Center On Electoral Bond Scheme: इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर बुधवार (1 नवंबर) को दूसरे दिन की सुनवाई हई है. इस दौरान कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इलेक्टोरल बॉन्ड का बचाव किया है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है. पहले नकद यानी कैश में चंदा दिया जाता था. उन्होंने कहा है कि गोपनीयता (Confidentiality) की व्यवस्था दानदाताओं (Donor) के हित में रखी गई है.

क्या-क्या दलीलें दी है?

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आगे कहा है कि राजनीतिक पार्टी को चंदा देने वाले भी गोपनीयता (Confidentiality) चाहते हैं ताकि दूसरी पार्टी उनके प्रति नाराजगी न रखें. सत्ताधारी पार्टी को ज्यादा पैसे मिलना कोई नई बात नहीं है क्योंकि 2004 से 14 के बीच भी यही हुआ करता था. सुनवाई (Hearing) गुरुवार यानी आज (2 नवंबर) को भी जारी रहेगी.

दरअसल बात यह है कि, सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने राजनीतिक फंडिंग (Political Funding) से जुड़ी चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार (31 अक्टूबर) से सुनवाई शुरू की है. इससे एक दिन पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था. इसमें उन्होंने कहा है कि किसी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे की जानकारी पाना नागरिकों का मौलिक अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट (SC) ने आर वेंकटरमनी से मामले में अपनी राय देने को कहा था.

पहले दिन की सुनवाई में क्या क्या हुआ?

एडीआर का पक्ष रख रहे प्रशांत भूषण ने मंगलवार को कोर्ट में कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड लोकतंत्र के लिए सही नहीं है क्योंकि पता नहीं चल पाता है कि किस पार्टी को कितना चंदा मिला है.

किसे कितना चंदा मिला है?

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफर्म्स (Association for Democratic Reforms) के अनुसार चुनावी बांड से सभी राजनीतिक दलों को 2021-22 तक कुल 9,188 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. इसमें बीजेपी हिस्से में 57 प्रतिशत  से अधिक का चंदा आया जबकि कांग्रेस पार्टी को केवल 10 प्रतिशत मिला है.

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