Sanitary pad facts: 800 साल में नष्ट होता सैनिटरी पैड्स, 90% प्लास्टिक से बना, सालाना 1200 करोड़ पैड्स कूड़ेदान में और जानें – कितना खतरनाक हैं सैनिटरी पैड्स और डायपर..
Sanitary pad facts: पीरियड्स एक ऐसा विषय है, जिस पर लोग अब खुलकर बात करने लगे है। प्यूबर्टी यानि कि यौवनारम्भ के बाद हर लड़की और महिलाएं को हर महीने पीरियड्स से गुजरना पड़ता है।
यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो हर लड़की और महिलाएं जिससे गुजरती है, लेकिन बाजार ने इसे अब बखूबी भुना लिया है। बाजार में सैनिटरी पैड्स और सैनिटरी पैड्स को बेचने बली कंपनियों की बहार है। कोई लंबे समय तक टिके रहने का दावा करता है तो कोई दाग न लगने का ..
वाटरएड इंडिया और मेंस्ट्रुअल हाइजीन एलायंस ऑफ इंडिया 2018 के सर्वे के अनुसार भारत में 33.7 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं।
हमारे देश में हर साल लगभग 1200 करोड़ सैनिटरी पैड्स का कचरा निकलता है जो लगभग 1,13,000 टन है।
सैनिटरी पैड्स का कचरा दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। न केवल सैनिटरी पैड्स बल्कि बच्चें के डायपर भी स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए एक चिंता का करण बना हुआ हैं।
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सैनिटरी पैड्स में हानिकारक प्लास्टिक और केमिकल
सैनिटरी पैड्स बनाने वाली कई नामी कंपनियां धड़ल्ले से इसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रही हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2018-19 रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी पैड में 90% प्लास्टिक होता है, जिसके कारण भारत में हर साल लगभग 33 लाख टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है।
‘टॉक्सिक लिंक्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2021 में लगभग 1230 करोड़ सैनिटरी पैड्स कूड़ेदान में फेंके गए। एक सैनिटरी पैड पर्यावरण को 4 प्लास्टिक बैग के बराबर नुकसान पहुंचाता है।
सैनिटरी पैड्स को अगर मिट्टी में दबा दिए जाएं तो इनमें मौजूद केमिकल्स मिट्टी के सूक्ष्म जीवों को खत्म करने लगती हैं जिससे मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाती हैं।
वहीं, अधिकांश सैनिटरी पैड्स में ग्लू यानी कि गोंद और सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलिमर (SAP) होते हैं जिन्हें नष्ट होने में लगभग 500 से 800 साल तक लग जाते हैं।
आगे बढ़ने से पहले फ़ोटो से जानिए सैनिटरी पैड्स को नष्ट होने में कितना समय लगता है:
- डायपर 900 साल
- मेंस्ट्रुअल कप 1 से 10 साल
- सैनिटरी पैड्स 500 से 800 साल
- इकोफ्रेंडली सैनिटरी पैड्स 1 साल
- कपड़े का पैड्स और लंगोट1 से 10 साल
- इकोफ्रेंडली सैनिटरी पैड्स 1 साल
इनफर्टिलिटी (बांझपन), कैंसेर और मां बनने में हो सकती है दिक्कत
भारत में जारी ‘मेंस्ट्रुअल वेस्ट 2022’ की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी पैड्स में फ्थालतेस् (Phthalates) नाम का केमिकल इस्तेमाल होता है। यह केमिकल कैंसर का कारण भी बन सकता है। साथ ही बांझपन (इनफर्टिलिटी), पीसीओडी (PCOD) और एंडोमेट्रियोसिस की समस्या भी सकती हैं। इसके कारण याद्दाश्त भी जा सकती है और लकवा भी मार सकती हैं! टॉक्सिक लिंक की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी पैड्स में वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (VOCs) नाम का केमिकल उपयोग किया जाता है। यह केमिकल पेंट, डियोड्रेंट, नेल पॉलिश और एयर फ्रेशनर आदि में ये केमिकल डाले जाते है। सैनिटरी पैड्स के अंदर इन सभी केमिकल की मदद से फ्रेंगरेंस यानी कि खुशबू डली जाती है।
