सरकारी बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा एक बड़े खर्च का मामला सामने आया है, जिससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या जनता के पैसों का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं। बैंक ने देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन की किताब India@100: Envisioning Tomorrow’s Economic Powerhouse की लगभग 1.99 लाख प्रतियां खरीदी हैं, जिस पर करीब 7.25 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

यूनियन बैंक का कहना है कि यह कदम उसकी 100वीं सालगिरह के मौके पर आर्थिक जागरूकता फैलाने के लिए उठाया गया। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में किताब खरीदना जरूरत से ज्यादा खर्च है, खासकर तब जब बैंक को अपनी वित्तीय ज़िम्मेदारियों का भी ध्यान रखना होता है।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का क्या ये खर्च वाकई जरूरी था?
इस खरीदारी को लेकर यह भी चिंता जताई जा रही है कि बिना किताबों का पूरा वितरण और असर देखे, यूनियन बैंक ने पहले ही 50% भुगतान कर दिया है। इससे पारदर्शिता पर अब बड़े सवाल खड़े हो गए हैं।
मैनेजमेंट का फैसला
कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन को एक प्रभावशाली और होनहार युवा टेक्नोक्रेट माना जाता था। यह भी अफवाह थी कि CEA के रूप में अपने कार्यकाल के बाद वह कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए इस दौड़ में शामिल थे। ET को मिले दो आंतरिक पत्रों के अनुसार यूनियन बैंक के सपोर्ट सर्विसेज डिपार्टमेंट ने अपने 18 जोनल हेड्स को बताया है कि टॉप मैनेजमेंट ने किताब की हार्ड कवर और पेपरबैक संस्करणों को पूरे भारत में ग्राहकों, कंपनियों, स्थानीय स्कूलों, कॉलेजों और पुस्तकालयों में वितरित करने का फैसला किया है। ये सर्कुलर जून और जुलाई 2024 में किताब के प्रकाशन से पहले ही जारी किए गए थे।
वही इनमें कहा गया था कि मैनेजमेंट ने 189,450 पेपरबैक प्रतियां (प्रत्येक 18 जोनल ऑफिस द्वारा 10,525 प्रतियां) ₹350 में और 10,422 हार्डकवर प्रतियां ₹597 में खरीदने का फैसला लिया गया है। वही इस ऑर्डर की कुल राशि ₹7.25 करोड़ होगी। वही जोनल ऑफिसेज को आगे इन प्रतियों को अपने रीजनल ऑफिसेज में वितरित करने का निर्देश दिया गया था। अब यह स्पष्ट नहीं है कि केंद्रीय कार्यालय या अन्य प्रतिष्ठानों के लिए भी अन्य ऑर्डर दिए गए थे या नहीं।
अब मचा खर्च पर बवाल
वही भारत में अंग्रेजी भाषा की किताबें बहुत ही कम बिकती हैं। कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाले लेखकों को छोड़ दें तो, 10,000 से ज्यादा प्रतियां बेचने वाली किताब को भारत में बेस्टसेलर माना जाता है। जब ऑफिस एडवाइस भेजा गया, तो इस खरीद के लिए 50% एडवांस प्रकाशक रूपा पब्लिकेशंस को पहले ही दिया जा चुका था। ऑफिस एडवाइस में कहा गया कि बाकी का भुगतान संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा miscellaneous विविध हेड के तहत उपलब्ध राजस्व बजट से किया जाना चाहिए।
यूनियन बैंक के एमडी और चीफ
एग्जीक्यूटिव ए. मणिमेखलाई और प्रेजिडेंट श्रीनिवासन वरदराजन ने ET के कोई भी सवालों का जवाब नहीं दिया। जब इस खर्च (रूपा को 50% एडवांस) को यूनियन बैंक के दिसंबर में हुई बोर्ड मीटिंग में मंजूरी के लिए लाया गया तो इसके एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर नितेश रंजन (जो मार्केटिंग और प्रचार जैसे विभागों को देखते हैं) ने कहा है कि उन्हें इस खरीद के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी और उन्होंने इस खर्च को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।

कैसे हुआ इस यूनियन बैंक घोटाला का खुलासा
वही बोर्ड ने सपोर्ट सर्विसेज डिपार्टमेंट के जनरल मैनेजर गिरिजा मिश्रा को यह भुगतान खुद ही करने के लिए अधिकृत करने के अधिकार पर सवाल उठाया था। वही मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार मणिमेखलाई ने बोर्ड को बताया है कि उन्होंने मिश्रा को खरीद करने के लिए कहा था, लेकिन कोई नियम तोड़ने के लिए नहीं कहा गया था। वही लगभग एक हफ्ते बाद पिछले साल 26 दिसंबर को उन्होंने मिश्रा को निलंबित कर दिया। मिश्रा ने ET के मैसेज का जवाब नहीं दिया।
इस साल जनवरी में, यूनियन बैंक ने इस लेनदेन में हुई चूक की पहचान करने के लिए KPMG को नियुक्त किया है। कंसल्टेंट ने महीने के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप दी, हालांकि यह ज्ञात नहीं है कि रिपोर्ट में क्या कहा गया था या क्या सिफारिश की गई थी। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यूनियन बैंक ने जनरल मैनेजर के निलंबन के अलावा कोई और कदम उठाया है या नहीं। कर्मचारी संघों का कहना है कि जनरल मैनेजर को बलि का बकरा बनाया गया है, और उन्होंने आगे जांच की मांग की है।
जांच की मांग
4 मई को बैंक कर्मचारियों के एक संघ ने मणिमेखलाई को पत्र लिखकर “इंडिया@100” पुस्तक की खरीद पर करोड़ों रुपये के फिजूलखर्ची की जांच की मांग की है। ऑल इंडिया यूनियन बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन के महासचिव एन. शंकर ने पत्र में कहा है कि बैंक द्वारा खरीदी गई पुस्तक के प्रचार में कथित अनियमितता की खबर के साथ… बैंक की जिम्मेदारी है कि वह पता लगाए कि पुस्तक की खरीद के लिए व्यय को मंजूरी देने वाले प्राधिकरण ने बैंक और उसकी छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए कथित अनियमितता को बढ़ावा देने में कितनी मिलीभगत की है।
शंकर ने लिखा है कि इसके अलावा, बैंक को यह खुलासा करना होगा कि बड़ी संख्या में किताबें खरीदने और वितरित करने में उसे क्या लाभ हुआ है। बैंक को यह भी खुलासा करना होगा कि क्या भारी मात्रा में व्यय से जुड़ी पुस्तकों की खरीद के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था… ताकि शीर्ष प्रबंधन और उसकी संलिप्तता के बारे में कई आशंकाओं और संदेहों को दूर किया जा सके। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया चौथा सबसे बड़ा सरकारी बैंक है जिसकी वैल्यू 96,298 करोड़ रुपये है। इसके पास ₹9.5 लाख करोड़ का लोन बुक और ₹12.2 लाख करोड़ की कुल जमा राशि है।
निष्कर्ष
इस पूरी घटना ने यह बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल किसी की निजी पहचान बनाने या प्रचार के लिए हो रहा है? और अगर ऐसा है, तो क्या इसकी सही जांच और जवाबदेही तय की जा रही है?
क्या आपको लगता है कि ऐसे मामलों में कोई ठोस नियम और निगरानी होनी चाहिए? वो भी जब जनता की गाढ़ी कमाई सरकार के ही एक नौकर शाह कर रहे और सरकार सो रही है? इसमें तो भ्रष्टाचार की बू आ रही है तभी तो सरकार ने रिटायरमेंट में 6 महीने पहले ही पद से हटा दिया गया है.