भारत में चुनाव आते ही नेताओं की जुबान पर एक ही लाइन चिपक जाती है— “गरीब हमारा परिवार है, युवा हमारा भविष्य है।” लेकिन हकीकत यह है कि जिस वक्त नेता एयरकंडीशन्ड स्टेज पर खड़े होकर युवाओं को “साथी” बनाने की कसमें खा रहे होते हैं, उसी वक्त गांवों के गरीब और बेरोजगार युवा शहरों की धूल भरी सड़कों पर अपने “साथी” यानी नौकरी/ रोजगार की तलाश में भटक रहे होते हैं।

गांव से शहर—साथी बदल जाता है!

गांवों में सरकार कागजों पर स्कूल, अस्पताल, रोजगार, योजनाएं और ढेरों वादे बनाती है। लेकिन जैसे ही गांव से निकलकर युवा शहर पहुंचता है, उसका असली साथी परिस्थिति बन जाती है—

कहीं डिलीवरी बॉय की नौकरी,

कहीं सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी,

तो कहीं कॉल सेंटर की 12 घंटे की शिफ्ट।

सरकार तो कहती है “हम साथ हैं”, लेकिन शहर में युवा के साथ सिर्फ उसकी मजबूरी और उसकी भूख साथ आती है।

तथ्य बताते हैं—युवाओं का साथी सिर्फ संघर्ष है

भारत में लगभग 2.5 करोड़ से ज़्यादा युवा 2024-25 में रोजगार की तलाश में थे, जिनमें से बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों से है।

ग्रामीण बेरोजगारी दर शहरों से लगभग 2% ज्यादा रहती है।

हर साल लाखों युवा गांव छोड़कर शहर आते हैं, लेकिन शहर में मिलने वाली नौकरी ज्यादातर अस्थायी, कम तनख्वाह और बिना सुरक्षा वाली होती है।

तो सवाल उठता है—अगर सरकार असली साथी होती, तो क्या करोड़ों युवाओं को रोज 200–300 रुपए अतिरिक्त किराया सिर्फ नौकरी ढूंढने में खर्च करना पड़ता?

गांवों में योजनाओं की फाइलें मोटी, लेकिन जेबें पतली

गांवों में

रोजगार का नाम पर एलान,

किसानों के लिए भाषण,

युवाओं के लिए ट्रेनिंग सेंटर का वादा,

और हर घर तक विकास पहुंचाने की बातें—
सब सुनाई देती हैं।

लेकिन जब वही युवा गांव में रोजगार मांगता है, तो अधिकारी कहते हैं—
“अरे भाई, योजना आई तो है…बस फंड का इंतज़ार है।”

फंड तो जैसे कभी गांव की बस से उतरता ही नहीं!

शहर में ‘दोस्त’ बदल जाते हैं—सरकार गायब, बैंकों की किस्तें हाज़िर

शहर में

मकान मालिक सामने

बिजली बिल पीछे

किराया दाएं

पेट की भूक बाएं
और सरकार…सरकार कहीं नजर ही नहीं आती!

नेता कहता है—“हम युवाओं को नए अवसर देंगे!”

युवा कहता है—“सर, पहले पुरानी समस्याएं ही हल कर दो… नए अवसर बाद में दे देना।”

आखिर गांव को छोड़कर शहरों में “वो कौन है”?

जो युवा गांव छोड़कर शहर आते हैं, उनके सबसे बड़े साथी हैं—

1. संघर्ष

वही उन्हें आगे बढ़ना सिखाता है।

2. मेहनत

जो रोज सुबह 6 बजे उन्हें बिस्तर से धक्का देकर उठाती है।

3. सपने

जो भूख से बड़े होते हैं और हालात से लड़ते हैं।

साथी
बेरोजगारी युवा रोजगार की तलाश में

सरकार?

सरकार तो बस चुनाव के वक्त साथ देने आती है,
उसके बाद वो भी VIP गाड़ी में बैठकर गांव से शहर की तरफ निकल जाती है… लेकिन युवा की तरफ नहीं।

और अंत में…

भारत तभी आगे बढ़ेगा जब “साथी” सिर्फ भाषणों में नहीं,
बल्कि गांव की मिट्टी, खेतों, उद्योगों, स्कूलों, और छोटे कस्बों में वास्तविक रोजगार और जीवन की सुविधाएं बनकर दिखाई देगा।

तब शायद गांव का युवा शहर से पूछेगा—
“अब मैं तुम्हारे पास क्यों आऊं? मेरा साथी तो घर वापस आ गया है।”

ये हालात जब तक नहीं बदलेगा जब तक नेता युवाओं को सिर्फ वोट बैंक समझते रहेंगे। लेकिन नेताओं को भी पता है ये तो गरीब है लाचार है चुनाव के समय वादे और कुछ चंद रुपए इनके अकाउंट में डाल देंगे और वोट हमे मिल जाएगा।
हालात जभी बदलेगा युवा हिन्दू मुस्लिम और धर्म की राजनीति से उठ कर युवा रोजगार के लिए सड़को पर उतरेंगे तभी युवाओं का तस्वीर और तक़दीर बदलेगा।

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