महाराष्ट्र: लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले दोबारा से महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग जोर पकड़ रही है. इसके लिए राजनीतिक गतिविधियां भी बहुत तेज हो चुकी हैं. इस समय बीजेपी-शिवसेना (शिंदे) गुट सत्ता में है.
विपक्ष के विचारों को जानने की कोशिश
मौजूदा सरकार ने पहली बार विपक्ष के विचारों को जानने की कोशिश की है. मराठा समुदाय के लोगो की राज्य में आबादी का एक तिहाई है. इस समुदाय की महाराष्ट्र की राजनीति में गहरी पकड़ और दखल है पहले से ही . मराठा समुदाय के लोग सरकारी नौकरी और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की समय समय पर डिमांड करता रहा है. हालांकि ये जो डिमांड है वो आज के समय की नहीं है. यह मांग तक़रीबन 32 साल पहले यानि 1981 से हो रही है.
मराठा आरक्षण को लेकर पहला विरोध प्रदर्शन
मराठा आरक्षण को लेकर पहला विरोध प्रदर्शन तकरीबन 32 साल पहले हुआ था. मथाडी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में इसकी पहली बार मांग रखी. इसके बाद से लगातार इसकी समय समय पर डिमांड होती रही है. अब 1 सितंबर से विरोध ने दोबारा से जोर पकड़ा है. तब प्रदर्शन कर रहे मराठाओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया था. जलना में जारांगे-पाटिल भूख हड़ताल पर बैठ गए थे. दशकों पुरानी इस मांग का अभी तक कोई स्थाई समाधान नहीं निकाल पाया है.
पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की अगुवाई
2014 में भी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की अगुवाई में राज्य सरकार ने नारायण राणे आयोग की सिफारिशों के आधार पर मराठों को 16 फीसदी आरक्षण देने का एक अध्यादेश सामने रखा था.
पूर्व महाराष्ट्र राज्य सरकार ने मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था. मुंबई उच्च न्यायालय ने इसे घटा दिया था. उसने नौकरियों में 13 फीसदी और शिक्षा में 12 फीसदी किया था. हालांकि 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के इस निर्णय को रद्द कर डाला. मौजूदा विरोध की तेजी को देखते हुए सरकार ने ऐलान किया कि मध्य महाराष्ट्र के क्षेत्र के मराठा अगर निजाम युग से कुनबी के रूप में वर्गीकृत करने वाले प्रमाण पत्र सामने रख दें तो वे ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का फायदा उठा सकते हैं.
कुनबी के रूप में वर्गीकृत करने वाले प्रमाण पत्र
राज्य सरकार द्वारा कुनबी होने का प्रमाणपत्र मांगे जाने को लेकर प्रदर्शनकारी हताश और काफी निराश हैं. मराठा समूह के अनुसार वह बगैर किसी शर्त के आरक्षण प्राप्त करना चाहते हैं. जारांगे-पाटिल और कुछ मराठा संगठनों के अनुसार, सितंबर 1948 में मध्य महाराष्ट्र में निजाम का शासन जाने तक मराठों को कुनबी माना गया था. वे ओबीसी थे. वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग और कुनबी समूह इस बात से चिढ़े हुए हैं कि नए लोगों को आरक्षण मिलने पर उनके हक का क्या होगा?
सीएम शिंदे का बड़ा एलान
मराठा आरक्षण के मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बड़ा ऐलान किया है. मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि कुनबी जाति प्रमाण पत्र उन लोगों को ही दिया जाएगा जिनके पास राजस्व और अन्य निजाम युग के रिकॉर्ड हैं. मुख्यमंत्री शिंदे की इस घोषणा से मराठा आरक्षण के लिए जालना में चल रही मनोज जारांगे की भूख हड़ताल सफल होने के संकेत तो मिल रहे हैं.