे असंख्य मामले हैं, जहाँ गरीब, मजदूर, अशिक्षित और जरूरतमंदों को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित रखा जाता है। भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के चलते ये सभी अधिकारी किसी बेबस महिला को न्याय देने के बजाय उन्हें 9 साल से सरकारी दफ्तर और कागजी कार्यवाही में उलझाकर अपने कर्तव्यों से बचते आ रहे हैं। आखिरकार, सवाल यही उठता है कि क्या मुआवजा पाने के लिए क्या किसी महिला को अपनी पूरी जिंदगी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते हुए गुजारनी पड़ेगी? क्या वह दिन कभी आएगा जब सरकारी तंत्र की लापरवाही के खिलाफ एक मजबूत कदम उठाया जाएगा? जब तक ऐसे सवालों के जवाब नहीं मिलते है, तब तक ऐसी महिलाओं का संघर्ष सरकारी सिस्टम से ऐसे ही जारी रहेगा, जो सिर्फ न्याय और अपने हक की मांग की आश देख रहे हैं।

झाझा
कनौदी पंचायत की निवासी रीना देवी मुआवजे की राह निहारती

देश दुनिया की खबरों की अपडेट के लिए AVN News  पर बने रहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *