भारत में वर्तमान समय में एक विशेष प्रवृत्ति देखने को मिल रही है, जहां किसी भी मुद्दे पर बात करना या विरोध करना अक्सर “गलत” ठहरा दिया जाता है। चाहे वह विपक्ष हो, किसान हो, युवा हो या फिर आम नागरिक, अगर वे सरकार की नीतियों या फैसलों पर सवाल उठाते हैं, तो उन्हें या तो “देशद्रोही” कहा जाता है, या उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है। यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर सही कौन है? और लोकतंत्र में लोगों की आवाज और उनके अधिकारों का क्या स्थान है? आइए इस पर एक बार विस्तार से चर्चा करते हैं।
विपक्ष को गलत क्यों ठहराया जाता है?
लोकतंत्र की खूबसूरती यह है कि इसमें विपक्ष को सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने और आलोचना करने का अधिकार होता है। लेकिन आज की राजनीति में ऐसा माहौल बन गया है कि जब भी विपक्ष कोई मुद्दा उठाता है, उसे “राजनीतिक स्वार्थ” कहकर खारिज कर दिया जाता है।
मीडिया और सरकार की भूमिका: मुख्यधारा मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अब विपक्ष को “दुष्प्रचार” करने वाला कहने में ज्यादा रुचि रखता है।
लोकतंत्र का कमजोर होना: लोकतंत्र तभी स्वस्थ रह सकता है जब सत्ता और विपक्ष के बीच संवाद बना रहे। लेकिन आज संवाद के बजाय, विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है।
किसानों की मांगों को गलत क्यों बताया गया?
जब किसान अपने हक और अधिकार के लिए आंदोलन करते हैं, तो उन्हें “देशद्रोही” या “आतंकवादी” कहकर प्रचारित किया जाता है।
किसान आंदोलन का उदाहरण: हाल ही में हुए किसान आंदोलन में किसानों ने कृषि कानूनों का विरोध किया। सरकार ने इन कानूनों को वापस तो ले लिया, लेकिन पूरे आंदोलन के दौरान किसानों को बदनाम करने की कोशिशें की गईं।
आम धारणा बनाना: किसानों को “राजनीतिक एजेंडा” चलाने वाला या “विकास विरोधी” बताया गया, जबकि उनकी मांगें पूरी तरह वैध और जरूरी थीं।
भारत में युवाओं की बेरोजगारी पर सवाल उठाना कैसे गलत हो गया?
युवा किसी भी देश का भविष्य होते हैं। लेकिन जब भारत के युवा रोजगार की मांग करते हैं, तो उन्हें “असंवेदनशील” कहा जाता है।
बेरोजगारी की वास्तविकता: सरकारी आंकड़ों और स्वतंत्र रिपोर्ट्स के अनुसार, देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। लेकिन जब युवा इस पर सवाल उठाते हैं, तो उन्हें “नेगेटिव” सोच रखने वाला करार दिया जाता है।
जवाबदेही का अभाव: सरकार से यह पूछना कि नई नौकरियां कहां हैं, किसी भी लोकतंत्र में एक वैध सवाल है। लेकिन इन सवालों का जवाब देने के बजाय, सवाल उठाने वालों को ही चुप कराया जाता है।
भारत में महंगाई पर बात करने से देशद्रोही क्यों?
महंगाई सीधे तौर पर आम जनता को प्रभावित करती है। जब लोग इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो उन्हें यह कहकर दबा दिया जाता है कि “देश विरोधी ताकतें ऐसा करवा रही हैं।”
महंगाई की मार: पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। लेकिन इन मुद्दों पर सरकार से सवाल करने पर इसे “राजनीतिक षड्यंत्र” बता दिया जाता है।
लोकतांत्रिक हक: सरकार का काम जनता की समस्याओं को सुलझाना है, न कि उन पर सवाल उठाने वालों को बदनाम करना।
तो सही कौन है?
अगर विपक्ष गलत है, किसान गलत है, युवा गलत है, और आम जनता गलत है, तो आखिर सही कौन है?
क्या सिर्फ सत्ता सही है? लोकतंत्र में सत्ता को सही ठहराने की प्रक्रिया आलोचना और संवाद से गुजरती है। अगर हर आलोचना को दबा दिया जाए, तो सत्ता को जवाबदेह कौन बनाएगा?
जनता की भूमिका: लोकतंत्र में जनता ही असली ताकत होती है। अगर जनता के मुद्दों को ही नजरअंदाज किया जाए, तो लोकतंत्र का असली मतलब खत्म हो जाता है।
लोकतंत्र की जरूरत: सही वह है जो जनता की भलाई के लिए काम करे, चाहे वह सत्ता हो या विपक्ष। लेकिन आज जो भी जनता के मुद्दे उठाता है, उसे गलत ठहराया जा रहा है।
भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश में हर नागरिक को अपनी बात कहने का अधिकार है। विपक्ष, किसान, युवा, या आम नागरिक – इन सभी का काम है लोकतंत्र को मजबूत करना, न कि उसे कमजोर करना। सरकार का काम है उनकी आवाज को सुनना और उनके मुद्दों को सुलझाना। लेकिन अगर हर किसी की आवाज को दबा दिया जाएगा, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।
सवाल यह नहीं है कि सही कौन है, सवाल यह है कि क्या हम सही सवाल पूछने की हिम्मत रखते हैं?