एक सर्वे में यह सामने आई है कि 10 सैनिटरी पैड्स में 25 तरह के वीओसी (VOC) केमिकल मौजूद होते हैं। यह केमिकल सीधा हमारे दिमाग पर असर करती है और यह केमिकल हमारे त्वचा के लिए भी नुकसानदेह होता है। इसके अलावा थकान होना, इससे खून की कमी, लिवर और किडनी के काम करने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
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इंसानों के पेट में जा रहा माइक्रोप्लास्टिक और समुद्री जीवों पर मुसीबत
यूरोपियन कमीशन के रिपोर्ट के अनुसार कई लड़कियां सैनिटरी पैड्स को गलत तरीके से टाइलेट में फ्लश कर देती हैं जिससे समुद्र में प्लास्टिक वेस्ट बढ़ रहा है और इस वजह से हर साल लगभग 10 लाख समुद्री चिड़िया, अनगिनत मछलियां और 1 लाख समुद्री जीव अपनी जान गंवा रही हैं। यहीं नहीं इस वजह से जो लोग सी फूड खाते हैं, उनके शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ती जा रही है।
नॉर्थ कोरिया में बैन, साउथ कोरिया में सैनिटरी पैड पर बवाल
2017 में साउथ कोरिया की महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड बैन करने के लिए सड़कों पर उतर आई थीं। हालांकि यह मांग एक कंपनी के सैनिटरी पैड्स के लिए थी जिसमें कई तरह के केमिकल का इस्तेमाल हो रहा था। इन्हें इस्तेमाल करने से कई महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द, हैवी फ्लो और इन्फेक्शन जैसे लक्षण दिखे।
जिन महिलाओं को पीरियड्स 5 से 7 दिन तक होते, उनके पीरियड्स का समय घटकर केवल 2 दिन रह गया। इन हेल्थ इश्यू के करण सैनिटरी पैड्स को बैन करने की मांग की गई।
साउथ कोरिया के कोरियन वुमन एनवायर्नमेंटल नेटवर्क के सर्वे के अनुसार 3 हजार से ज्यादा महिलाओं को इन सैनिटरी पैड्स से परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन सरकार ने इस पर कोई बैन नहीं लगाया, लेकिन कंपनी ने माफी मांगते हुए उन सभी महिलाओं को रिफंड देने की बात कही।
कहां-कहां फेंका जाता है सैनिटरी पैड्स, नीचे दिये हुए फ़ोटो से जानिए:
- 33% जमीन में दबा दिया जाते हैं.
- 28% दूसरे कुड़े के साथ डाले जाते हैं.
- 28% खुले में फ़ेक दिया जाते हैं.
- 28% खुले में जला दिया जाते हैं.
उत्तर कोरिया में लड़कियां रीयूजेबल पैड्स को धोकर इस्तेमाल करती हैं
उत्तरी कोरिया में सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल बैन है। वहां के बाजारों में न सैनिटरी पैड्स मिलते हैं और न ही टैंपून। वहां की लड़कियां रीयूजेबल पैड्स इस्तेमाल करती हैं जिन्हें धोकर दोबारा इस्तेमाल किया जाता है।
वहीं अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने सैनिटरी पैड्स के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।
सैनिटरी पैड्स और डायपर वेस्ट को सही तरीके से नष्ट करना जरूरी
सैनिटरी पैड्स और डायपर का इस्तेमाल बंद करना संभव नहीं है, लेकिन इन्हें नष्ट करने का एक सही तरीका होना चाहिये है।
इस मेडिकल वेस्ट यानि कि सैनिटरी पैड्स से पानी के साथ-साथ हवा भी दूषित हो रहा है। इस वेस्ट को अगर तालाब या नदी में फेंका जाये तो इसमें लगा बायोलॉजिकल वेस्ट, पानी का रंग खराब करके उसमें बदबू फैलाता है।
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हमारा कचरा हमारी जिम्मेदारी और हमारी समझदारी
‘सैनिटरी पैड्स और डायपर से होना वाला प्रदूषण को खत्म करना’ हमारी जिम्मेदारी और हमारी समझदारी है, प्लास्टिक का इस्तेमाल हर चीज में हो रहा है। आज पानी की पाइपलाइन से लेकर दूध की थैली तक प्लास्टिक से बन रही है जो हमरे पर्यावरण के लिए एक गंभीर सिरदर्द बन गया है।
बायोलॉजिकल वेस्ट और प्लास्टिक वेस्ट के बारे में हमें यह समझना होगा कि जो बायोलॉजिकल वेस्ट प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा होता है। उसमें हर तरह के बायोलॉजिकल प्लास्टिक वेस्ट जैसे सैनिटरी पैड्स और डायपर को रीसाइक्लिंग के लिए नहीं भेजा जाता क्योंकि इसमें कई वेस्ट प्लास्टिक मल्टीलेयर से बना होता है जो रीसाइकिल नहीं हो सकता।
