मुसहर समाज की पीड़ा

क्या है मुसहर समाज की पीड़ा? एक संवेदनशील और शोधपरक लेख…!   

मुसहर समाज की पीड़ा: इतिहास, वर्तमान स्थिति और कितना परिवर्तन की राह है..

भारत की सामाजिक संरचना में कई ऐसे समुदाय हैं जो सदियों से उपेक्षा, गरीबी और सामाजिक भेदभाव का बोझ ढोते आए हैं। “मुसहर समाज”—मुख्यतः बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और बंगाल के कुछ हिस्सों में रहने वाला दलित समुदाय—ऐसा ही एक समूह है जिसकी पीड़ा और संघर्ष अक्सर मुख्यधारा की चर्चा से दूर रह जाते हैं। “मुसहर” शब्द ही उनकी ऐतिहासिक अभाव की ओर संकेत करता है; यह शब्द “मूस खाकर जीवित रहने वाले” समुदाय के रूप में उनके प्रति अपमानजनक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

नीचे मुसहर समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, ऐतिहासिक उत्पीड़न और बदलाव की संभावनाओं पर एक चर्चा की गई है।

  1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और जातिगत भेदभाव

मुसहर जाति को भारत में दलितों के भीतर भी सबसे निचले पायदान पर माना गया।

सदियों से इन्हें

  • खेतिहर मजदूर।
  • बंधुआ श्रमिक।
  • ज़मींदारों के खेतों में बिना उचित मजदूरी के काम करने वाले रूप में रखा गया।

उन्हें न केवल सामाजिक तौर पर ‘अस्पृश्य’ माना गया बल्कि आर्थिक, शैक्षिक व राजनीतिक संसाधनों तक पहुँच भी लगभग छीन ली गई। इस गहरी ऐतिहासिक अभाव ने मुसहर समुदाय में “अत्यधिक गरीबी, अशिक्षा और निर्भरता” को जन्म दिया।

मुसहर समाज की पीड़ा

  1. गरीबी और भूख: सबसे बड़ी पीड़ा

भारत के सबसे गरीब समुदायों में मुसहर समाज का नाम आता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई मुसहर बस्तियाँ ऐसी हैं जहाँ

  • दो वक़्त का भोजन पाना कठिन होता है।
  • पेट भरने के लिए श्रम के बावजूद पर्याप्त मजदूरी नहीं मिलती।
  • कुपोषण और भूख जैसी समस्याएँ आम हैं।

अर्थव्यवस्था का आधार आज भी दैनिक मजदूरी और अस्थायी काम है, जिसमें अनिश्चितता सबसे बड़ी समस्या है। कई बार काम के अभाव में उन्हें मजबूरी में पलायन भी करना पड़ता है।

  1. शिक्षा से वंचित: पीढ़ियों की बेड़ियाँ

मुसहर समाज की सबसे विकट स्थिति शिक्षा में पिछड़ापन है।

कई सर्वेक्षणों और रिपोर्टों के अनुसार:

  • साक्षरता दर अत्यंत कम,
  • स्कूल ड्रॉपआउट रेट बहुत अधिक,
  • बच्चों का शिक्षा से जल्दी कट जाना,
  • माता-पिता का भी शिक्षा के प्रति सीमित जागरूक होना,

  इनकी विषम परिस्थितियों के कारण है।

गरीबी, जातिगत भेदभाव, और बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते स्कूली शिक्षा इन बच्चों के लिए एक दूर का सपना बन जाती है।

  1. स्वास्थ्य सेवाओं से दूरी

मुसहर बस्तियाँ मुख्यतः गाँवों के किनारे, अलग-थलग स्थानों पर बसाई गई हैं।

इस कारण उन्हें:

  • स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुँच,
  • दवाइयाँ,
  • प्रसूति सेवाएँ,
  • टीकाकरण,

  जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ता है।

कुपोषण, एनीमिया, मलेरिया, डायरिया जैसी बीमारियाँ इस समुदाय में आम हैं क्योंकि उनका जीवन पर्यावरणीय और स्वास्थ्य सुरक्षा से दूर है।

  1.  भूमि और आजीविका से वंचित 

इतिहास में मुसहर समाज को अपनी जमीनें नहीं मिलीं। आज भी अधिकांश लोग

  • भूमिहीन
  • चरवाहे
  • खेत मजदूर
  • निर्माण कार्य में दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्य करते हैं।

भूमिहीनता ने उन्हें न केवल आर्थिक रूप से कमजोर रखा बल्कि सामाजिक रूप से भी निर्भर और असुरक्षित बनाए रखा।

