धीरे–धीरे
मर रहे हैं शौक हमारे धीरे–धीरे,
बढ़ रही है उम्र भी वैसे ही धीरे–धीरे!
ख़ुद को छोड़ दिया है हमने कहीं राहों में,
अब ज़िन्दगी बस चल रही है धीरे–धीरे!
नादान थे, हक़ीक़त का इल्म न था,
दुनिया समझ आ रही है अब धीरे–धीरे!
जो काफ़िला कभी साथ चलता था हमारा,
अपने भी नज़र आने लगे हैं पराए धीरे–धीरे!
सपने बड़े हैं, मंज़िलें भी दूर बहुत,
फिर भी कदम बढ़ रहे हैं धीरे–धीरे!
हौंसले कम नहीं हुए, बस थकान है थोड़ी,
और सफ़र कट रहा है यूँ ही धीरे–धीरे!
बस… धीरे–धीरे!..

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