जब सबकुछ हाथ से छूटता दिख रहा हो

जब सबकुछ हाथ से छूटता दिख रहा हो, समझ जाना या तो मृत्यु करीब है या फिर मंजिल …!

जब सबकुछ खोता-सा लगे तो पहचानो: या तो अंत आता है, या एक नई शुरुआत जन्म लेती है

जीवन में कई ऐसे क्षण आते हैं जब इंसान को लगता है कि सबकुछ हाथ से निकल रहा है—

सपने, रिश्ते, अवसर, ऊर्जा, उम्मीद…

मानो अचानक जीवन नियंत्रण से बाहर हो गया हो।

ऐसे समय में यह कथन एक गहरी सच्चाई सामने लाता है:

“जब सबकुछ बिखरता हुआ लगे, समझो या तो अंत निकट है, या फिर एक असाधारण शुरुआत होने वाली है।”

क्योंकि जीवन में “कठिन मोड़” अक्सर या तो “अंतिम मोड़” होते हैं,

या “मंज़िल का दरवाज़ा खोलने वाले मोड़”।

  1. बिखराव—अंत की चेतावनी या नई रचना की शुरुआत?

एक बीज को पेड़ बनने के लिए पहले मिट्टी में दबना पड़ता है, फिर टूटना पड़ता है।

बाहर से देखने वाले को लगता है कि उसका अंत हो गया—

पर वही टूटना उसके जीवन का आरंभ होता है।

मानव जीवन भी इससे अलग नहीं।

जब सबकुछ बिखरता है, तो दो संभावनाएँ बनती हैं:

(1) मृत्यु का संकेत

यह “मृत्यु” केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक भी हो सकती है—

  • सपनों की मृत्यु
  • आत्मविश्वास की मृत्यु
  • उम्मीद की मृत्यु
  • संघर्ष की इच्छा का अंत

जब भीतर की ऊर्जा खत्म हो जाए और व्यक्ति हार मान ले,

तब धीरे-धीरे वह खुद जीवन से दूर होने लगता है।

(2) मंज़िल के पास पहुँचने का संकेत

जब कोई व्यक्ति अपनी सीमाओं को पार करने लगता है,

तो उसकी पुरानी दुनिया टूटने लगती है।

पुराने रिश्ते छूटते हैं, पुरानी सोच मरती है, पुराने अवसर समाप्त होते हैं।

क्योंकि एक “नई ऊँचाई” उसे बुला रही होती है।

  1. क्यों बड़ी सफलता से पहले जीवन टूटा-टूटा लगता है?
  • जब इंसान अपनी क्षमता की सीमा तक पहुँचता है, तो आगे बढ़ने के लिए पुराने ढाँचे टूटते ही हैं।
  • हर नई स्थिति पुराने आराम ज़ोन के अंत से शुरू होती है।
  •  हर उपलब्धि के पहले एक अनुशासन, त्याग  और अकेलेपन का दौर आता है।

इतिहास इसका गवाह है—

  • महान खोजें उन्हीं के हिस्से आईं जिनके सामने एक समय अंधेरा था।
  • अंधेरा अक्सर सूरज के आने का संकेत होता है।
  1. पीड़ा का अर्थ: किस दिशा में जा रहे हो?

जब स्थिति दर्द दे, तो यह पहचानना ज़रूरी है कि यह दर्द किस दिशा का है:

(1) टूटने का दर्द जब सबकुछ हाथ से छूटता दिख रहा हो

जब आप भीतर से हार चुके हों,

जब कोई लक्ष्य न रहे,

जब अस्तित्व का आधार खो जाए—

तो यह “अंत” का दर्द है।

(2) बदलने का दर्द

जब संसार साथ न दे रहा हो,

चुनौतियाँ बढ़ रही हों,

स्थिति नियंत्रण से बाहर हो,

तो यह “विकास” का दर्द है—

जो मंज़िल के पास पहुँचने पर आता है।

दोनों दर्द एक जैसे लगते हैं,

पर दिशा अलग-अलग होती है।

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  1. संघर्ष का चरम—मंज़िल का सबसे नज़दीकी बिंदु
  • चैंपियन बनने से कुछ क्षण पहले अक्सर खिलाड़ी हार मानने जैसा महसूस करता है।
  • व्यवसाय चलने से ठीक पहले उद्यमी को लगता है कि सब खत्म हो चुका है।
  • सफलता आने से ठीक पहले मनुष्य के पास लगभग कुछ नहीं बचता।

क्योंकि प्रकृति ऐसा ही है—

“सबसे घोर अंधेरा उसी समय होता है जब सूर्योदय बस होने वाला हो।”

  1. कैसे पहचानें कि यह अंत है या मंज़िल?

यदि ऊर्जा खत्म हो रही है → अंत

अगर आप रोज़ थोड़ा-थोड़ा कमजोर हो रहे हैं,

और दिशा ही नहीं दिख रही—

तो यह ब्रेक चाहिए, उपचार चाहिए।

 यदि दर्द बढ़ रहा है लेकिन इच्छा जिंदा है → मंज़िल

अगर भीतर की जिद अब भी जल रही है,

चाहत अब भी बची है,

और दिल बार-बार कह रहा है “रुकना मत”

तो यह मंज़िल से ठीक पहले का दौर है।

निष्कर्ष

टूटना हमेशा अंत नहीं होता

जीवन में जब सबकुछ हाथ से फिसलता महसूस हो,

तो घबराओ मत।

यह जीवन का संकेत है कि एक बड़ा मोड़ आने वाला है।

कभी वह मोड़ “अंत” होता है,

और कभी “नई शुरुआत”।

अंतर बस इतना है—

“कौन-सा दर्द आपको रोक रहा है,

और कौन-सा दर्द आपको आगे धकेल रहा है।”

जो आगे धकेल रहा है,

वही आपकी मंज़िल है।

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Note :-

Disclaimer: यह आर्टिकल व लेख केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए है। यह आर्टिकल प्रकाशक किसी भी त्रुटि या चूक के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

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By: KP
Edited  by: KP

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