  1. महिलाओं की दोहरी पीड़ा

मुसहर समाज की महिलाएँ दोहरी मार झेलती हैं—

  1. एक तो समाज की सामूहिक गरीबी और अभाव 
  2. दूसरा लैंगिक भेदभाव

महिलाओं का श्रम अधिक होता है लेकिन उन्हें पहचान और सम्मान कम मिलता है।

  • बाल विवाह,
  • कुपोषण,
  • स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी,
  • घरेलू हिंसा

जैसी समस्याएँ अधिक देखने को मिलती हैं।

  1. नशा का अत्यधिक सेवन 
  • मुसहर समाज के लोग अपने घरों में देशी शराब और अन्य नशा का सामान बनकर बेचते है, जिससे उनका जीवन व्यवान चलता है, और जिसके कारण उन लोगों को कम उम्र में नशा करने की बुरी लत लग जाती है।
  • नशा के कारण अपने घरों में हिंसा करते, अपने पत्नी और बच्चों के साथ मर – पीट करते है।
  • अत्यधिक देसी नाश करने कारण, पुरुषों को गंभीर बिमारियों का समाना करना पड़ता, जिस कारण कम उम्र ही उनकी मृत्यु हो जाती है।
  1. सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव

आज भी कई जगह मुसहर समुदाय सामाजिक भेदभाव का सामना करता है।

  • उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में पिछली कतार में रखा जाता है,
  • पानी के हैंडपंप से पानी भरने में रोक लगाई जाती है,
  • मंदिरों में प्रवेश पर रोक,
  • ‘छुआ-छूत’ की मानसिकता
  •  कई क्षेत्रों में देखने को मिलती है।

यह भेदभाव उनके आत्मविश्वास और सामाजिक न्याय दोनों के लिए सबसे बड़ी बाधा है।

  1. सरकारी योजनाएँ और बदलाव के संकेत

पिछले कुछ वर्षों में मुसहर समाज के उत्थान के लिए कई योजनाएँ लागू हुई हैं, जैसे—

  • आवास योजनाएँ
  • छात्रवृत्ति
  • स्कूलों में निःशुल्क भोजन
  • मनरेगा जैसी रोजगार योजनाएँ
  • स्वास्थ्य शिविर

हालाँकि इन योजनाओं का प्रभाव अभी भी सीमित है क्योंकि

  • जानकारी का अभाव,
  • भ्रष्टाचार,
  • लोकेशन की समस्याएँ,

इन योजनाओं को ज़मीन तक पहुँचने नहीं देतीं।

  1. बदलाव की राह: समाधान और आगे की दिशा

मुसहर समाज की वास्तविक उन्नति के लिए निम्न कदम अत्यंत आवश्यक हैं—

  1. शिक्षा पर विशेष ध्यान
  • आवासीय विद्यालय
  • छात्रवृत्ति
  • स्थानीय स्तर पर शिक्षा के लिए विशेष अभियान
  1. भूमि अधिकार और आजीविका के अवसर
  • भूमि पट्टा
  • स्वरोजगार प्रशिक्षण
  • महिला स्वयं-सहायता समूह
  1. स्वास्थ्य व्यवस्था का विस्तार
  • मोबाइल हेल्थ यूनिट
  • पोषण अभियान
  • सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम
  1. जातिगत भेदभाव पर सख्ती
  • कानून का प्रभावी क्रियान्वयन
  • सामाजिक जागरूकता
  1. राजनीतिक सशक्तिकरण
  • पंचायतों और स्थानीय संस्थाओं में प्रतिनिधित्व
  • नेतृत्व कौशल का विकास

 मुसहर समाज की पीड़ा

“हाँ, मैं मुसर हूँ”..

माँ की हथेली में फटी लकीरें,
बाप की आँखों में सूखा सागर…
पर दिल में छुपा है एक ही अरमान—
“हमारे बच्चों का हो उज्ज्वल भविष्य ,

बेहतर कल, बेहतर घर !”

ओ समय.., बस इतना लेख लिख देना—
कि मुसर जाति का हर आँसूं,
एक दिन मुस्कान बन जाएगा !
और यह संघर्षों से टूटा जन,
एक दिन आसमान छू जाएगा !

निष्कर्ष:

  • मुसहर समाज की पीड़ा सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सदियों से चले आ रहे “सामाजिक बहिष्कार, जातिगत शोषण और संसाधनों से ” का परिणाम है। उनकी पीड़ा को समझना और समाधान की दिशा में कदम उठाना समूचे समाज का कर्तव्य है।
  • एक समावेशी, समान और न्यायपूर्ण समाज तभी संभव है जब मुसहर जैसे उपेक्षित समुदाय भी सम्मान, अवसर और अधिकार के साथ उभर सकें।

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Note :-

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By: KP
Edited  by: KP

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