सैनिटरी पैड्स और डायपर कूड़ेघर में भरे रहते हैं क्योंकि इस कचरे की कोई कीमत नहीं है।
इसके अलावा हमें रीयल वेस्ट वॉरियर यानी कचरे को उठाने वाले लोगों पर ध्यान देना चाहिए। इस सेक्टर में कई लोग प्लास्टिक को मैनेज करने में जुड़े हुए हैं। हमारा कचरा हमारी जिम्मेदारी है। इसलिए बेहतर है कि प्लास्टिक से बना सैनिटरी पैड्स और डायपर का इस्तेमाल न करें।
सैनिटरी पैड्स की जगह इस्तेमाल करें मेंस्ट्रुअल कप
मसूर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. आराधना सिंह जी के अनुसार सैनिटरी पैड्स के मुकाबले मेंस्ट्रुअल कप इको फ्रेंडली, स्किन फ्रेंडली और पॉकेट फ्रेंडली हैं। यह ग्रीन मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट है।
1 मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल 10 साल तक किया जा सकता है। इन्हें वजाइनल कैनॉल (योनी नलिका) में फिट किया जाता है जिससे पीरियड्स का ब्लड इसमें जमा होता है। पीरियड्स के फ्लो (प्रवाह) के हिसाब से मेंस्ट्रुअल कप को 6 से 8 घंटे तक लगाया जा सकता है।
लेकिन इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि हर इस्तेमाल से पहले मेंस्ट्रुअल कप को गर्म पानी में उबाल लें और जब पीरियड्स खत्म हो जाएं तो मेंस्ट्रुअल कप को साफ और सूखे कपड़े से ढंककर रखें।
इन्हें साफ करके पहनने से इन्फेक्शन से बचा जा सकता है। आजकल बाजार में मेंस्ट्रुअल कप को साफ करने के लिए सैनिटाइजर भी मौजूद हैं।
समस्या को दूर कर सकता हैं इकोफ्रेंडली सैनिटरी पैड्स
पर्यावरण को देखते हुए आजकल केमिकल फ्री और इकोफ्रेंडली सैनिटरी पैड्स बाजार में बिकने लगे हैं। इसमें भी कई तरहा की वैराइटी हैं।
कुछ सैनिटरी पैड्स केले के तने से रेशों को निकालकर बनाए जा रहे हैं तो कुछ बांस के रेशों की मदद से बनाए जा रहे हैं। इन्हें नरम और मुलायम बनाने के लिए कॉर्न स्टार्च और बायोएक्टिव लेक्टाइड डाला जाता है। ये सैनिटरी पैड्स पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ही नष्ट भी हो जाते हैं।
इकोफ्रेंडली सैनिटरी पैड्स हमारे सेहत के साथ हमारे पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है:
भारत में सैनिटरी पैड्स का बाजार फल-फूल रहा है
जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी ने 1929 में भारत में सैनिटरी पैड्स मनुफैक्चरिंग की शुरुआत की थी। बही विस्पर कंपनी ने 1993 में भारत के हर तबके की महिला तक सैनिटरी पैड्स को पहुंचाया। कंपनी ने अपने प्रचार के लिए स्कूल और स्लम इलाकों में मुफ्त पैड्स बांटे। आज भारत में सैनिटरी पैड्स का बाजार लगभग 1230 करोड़ रुपए का है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) में सामने आया है कि भारत में 15 से 24 साल की उम्र की 64% महिलाएं सैनिटरी पैड्स इस्तेमाल करती हैं।
डायपर से भी कम नहीं निकलता कचरा
यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रन फंड (UNICEF) के अनुसार भारत में हर साल लगभग 2.5 करोड़ बच्चे का जन्म होता हैं। 1 महीने का नवजात 1 दिन में लगभग 10 डायपर का इस्तेमाल करता है। बच्चा एक महीने में लगभग 300 डायपर पहनता है। एक डायपर का वजन 800 ग्राम होता है। भारत में हर दिन लगभग 548 टन और साल में लगभग 2 लाख टन कचरा बच्चों के डायपर का होता है। भारत में डायपर का मार्केट तकरीबन 1,400 करोड़ रुपए का है।
फ़ोटो से जानिए सैनिटरी पैड्स को फेंकने का सही तरीका:
डायपर से बच्चे को हो सकती है प्राइवेट पार्ट में परेशानी
टॉक्सिन लिंक्स ने 2020 में 19 नामी ब्रैंड्स के बेबी डायपर पर एक स्टडी की। इसमें फ्थालतेस् (Phthalates) केमिकल की मात्रा 2.36ppm से 302.25ppm निकली।
फ्थालतेस् (Phthalates) के 5 प्रकार होते हैं DEHP, DBP, BBP, DIDP, DNOP और DINP।
