AVN News Desk New Delhi: महामहिम द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार शाम गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम संबोधन दिया है. अपने संबोधन में उन्होंने राम मंदिर का भी जिक्र किया साथ ही बिहार के पूर्व मुख्य्मंत्री कर्पूरी ठाकुर जी को भी श्रद्धांजलि दी है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि, 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं. हमारे गणतंत्र का यह 75वां वर्ष कई अर्थों में देश की यात्रा का एक ऐतिहासिक पड़ाव है. हमारा देश स्वतंत्रता की एक शताब्दी की ओर बढ़ते हुए अमृत काल के प्रारंभिक दौर से गुजर रहा है. यह एक युगांतरकारी परिवर्तन का कालखंड है. उन्होंने कहा है कि, गणतंत्र दिवस, हमारे आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों को स्मरण करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है.

भूगोल ने नहीं थोपी सह-अस्तित्व की भावना

हमारे गणतंत्र की मूल भावना से एकजुट होकर ही 140 करोड़ से अधिक भारतवासी एक कुटुंब के रूप में रहते हैं. दुनिया के इस सबसे बड़े इस कुटुंब के लिए, सह-अस्तित्व की भावना, भूगोल द्वारा थोपा गया बोझ नहीं है, बल्कि सामूहिक उल्लास का सहज स्रोत है, जो हमारे गणतंत्र दिवस के उत्सव में अभिव्यक्त होता है.

महामहिम ने राम मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा का किया जिक्र

राष्ट्रपति ने इस दौरान राम मंदिर निर्माण, उद्घाटन व इसकी प्राण प्रतिष्ठा का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा है कि, हम सबने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर निर्मित भव्य मंदिर में स्थापित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक समारोह देखा है.भविष्य में जब इस घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा, तब इतिहासकार, भारत द्वारा अपनी सभ्यतागत विरासत की निरंतर खोज में युगांतरकारी आयोजन के रूप में इसका विवेचन भी करेंगे.

बिहार के पूर्व सीएम भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर जी को दी श्रद्धांजलि

अपने संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिहार के पूर्व सीएम भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर का भी जिक्र किया है. उन्होंने कहा है कि, मैं यह उल्लेख करना चाहूंगी कि सामाजिक न्याय के लिए अनवरत युद्धरत रहे हैं, कर्पूरी ठाकुर जी की जन्म शताब्दी का उत्सव कल ही संपन्न हुआ है. कर्पूरी ठाकुर जी पिछड़े वर्गों के सबसे महान पक्षकारों में से एक थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन उनके कल्याण के लिए ही समर्पित कर दिया था। उनका जीवन एक संदेश था. अपने योगदान से सार्वजनिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए, मैं कर्पूरी ठाकुर जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं.’

महामहिम द्रौपदी मुर्मू
भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर फाइल फोटो

लंबे और कठिन संघर्ष के बाद मिली हमे आजादीः महामहिम द्रौपदी मुर्मू

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि, ‘एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश विदेशी शासन से मुक्त हो पाया है. लेकिन, उस समय भी, देश में सुशासन तथा देशवासियों में निहित क्षमताओं और प्रतिभाओं को उन्मुक्त विस्तार देने के लिए, उपयुक्त मूलभूत सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को स्वरूप प्रदान करने का कार्य चल ही रहा था. संविधान सभा ने सुशासन के सभी पहलुओं पर लगभग तीन वर्ष तक विस्तृत चर्चा की है और हमारे राष्ट्र के महान आधारभूत ग्रंथ, यानी भारत के संविधान की रचना की थी. आज के दिन हम सब देशवासी उन दूरदर्शी जन-नायकों और अधिकारियों का कृतज्ञता-पूर्वक स्मरण करते हैं जिन्होंने हमारे भव्य और प्रेरक संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया था.

