बिहार, एक ऐसा राज्य जो ज्ञान, संस्कृति और मेहनत के लिए पूरे देश में जाना जाता है। यहाँ चाणक्य जैसे विचारक हुए, आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ, और बौद्ध धर्म की जन्मभूमि भी यही है। लेकिन फिर भी, आज बिहार का नौजवान ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए मुंबई, दिल्ली, पंजाब या गुजरात की तरफ सफ़र करता है — सिर्फ़ दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए। बिहार में सुशासन बाबू और भाजपा की डबल इंजन की सरकार है लगभग दो दशकों से अब भी यही सवाल:
“छोटे-छोटे गाँवों में पलते हैं बड़े-बड़े सपने,
पर अफ़सोस, वो सपने पूरे करने के लिए
बिहार का लड़का अपने ही घर से दूर हो जाता है…”
आख़िर क्यूँ? क्यूँ बिहार का लड़का आज भी अपने घर, अपने खेत, अपने माँ-बाप को छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर चला जाता है?
1. रोजगार का अभाव
सबसे बड़ी सच्चाई ये है कि बिहार में स्थायी और सम्मानजनक रोजगार का भारी अभाव है।
यहाँ ज़्यादातर नौकरियाँ सरकारी हैं — और सरकारी नौकरी मिलना है भी तो ‘भाग्य’ और ‘भर्ती प्रक्रिया’ पर निर्भर है।
प्राइवेट इंडस्ट्री? फैक्ट्री? MNC? नाम मात्र की ही मौजूद हैं।
जब कोई पढ़ा-लिखा लड़का B.A., B.Sc., M.A. कर लेता है और फिर भी नौकरी ना मिले — तो या तो वो निराश होकर खेती करने लगे (जिसमें आमदनी बहुत कम है), या फिर बाहर जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता।
2. बिहार में शिक्षा है, लेकिन स्किल नहीं
बिहार में शिक्षा की व्यवस्था ज़्यादा तर थ्योरी आधारित है।
डिग्री तो बहुतों के पास है — लेकिन कंप्यूटर, अंग्रेज़ी, मैनेजमेंट या तकनीकी स्किल्स की कमी के कारण वो बाज़ार के हिसाब से तैयार नहीं हैं।
बाहर के शहरों में कोर्स, ट्रेनिंग सेंटर, कोचिंग व अप-टू-डेट माहौल मिलता है — जिससे युवाओं को रोज़गार के बेहतर मौके मिलते हैं।
3. उद्योग-धंधों का नाश
एक समय था जब बिहार में चीनी मिलें, कपड़ा मिलें और छोटी-बड़ी फैक्ट्रियाँ थीं।
लेकिन अब? ज़्यादातर मिलें बंद पड़ी हैं।
सरकारों की बेरुख़ी, नीतियों की कमी, और राजनीति के कारण उद्योग नहीं पनप सके।
जब उद्योग नहीं, तो रोज़गार कहाँ से आए?
4. गाँवों की बदहाली और शहरों की भीड़
गाँवों में अभी भी बिजली-पानी, सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है।
ऐसे माहौल में कोई कैसे अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दे सकता है?
और शहरों की हालत — पटना को छोड़ दें तो बाक़ी शहरों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
कोई IT पार्क नहीं, ज़्यादा बड़े कॉलेज नहीं, और न ही स्टार्टअप्स का माहौल।
5. भावनात्मक पहलू – दिल पर लगे घाव
बिहार का लड़का जब घर छोड़ता है, तो सिर्फ़ शरीर ही नहीं जाता — उसका दिल, उसकी आत्मा वहीं गाँव में छूट जाती है।
माँ की रोटियाँ
पिता की थकी आँखें
बहन की शादी की चिंता
और गाँव की मिट्टी की खुशबू
हर चीज़ उसकी यादों में ज़िंदा रहती है।
पर वो क्या करे?
वो जानता है कि यहीं रह गया तो उसके सपने, उसका जीवन — सब ठहर जाएगा।
इसलिए वो मजबूरी में जाता है। ये ‘चॉइस’ नहीं है, ये ‘ज़िम्मेदारी’ है।
6. फिर भी लौटने की आस
हर बिहारी लड़के के दिल में एक सपना होता है:
“एक दिन ऐसा आएगा, जब मैं वापस अपने गाँव लौटूँगा — और यहीं कुछ बड़ा करूंगा।”
कुछ लोग सच में लौटते भी हैं — स्कूल खोलते हैं, खेती में नया प्रयोग करते हैं, या नौकरी छोड़कर स्टार्टअप शुरू करते हैं।
लेकिन ऐसे उदाहरण अभी बहुत कम हैं। ज़रूरत है कि सरकार, समाज और निजी संस्थान मिलकर ऐसा माहौल बनाएं जहाँ बिहार का लड़का बिहार में ही रहकर अपना सपना पूरा कर सके।
बिहार में सब कुछ है — सबसे बड़ा युवा वाले राज्य, कुछ ज़मीन है, मेहनती लोग हैं, टैलेंट है, इतिहास है, संस्कृति है।
बस, जो नहीं है — वह है सुनियोजित विकास, उद्योग, रोज़गार के मौके, और समर्थन।
जिस दिन ये सब मिल जाएगा, उस दिन बिहार का लड़का बाहर नहीं जाएगा — बल्कि देश के कोने-कोने से लोग बिहार में काम करने आएंगे मगर ऐसा होगा ?
“जिस मिट्टी ने चाणक्य को जन्म दिया,
वो मिट्टी आज भी महान है…
बस, ज़रूरत है एक नई शुरुआत की —
ताकि हर बिहारी लड़का गर्व से कह सके:
‘मैं यहीं हूँ, और यहीं रहूँगा!‘”