बिहार की राजनीति हमेशा से उलझनों और समीकरणों का खेल रही है। आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि “नीतीश कुमार के बाद JDU का भविष्य क्या होगा?”
इसी सवाल के बीच जेडीयू से अलग होकर अपनी अलग राह पकड़ चुके उपेंद्र कुशवाहा ने हाल ही में एक बार फिर सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने नीतीश कुमार को सलाह दी कि अब समय आ गया है कि वे पार्टी का वारिस तय करें।
नीतीश कुमार के बाद JDU का संकट?
नीतीश कुमार तीन दशक से बिहार की राजनीति के अहम चेहरे बने हुए हैं। उनके व्यक्तित्व और फैसलों के दम पर ही जेडीयू खड़ा है। लेकिन अब उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए चर्चा तेज है कि उनकी जगह पार्टी को कौन संभालेगा।
पार्टी में इस वक्त कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं दिख रहा। तेजस्वी यादव की तरह वारिस तय नहीं है और न ही कांग्रेस जैसी पारंपरिक ढांचा मौजूद है। यही वजह है कि सवाल उठता है –
क्या नीतीश के बाद JDU टिक पाएगी?
या यह दल भी बिहार की राजनीति के इतिहास में गुम हो जाएगा, जैसे कई दल पहले हो चुके हैं?
कुशवाहा की सलाह और उनका असली इरादा
उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश को सुझाव दिया कि अभी से वारिस घोषित कर देना चाहिए। लेकिन यहां बड़ा सवाल है – क्या यह सलाह महज़ चिंता है या इसके पीछे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा छिपी है?
कुशवाहा लंबे समय से खुद को नीतीश के बाद का विकल्प मानते आए हैं।
उन्होंने JDU छोड़कर राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJD) बनाई, लेकिन जनाधार सीमित है।
ऐसे में वे लगातार इस कोशिश में हैं कि जेडीयू के वोट बैंक में अपनी जगह बनाएँ।
वारिस चुनने की बात कर वे नीतीश समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश देना चाहते हैं कि असली विकल्प वही हो सकते हैं।
क्या JDU में आंतरिक खींचतान तेज होगी?
नीतीश के बाद पार्टी का नेतृत्व कौन संभालेगा, इस पर अंदरखाने कई दावेदार हैं। कुछ नेता खुद को नीतीश का करीबी बताते हैं, तो कुछ जातीय समीकरण के आधार पर दावेदारी ठोकते हैं।
कुर्मी और कोइरी समाज से आने वाले नेता इसमें सबसे आगे हैं।
ललन सिंह, संजय झा जैसे नाम पार्टी के भीतर मजबूत हैं।
वहीं, उपेंद्र कुशवाहा बाहर से दबाव बनाकर खुद को प्रोजेक्ट करने की कोशिश करते रहते हैं।
बिहार में जनता की नज़र से
जनता के मन में भी यही सवाल है कि नीतीश के बिना JDU का अस्तित्व रहेगा या नहीं।
युवा मानते हैं कि नीतीश कुमार जैसे प्रशासनिक और संतुलित नेता का विकल्प फिलहाल दिख नहीं रहा।
कई लोग कहते हैं कि पार्टी पूरी तरह “वन मैन शो” बन चुकी है।
अगर वारिस तय नहीं हुआ तो JDU का हश्र भी RJD के लालू के बाद और LJP के पासवान साहब के बाद जैसा हो सकता है।
वारिस चुनने वाली सलाह सीधी-सीधी या राजनीति
उपेंद्र कुशवाहा की वारिस चुनने वाली सलाह सीधी-सीधी राजनीति है। उनका मकसद नीतीश कुमार के बाद अपने लिए जगह बनाना है। लेकिन हकीकत यह है कि JDU नीतीश कुमार के बिना बहुत बड़ी चुनौती का सामना करेगी। अब देखना होगा कि नीतीश कुमार खुद इस वारिस वाली बहस को कितनी गंभीरता से लेते हैं या फिर हमेशा की तरह चुप्पी साधे रहते हैं।