अधिकार ही नहीं, कर्तव्य का भी हो पालन हो

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में अधिकार और कर्तव्य को लेकर भी प्रकाश डाला है. हमारा देश स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ते हुए अमृत काल के एक प्रारंभिक दौर से गुजर रहा है. यह एक युगांतरकारी परिवर्तन का कालखंड है. हमें अपने देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का एक सुनहरा अवसर मिला है. हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिक का योगदान भी महत्वपूर्ण होगा. इसके लिए मैं सभी देशवासियों से संविधान में निहित हमारे मूल कर्तव्यों का पालन करने का अनुरोध भी करूंगी. ये कर्तव्य, आजादी के 100 वर्ष पूरे होने तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में , प्रत्येक नागरिक के एक आवश्यक दायित्व हैं. इस संदर्भ में मुझे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मरण होता है. बापू ने ठीक ही कहा था कि, “जिसने केवल अधिकारों को चाहा है, ऐसी कोई भी प्रजा बिल्कुल उन्नति नहीं कर सकी है. केवल वही प्रजा ही उन्नति कर सकी है जिसने कर्तव्य का धार्मिक रूप से पालन किया है.”

G20 शिखर सम्मेलन को बताया उपलब्धि

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि, ‘हमारे राष्ट्रीय त्योहार ऐसे महत्वपूर्ण अवसर होते हैं जब हम अतीत पर भी दृष्टिपात करते हैं और भविष्य की ओर भी देखते हैं. पिछले गणतंत्र दिवस के बाद के एक वर्ष पर नजर डालें तो हमें बहुत ही प्रसन्नता होती है. भारत की अध्यक्षता में दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन एक अभूतपूर्व उपलब्धि भी थी. G20 से जुड़े सभी आयोजनों में जन-सामान्य की भागीदारी भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इन आयोजनों में विचारों और सुझावों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर नहीं बल्कि नीचे से ऊपर की ओर ही था. उस भव्य आयोजन से यह सीख भी मिली है कि सामान्य नागरिकों को भी ऐसे गहन तथा अंतर-राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे में भागीदार भी बनाया जा सकता है जिसका प्रभाव अंततः उनके अपने भविष्य पर ही पड़ता है. G20 शिखर सम्मेलन के माध्यम से Global South की आवाज के रूप में भारत के अभ्युदय को भी बढ़ावा मिला है, जिससे अंतर-राष्ट्रीय संवाद की प्रक्रिया में एक आवश्यक तत्व का समावेश हुआ है.’

भारत ने सदैव प्रस्तुत किया है अहिंसा का उदाहरण

हाल के दौर में विश्व में अनेक स्थलों पर लड़ाइयां हो रही हैं और दुनिया के बहुत से हिस्से हिंसा से पीड़ित हैं. जब भी दो परस्पर विरोधी पक्षों में से प्रत्येक मानता है कि केवल उसी की बात सही है और दूसरे की बात ही गलत है, तो ऐसी स्थिति में समाधान-परक तर्क के आधार पर ही आगे बढ़ना चाहिए. दुर्भाग्य से, तर्क के स्थान पर, आपसी भय और पूर्वाग्रहों ने भावावेश को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण अनवरत हिंसा हो रही है. बड़े पैमाने पर मानवीय त्रासदियों की अनेक दुखद घटनाएं हुई हैं, और हम सब इस मानवीय पीड़ा से अत्यंत ही व्यथित हैं. ऐसी परिस्थितियों में, हमें भगवान बुद्ध के सारगर्भित शब्दों का स्मरण होता है:

न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनम्
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो

इसका भावार्थ है:

‘यहां कभी भी शत्रुता को शत्रुता के माध्यम से शांत बिलकुल नहीं किया जाता है, बल्कि अ-शत्रुता के माध्यम से ही शांत किया जाता है. यही शाश्वत नियम है.’

भगवान महावीर और सम्राट अशोक से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक, भारत ने सदैव ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अहिंसा केवल एक आदर्श मात्र नहीं है जिसे हासिल करना भी कठिन हो, बल्कि यह एक स्पष्ट संभावना भी है. यही नहीं, अपितु अनेक लोगों के लिए यह एक जीवंत यथार्थ भी है. हम आशा करते हैं कि संघर्षों में उलझे क्षेत्रों में, उन संघर्षों को सुलझाने तथा शांति स्थापित करने के मार्ग को खोज लिए जाएंगे.

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