Our India: भारत, जिसे विविधता में एकता का प्रतीक माना जाता है, सदियों से अनेक धर्मों, संस्कृतियों, और परंपराओं का संगम स्थल रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में धर्म के नाम पर समाज में बढ़ती विभाजनकारी प्रवृत्तियां चिंता का विषय बन गई हैं। धार्मिक असहिष्णुता, साम्प्रदायिक हिंसा, और राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का उपयोग जैसे मुद्दे भारतीय समाज की स्थिरता और एकता के लिए एक चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं।
भारत में धार्मिक विविधता और उसका महत्व
भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी जैसे विभिन्न धर्मों के अनुयायी यहां रहते हैं। यह विविधता भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक हिस्सा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। लेकिन जब धर्म को राजनीति और समाज में विभाजन का औजार बनाया जाता है, तो यह सहिष्णुता और एकता को कमजोर करता है।
धर्म के नाम पर बढ़ता हुआ ध्रुवीकरण
धर्म के नाम पर विभाजन के पीछे मुख्यतः दो कारण दिखाई देते हैं:
1. राजनीतिक स्वार्थ:
कई बार राजनेता और राजनीतिक दल धर्म और जाति के मुद्दों को भड़काकर वोट बैंक की राजनीति करते हैं। चुनावों में धर्म आधारित ध्रुवीकरण करना समाज में तनाव और संघर्ष को बढ़ावा देता है।
2. सामाजिक पूर्वाग्रह:
धार्मिक असहिष्णुता और सांप्रदायिकता की जड़ें समाज में गहरी हैं। धार्मिक मिथकों, पूर्वाग्रहों और भ्रामक सूचनाओं के कारण विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास पनपता है।
धर्म के नाम पर हिंसा और उसके प्रभाव
साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक कट्टरता, और हिंसा का सीधा असर समाज की शांति और स्थिरता पर पड़ता है।
1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद के दंगे इसका एक बड़ा उदाहरण हैं।
2002 के गुजरात दंगे और हाल के समय में लिंचिंग की ढेरों घटनाएं समाज में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता का संकेत हैं।
इन घटनाओं के कारण न केवल निर्दोष लोगों की जान जाती है, बल्कि समाज में डर और असुरक्षा का माहौल भी बनता है।
धर्म के नाम पर समाज का बंटवारा: समाधान के उपाय
शिक्षा और जागरूकता:
धार्मिक सहिष्णुता और मानवतावाद पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। समाज में जागरूकता फैलाने के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
कानूनी कार्रवाई:
धार्मिक उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कानूनों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
मीडिया की भूमिका:
मीडिया को जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करनी चाहिए।
धार्मिक मामलों में निष्पक्षता और सत्यता को प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन कुछ मीडिया जिस प्रकार से समाज में भ्रम फैला रहा है ये अच्छे समाज की निशानी नहीं है।
सामुदायिक भागीदारी:
विभिन्न धर्मों के समुदायों को आपसी संवाद और मेल-जोल के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
धार्मिक नेताओं को शांति और सहिष्णुता का संदेश देना चाहिए।
निष्कर्ष
धर्म का उद्देश्य मानवता को जोड़ना और सह-अस्तित्व की भावना को प्रोत्साहित करना है। लेकिन जब इसे विभाजन और हिंसा का माध्यम बनाया जाता है, तो यह समाज को तोड़ने का कारण बनता है। भारत को अपनी विविधता में गर्व करते हुए सहिष्णुता, समावेशिता, और प्रेम के मार्ग पर चलना होगा। अगर समाज में एकता बनी रहेगी, तो भारत वास्तव में “सर्वधर्म समभाव” का आदर्श उदाहरण बन जाएगा।