DEHP सबसे जहरीला प्रकार का होता है। डायपर बच्चे के प्राइवेट पार्ट से टच होता है और यह खतरनाक केमिकल त्वचा को छूने से उसमें प्रवेश कर घुलने लगता है जिससे बच्चे की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे बच्चे को रैशेज या इन्फेक्शन भी हो सकता है।
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मजबूरी में ही पहनाएं डायपर
मसूर पीडियाट्रिशियन डॉ. नीरज गुप्ता जी कहते हैं कि डायपर न केवल पर्यावरण को बल्कि बच्चे की त्वचा और आम आदमी की जेब को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
अक्सर लोग बच्चे को 24 घंटे डायपर पहनाकर रखते हैं। इससे बच्चे के त्वचा पर हवा नहीं लगती। डायपर में बच्चे का स्टूल और यूरिन जमा होता रहता है जिसमें कई तरह के केमिकल होते हैं। खासकर यूरिन अगर लंबे समय तक त्वचा को टच करे तो इससे बच्चे को खुजली होने लगती है और बच्चे रोने लगते है। इससे स्किन में इन्फेक्शन भी हो जाता है।
बेहतर होगा, कि बच्चे को डायपर नहीं पहनाया जाए, लेकिन अगर आप ट्रैवल कर रहे हो या किसी किस्म की मजबूरी हो तभी डायपर पहनाएं। इस दौरान भी हर 1 घंटे में डायपर चेक करते रहें।
कई बार बच्चा यूरिन नहीं करता, लेकिन पसीने आने के कारण डायपर गीला रहता है। बच्चे ने यूरिन किया है या नहीं, लेकिन हर 2 घंटे पर डायपर बदलते रहना चाहिए। घर आते ही बच्चे का डायपर तुरंत उतार दें। उसे हमेशा सूती कपड़े की नैपी पहनाएं।
अगर बच्चे को रैशेज हो जाएं तो बच्चे के प्राइवेट पार्ट पर हवा लगने दें और उस पर जिंक ऑक्साइड की क्रीम लगाएं।
आजकल बाज़ार में कई तरहा के नैपी क्रीम आ रही हैं जिससे बच्चे को रैशेज न हो। लोग पहले क्रीम लगाते हैं और फिर डायपर पहना देते हैं। ये गलत है, और ऐसा करने की भी जरूरत नहीं है।
सैनिटरी पैड्स और डायपर को नष्ट करने के नियम
भारत में सैनिटरी पैड्स और डायपर के वेस्ट को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2016 के तहत सॉलिड वेस्ट की कैटेगरी में रखा गया है। जिन चीजों में खून या बॉडी फ्लूड लगा होता है, वह बायो मेडिकल वेस्ट की श्रेणी में आते हैं। इन्हें नष्ट करने के लिए सरकार ने एक अलग गाइडलाइन बनाई है।
इस वेस्ट में आटोक्लेविंग नाम की एक प्रक्रिया से एक निर्धारित समय में गर्म भाप के जरिए वेस्ट को नष्ट किया जाता है। इससे बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं।
सैनिटरी वेस्ट को माइक्रोवेविंग प्रक्रिया से भी नष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया में कचरे के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं और उसमें पानी मिलाया जाता है। इसके बाद कचरे में मौजूद सूक्ष्मजीवों और हानिकारक तत्वों को खत्म करने के लिए इसे गर्म किया जाता है।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2016 के अनुसार सैनिटरी पैड्स और डायपर नॉन रिसाइकिल वेस्ट में आते हैं। सैनिटरी पैड्स और डायपर को फेंकने के लिए कंपनी निर्माता को लिफाफे, डिस्पोसेबल बैग या रैपर देने चाहिए और इसी डिस्पोसेबल बैग में सैनिटरी वेस्ट को यूज करने के बाद ढक कर फेंकना चाहिए।
सैनिटरी पैड्स को कभी शौचालय के कमोड में नहीं फेंकना चाहिए। सभी पब्लिक टॉयलेट और घरों में इस कचरे को डिस्पोजेबल डस्टबिन में अलग से फेंकना चाहिए।
सैनिटरी पैड्स हों या डायपर, इनका इस्तेमाल करना या ना करना हमारे अपने हाथों में हैं क्योंकि इनके अलावा और भी कई विकल्प हैं।
अगर आप पर्यावरण प्रेमी हैं और अपनी सेहत के लिए सजग हैं, तो बेहतर है कि इको फ्रेंडली सैनिटरी पैड्स हों या डायपर अपनाएं।
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Note:
सुझाव/ अस्वीकरण:- यह ब्लॉग/आर्टिकल सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| यह किसी भी तरह से योग्य, चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है। अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें|
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