नवरात्रि का समय आध्यात्म का, भक्ति का, पवित्रता का होता है। लोग माँ दुर्गा की पूजा करते हैं, कलश स्थापित करते हैं, व्रत रखते हैं, स्तुति व कीर्तन करते हैं। यह पर्व अच्छाई की जीत, अज्ञान और अधर्म पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है।
लेकिन उसी देश में, उसी समाज में, मासूम बच्चियों के साथ होने वाले हृदयविदारक अपराधों की खबरें हमें झकझोर देती हैं — बलात्कार, दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न — और वे बाकी पर्वों की पवित्रता पर एक काला दाग बन जाती हैं।
आइए, इस विरोधाभास को देखें — धार्मिक आस्था और सामाजिक असुरक्षा के बीच — और महसूस करें हमारी ज़िम्मेदारी।
नवरात्रि: श्रद्धा, शक्ति और पवित्रता
नवरात्रि नाम की उत्पत्ति है — “नव” अर्थात् नौ और “रात्रि” अर्थात् रातें। ये नौ रातें और दस दिन देवी दुर्गा की नौ स्वरूपों की पूजा व स्तुति की जाती हैं।
शक्ति, साहस, ज्ञान और करुणा के रूप में देवी के ये स्वरूप हममें नैतिक चेतना, आत्मशुद्धि और अनुशासन का भाव जगाते हैं।
नवरात्रि में भक्त उपवास करते हैं, ध्यान करते हैं, व्रत-नियम और अनुशासन अपनाते हैं — वह समय है आत्मनिरीक्षण और सुधार का।
एक विशेष अनुष्ठान है कुमारी पूजा — जहाँ नन्हीं कन्याओं को माता की रूप में पूजित किया जाता है। यह बताता है कि समाज उन्हें देवी का रूप देखे, उनके सम्मान की भावना जगे।
लेकिन, क्या हम वही विचार घर से बाहर भी ज़मीनी हकीकत में लागू करते हैं?
डरावनी हकीकत: मासूमों पर अत्याचार — आंकड़े और घटनाएँ

आंकड़ों का संक्षिप्त विश्लेषण
भारत में बाल यौन उत्पीड़न (Child Sexual Abuse, CSA) एक गंभीर समस्या है, और इसकी गंभीर प्रकृति को छिपाया जाता है क्योंकि बहुत से मामले दर्ज नहीं होते।
मध्य प्रदेश में लगभग 4,928 मामले नाबालिगों के साथ दुष्कर्म के अब भी लंबित हैं; उनमें से लगभग 2,593 आरोपियों को जमानत मिली है।
कई अदालतों और सरकारों को यह स्वीकार करना पड़ा है कि अपराधों की रिपोर्टिंग, जांच तथा निर्णय प्रक्रिया में बहुत देरी है।

कुछ ताज़ा और दिल दहलाने वाली घटनाएँ
छत्तीसगढ़ के बलोद जिले में एक 9 वर्ष की बच्ची को “दुर्गा पंडाल देखने ले जाने” के बहाने उसके अंकल ने जंगल में ले जाकर दुष्कर्म किया।
बहराइच (उत्तर प्रदेश) में चार अलग-अलग नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाले आरोपी को आजीवन कारावास की सजा दी गयी।
समस्तीपुर (बिहार) में अपनी ही कजिन द्वारा एक नाबालिग लड़की का यौन शोषण किया गया।
सीकर (राजस्थान) की एक 15 वर्षीय लड़की ने अदालत में बोला कि आरोपी “चाचा” था — विश्वास तोड़ने की इस घटना पर न्यायालय ने 20 वर्ष की सजा दी।
ये घटनाएँ मात्र एक चोंके देने वाली झलक हैं, पूरे तथ्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर पातीं। कितनी कथाएँ होती होंगी जो कभी प्रकाश में नहीं आतीं — चुप रहने की मजबूरी, डर, सामाजिक अपमान, कानूनी प्रक्रिया की टूट-फूट।
एक ओर पूजा, दूसरी ओर पीड़ा — कितना बड़ा विरोधाभास
नवरात्रि हमें यह सिखाती है कि धर्म और भक्ति का आधार ही अच्छाई, सुरक्षा, करुणा और सम्मान है।
लेकिन यदि हमारी ही धरातल पर, हमारी ही कलियों के साथ अत्याचार हो रहा हो — तो उस पूजा की पवित्रता क्या मायने रखती है?
एक तरफ हम व्रत रखते हैं, देवी से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें बुराई से बचाए।
दूसरी तरफ, हमारी नन्हीं बेटियाँ — वे जिन्हें समाज “देवी” जैसा आदर देना सिखाता है — उनकी हिफाज़त हम नहीं कर पाते।
यह सिर्फ विरोधाभास नहीं, यह एक चेतावनी है — हमें भक्ति के साथ-साथ कर्तव्य का पालन करना होगा।
हमारी ज़िम्मेदारी: बदलाव की राह
1. जागरूकता और शिक्षा
परिवारों और समाज में बच्चों को यौन शिक्षा देना चाहिए — यह शर्म की बात नहीं, बल्कि सुरक्षा का आधार है। बच्चों को अपने शरीर का अधिकार, “ना”-कहने की शक्ति, और सुरक्षित संपर्कों का ज्ञान देना महत्वपूर्ण है।
2. प्रणाली की मजबूती
पुलिस और न्यायालयों को त्वरित कार्रवाई करनी होगी।
Special POCSO Courts और Fast Track Courts को और अधिक संवेदनशील, कुशल बनाना होगा।
अभियुक्तों को निराधार जमानत से रोका जाना चाहिए जब मामला गंभीर हो।
3. सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव
स्त्री सम्मान का नारा केवल शब्दों में न हो — उसे व्यवहार में लागू करना होगा।
बलात्कार पीड़ितों और उनके परिवारों को सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समर्थन देना चाहिए — शर्मिंदगी और अपमान उन्हें और घायल करता है।
मीडिया और सामाजिक मंचों को बेहतर और जिम्मेदार रिपोर्टिंग करनी चाहिए — पीड़ित की गरिमा बनाए रखना अनिवार्य है।
4. हर इंसान की भागीदारी
यदि किसी संदिग्ध गतिविधि को देखा जाए — नज़दीक जाकर, स्थानीय प्रशासन को सूचना देना चाहिए।
समुदायों में पल-जेपी (Protection, Listening, Empowerment) कार्यक्रम हों जो बच्चों को सुरक्षित वातावरण दें।
स्कूलों, मंदिरों, पंडालों आदि सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा और निगरानी बढ़ाई जाए।
क्या हम अपने भीतर के अधर्मी — उदासीनता, भेदभाव, भय — को समाप्त कर सकते हैं?
नवरात्रि हमें याद दिलाती है — “अहिंसा, सत्य, करुणा, चेतना” — ये सिर्फ पूजा-कर्म नहीं, जीवन की मूल व्यवस्थाएँ हैं।
जब हम माता रानी की आराधना करते हैं, हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपने समाज की नन्हीं बेटियों की रक्षा करेंगे, उन्हें डर और पाप से दूर रखेंगे।
दुर्गा ने अधर्मी — महिषासुर — को नाश किया। लेकिन क्या हम अपने भीतर के अधर्मी — उदासीनता, भेदभाव, भय — को समाप्त कर सकते हैं?
हाँ, वे दिन दूर नहीं हैं यदि हम मिलकर आवाज़ उठाएँ, नियम कड़ाई से लागू हों, और समाज जागे। तब ही माँ की शक्ति — जीवन व न्याय की शक्ति — हमारे जीवन में मूल रूप से निवास कर पाएगी।
