AVN News Desk New Delhi: राजस्थान की राजनीति में इस समय एक 26 साल का युवा लड़के की खूब चर्चा हो रही है. यह युवा पाकिस्तान की सीमा से सटे राजस्थान के बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा सीट से वर्तमान में निर्दलीय विधायक है और बाड़मेर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया है. वही इस नौजवान का नाम है रविंद्र सिंह भाटी है, जिसे सुनने और देखने के लिए उसके रोड शो और सभाओं में हजारों की तादाद में लोग उमड़ रहे हैं.

वही बाड़मेर लोकसभा सीट पर चुनावी ताल ठोककर रविंद्र सिंह भाटी ने मोदी सरकार के मंत्री कैलाश चौधरी को सीधे तौर पर अब चुनौती दे दी है. वही नामांकन के दौरान रविंद्र भाटी को सुनने और देखने के लिए लोगों का जनसैलाब सड़कों पर उतर गया है. वही जब रविंद्र सिंह भाटी के नामांकन के दौरान उमड़ी जन सैलाब की तस्वीरें अखबारों में छपीं और समाचार चैनलों पर वीडियो फुटेज चले तो यह युवा नेता इस लोकसभा चुनाव के सबसे चर्चित उम्मीदवारों में से एक बना गया है. अब हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर इस 26 साल के युवा लड़के में ऐसी क्या खास बात है, जो इसे जनता का इतना समर्थन मिल रहा?
बाड़मेर के छोटे से गांव दूधोड़ा के रहने वाले रविंद्र सिंह भाटी बेहद ही सामान्य परिवार से आते हैं. वही उनके पिता शिक्षक हैं. रवींद्र सिंह भाटी के परिवार का राजनीति से दूर-दूर तक कोई भी नाता नहीं रहा है. रविंद्र सिंह भाटी ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव के पास स्थित सरकारी स्कूल से ली है. फिर बाड़मेर शहर के एक स्कूल से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी की है. वह उच्च शिक्षा के लिए जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी पहुंचे थे. यहीं पर उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में छात्र राजनीति में कदम रखा था. रवींद्र भाटी ने ग्रेजुएशन के बाद वकालत की पढ़ाई पूरी की है.
एबीवीपी (ABVP) ने टिकट नहीं दिया, निर्दलीय जीता छात्रसंघ चुनाव
साल 2019 में रविंद्र सिंह भाटी ने छात्रसंघ अध्यक्ष पद के लिए एबीवीपी से टिकट की दावेदारी पेश की थी. लेकिन, एबीवीपी ने भाटी को टिकट न देकर किसी और को अपना प्रत्याशी घोषित किया था. इससे नाराज रवींद्र सिंह भाटी ने निर्दलीय ताल ठोक दी और यूनिवर्सिटी के 57 साल के इतिहास में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने वाले पहले छात्र नेता बन गए थे. इसके बाद रवींद्र भाटी ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कोरोना काल के दौरान चाहे छात्रों की फीस माफी का मुद्दा हो या गहलोत सरकार के कार्यकाल में कॉलेज की जमीन का मुद्दा, भाटी ने छात्र आंदोलन का आगे बढ़कर नेतृत्व किया था. छात्र के हितों के लिए वह कई बार जेल भी गए थे. यहां तक कि छात्रों की हक के मांगों को लेकर विधानसभा का घेराव भी किया था. अपनी इसी जुझारू छवि के कारण रविंद्र सिंह भाटी छात्रों और युवा वर्ग के चहेते बन गए.
रविंद्र सिंह भाटी तब और चर्चा में आ गए, जब उन्होंने 2022 में अपने दोस्त अरविंद सिंह भाटी को जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष का चुनाव जितवाया. एनएसयूआई ने अरविंद को टिकट नहीं दिया तो, वह SFI से चुनाव लड़े थे. रविंद्र सिंह भाटी ने अपने दोस्त अरविंद के चुनाव प्रचार का जिम्मा खुद अपने कंधों पर उठाया, और अध्यक्ष पद के लिए हुए इलेक्शन में जीत भी दिलाई. उसी दिन से राजस्थान में इस युवा नेता की चर्चा और ज्यादा तेज हो गई. इसके बाद तो रविंद्र सिंह भाटी राज्य की राजनीति में उतरे. और उन्होंने बीजेपी जॉइन की और 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में शिव सीट से टिकट की मांग की थी.
