Political News: भारत में राजनीति में गिरती भाषा और नेताओं की बयानबाजी का स्तर एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। यह न केवल राजनीतिक बहसों की गरिमा को प्रभावित करता है, बल्कि इससे जनसमूह में एक गलत संदेश भी जाता है। नेताओं का आपस में व्यक्तिगत हमलों, अपशब्दों, और अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल करना, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है।

राजनीति में गिरती भाषा का प्रभाव

लोकतंत्र की गरिमा का ह्रास: लोकतंत्र में बहस और संवाद का मुख्य उद्देश्य जनता की समस्याओं पर विचार-विमर्श करना होता है। जब नेता असभ्य भाषा का प्रयोग करते हैं, तो लोकतंत्र की गरिमा बहुत कम होती है। संसद और विधानसभाओं में असंयमित व्यवहार और आक्रामक भाषा देखकर जनता का विश्वास भी बहुत कमजोर होता है।

नकारात्मक राजनीति: आज के समय में राजनीति का एक बहुत बड़ा हिस्सा नकारात्मक हो गया है। व्यक्तिगत हमलों और कटु वचनों का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए खूब किया जा रहा है। इस तरह की राजनीति से सकारात्मक विचारधारा और विकास के मुद्दों पर ध्यान पूरी तरह हट जाता है।

सोशल मीडिया का प्रभाव: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नेताओं द्वारा अभद्र भाषा का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ा है। नेताओं के द्वारा किए गए आक्रामक ट्वीट्स, फेसबुक पोस्ट, व्हाट्सएप, या भाषण कई बार वायरल होते हैं, जिससे समाज में विभाजनकारी मानसिकता को पूरा बढ़ावा मिलता है।

चुनावी लाभ के लिए भड़काऊ भाषण: कुछ राजनेता चुनावों के दौरान वोट बैंक की राजनीति के लिए धर्म, जाति और समुदायों को लेकर खूब भड़काऊ बयान देते हैं। यह भाषा न केवल समाज में तनाव बढ़ाती है, बल्कि राजनीतिक परिपक्वता की कमी को भी दर्शाती है।

तथ्य और उदाहरण

2014,2019,2024 का आम चुनाव: इस दौरान कई बड़े नेताओं ने एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले किए और अपशब्दों का खूब प्रयोग किया। ऐसे कई बयान थे जिन्हें चुनाव आयोग ने संज्ञान में लिया और कुछ नेताओं पर प्रतिबंध भी लगाए गए मगर ज्यादा तर विपक्ष में बैठे नेताओं पर ही किया गया।

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संसद में अनुशासनहीनता : हाल ही के वर्षों में संसद में नेताओं द्वारा अनुशासनहीनता और गलत भाषा का प्रयोग खूब तेजी से बढ़ा है। संसद में शोर-शराबा, व्यक्तिगत टिप्पणियाँ, और असंयमित शब्दावली का उपयोग अब आम हो गया है। इससे संसद के कामकाज में खूब बाधा आती है, और जनता के हितों पर गंभीरता से विचार ही नहीं हो पाता।

चुनावी रैलियों में भाषण: रैलियों के दौरान नेताओं द्वारा कई बार बहुत ही घटिया स्तर के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण के तौर पर, कई बड़े राजनेताओं के भाषणों में विपक्ष के नेताओं को अपमानजनक उपाधियों से खूब संबोधित किया गया है।

चुनाव आयोग की चेतावनियाँ: गिरती हुई भाषा और बयानबाजी पर अंकुश लगाने के लिए भारत का चुनाव आयोग बार-बार नेताओं को चेतावनी देता आया है। मगर कई बार ऐसे बयान देने वाले नेताओं पर चुनाव आयोग ने प्रचार से प्रतिबंध भी लगाया है मगर सिर्फ विपक्ष के नेताओं पर।

भारत में राजनीति गिरावट के कारण

प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति: चुनावी जीत और राजनीतिक वर्चस्व की होड़ में नेता भाषा की गरिमा को अक्सर भूल जाते हैं।

सोशल मीडिया का उपयोग: सोशल मीडिया पर त्वरित लोकप्रियता पाने के लिए नेता आक्रामक और विवादास्पद बयान देते हैं, जिससे उनका फॉलोवर बेस बहुत तेजी से बढ़ता है।

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दबाव में राजनीति: कुछ नेताओं को लगता है कि अगर वे आक्रामक नहीं होंगे तो उनका राजनीतिक महत्व कम हो जाएगा, इसलिए वे भाषा का स्तर बिलकुल ही गिरा देते हैं।

इसका समाधान

नैतिकता और अनुशासन: राजनीति में नैतिकता और अनुशासन को पुनः स्थापित करना आवश्यक है। इसके लिए राजनीतिक दलों को आचार संहिता का कड़ाई से पालन करना होगा।

चुनाव आयोग की सख्ती: चुनाव आयोग को गिरती भाषा और गलत बयानों के खिलाफ और सभी पर बिना पक्ष पात के सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इससे नेताओं पर अंकुश लगेगा।

जनता की जागरूकता: जनता को भी अब जागरूक होना पड़ेगा। ऐसे नेताओं को नकारना चाहिए जो घटिया भाषा और नकारात्मक राजनीति करते हैं।

शिक्षा और प्रशिक्षण: नेताओं के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, ताकि वे अपने सार्वजनिक भाषणों में संयम और गरिमा बनाए रखें।

इसका निष्कर्ष : भारत की राजनीति में भाषा का गिरता स्तर लोकतंत्र की मजबूती के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। इसे रोकने के लिए नेताओं, चुनाव आयोग और जनता सभी को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे।

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