भाजपा से बगावत कर निर्दलीय जीता था विधानसभा चुनाव
लेकिन भाजपा ने रविंद्र सिंह भाटी को टिकट ना देकर संघ की पृष्ठभूमि वाले और उस समय के अपने बाड़मेर जिलाध्यक्ष स्वरूप सिंह खारा को शिव से उम्मीदवार बना दिया था. इससे नाराज होकर रविंद्र सिंह भाटी ने भाजपा से बगावत कर शिव विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. विधानसभा चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी के सामने शिव सीट पर सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के पूर्व मंत्री अमीन खान थे. वही अमीन खान ने कांग्रेस पार्टी के सिंबल पर 9 बार पहले चुनाव लड़ा था और 84 साल की उम्र में 10वीं बार ताल ठोक रहे थे. वही इसके अलावा बीजेपी के स्वरूप सिंह खारा और कांग्रेस से के बागी फतेह खान और पूर्व विधायक जालम सिंह रावत जैसे चेहरे इस 26 वर्षीय युवा के सामने थे.
फिर रविंद्र सिंह भाटी ने इन सभी चुनौतियों को पार किया और 4000 वोटों के अंतर से शिव विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी. उन्होंने भाजपा उम्मीदवार स्वरूप सिंह खारा की तो जमानत ही जब्त करवा दी थीं. बीजेपी इस बार राजस्थान में क्लीन स्वीप का टारगेट लेकर चल रही थी. लेकिन वही गत 4 अप्रैल को जब रविंद्र सिंह भाटी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में बाड़मेर सीट से अपना नामांकन दाखिल किया और उनकी रैली में जनसैलाब उमड़ा तो भाजपा की टेंशन बहुत बढ़ गई. रवींद्र सिंह भाटी की उम्मीदवारी से बाड़मेर सीट पर अगर किसी को सीधे नुकसान पहुंचता दिख रहा तो वह बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधरी हैं. चूंकि रविंद्र सिंह एबीवीपी के सदस्य रहे हैं और खुद को वैचारिक रूप से भाजपा के करीब पाते हैं, इसलिए उनके समर्थक भी भाजपा के कार्यकर्ता और वोटर ही हैं. ऐसे में रविंद्र सिंह भाटी इस सीट पर बीजेपी का ही वोट काटते दिख रहे हैं.
सिर्फ पश्चिमी राजस्थान तक ही सीमित नहीं है भाटी की लोकप्रियता
ऐसा नहीं है कि रविंद्र सिंह भाटी का जलवा सिर्फ पश्चिमी राजस्थान तक ही सीमित है. वह बाड़मेर-जैसलमेर और बालोतरा के प्रवासियों से मिलने और वोट मांगने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र, बंगलुरु और हैदराबाद के अलग-अलग इलाकों में भी पहुंच रहे हैं. रवींद्र सिंह भाटी जहां भी जा रहे हैं, उन्हें भरपूर जनसमर्थन हासिल हो रहा है. वही अन्य राज्यों में रविंद्र सिंह भाटी की सभाओं में उमड़ते प्रवासियों को देखकर राजनीति के बड़े-बड़े सूरमा भी हैरान हैं. रवींद्र सिंह भाटी की लोकप्रियता का अंदाजा इससे भी लगाइए कि एक हफ्ते में इंस्टाग्राम पर उनके 7 लाख फॉलोवर्स बढ़ गए हैं. वही सोशल मीडिया पर रविंद्र सिंह भाटी के वीडियो खूब वायरल हो रहे हैं, जिन्हें लाखों की तादाद में लोग लाइक और शेयर भी कर रहे हैं.