बच्चों की साइकोलॉजी

बच्चों की साइकोलॉजी क्या कहती है और इसे कैसे समझें?

बच्चों की साइकोलॉजी: बचपन सिर्फ खेल-कूद और मस्ती का नाम नहीं है, बल्कि यह जीवन की नींव रखने वाला सबसे महत्वपूर्ण समय भी होता है। बच्चों की साइकोलॉजी (Child Psychology) हमें यह समझने में मदद करती है कि बच्चे कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं और दुनिया को अपने नजरिए से कैसे देखते हैं।

 बच्चों की साइकोलॉजी क्या कहती है?

  1. हर बच्चा खास होता है – सभी बच्चे अलग-अलग तरीके से सोचते, समझते और प्रतिक्रिया देते हैं। किसी को जल्दी चीज़ें समझ आती हैं, तो कोई धीरे-धीरे सीखता है।

  2. बच्चे देख कर सीखते हैं – बच्चे अपने आस-पास के माहौल और बड़ों के व्यवहार से बहुत कुछ सीखते हैं। इसलिए एक अच्छा उदाहरण पेश करना बहुत ज़रूरी है।

  3. खेलना सिर्फ मज़ा नहीं, एक ज़रिया है सीखने का – बच्चे अपने खेल और कलात्मक गतिविधियों (जैसे ड्राइंग, कहानी बनाना और सुनना) के ज़रिए अपने मन की बातें व्यक्त करते हैं।

  4. भावनात्मक ज़रूरतें सबसे ज़रूरी हैं – बच्चों को सिर्फ खाना, खिलौना और कपड़े नहीं चाहिए, उन्हें प्यार, सराहना और सुरक्षा की भी उतनी ही ज़रूरत होती है। जब उन्हें यह नहीं मिलता, तो वे अंदर से असुरक्षित महसूस करते हैं।
  5. हर उम्र की अपनी साइकोलॉजी ज़रूरत होती है – एक नवजात शिशु और एक किशोर की ज़रूरतें और समझने का तरीका बहुत अलग होता है।

  6. विकास की अवस्थाएँ बेहद जरूरी होती हैं: प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जैसे कि जीन पियाजे और एरिक एरिक्सन ने यह बताया है कि बच्चे विभिन्न विकासात्मक चरणों से गुजरते हैं:

    1. सेंसरी-मोटर अवस्था (0–2 वर्ष): इस उम्र में बच्चा चीजों को छूकर और देखकर जानने की कोशिश करता है।

    2. प्री-ऑपरेशनल अवस्था (2–7 वर्ष): इस अवस्था में बच्चा कल्पना करता है, लेकिन तर्कशील सोच की कमी होती है।

    3. कंक्रीट ऑपरेशनल अवस्था (7–11 वर्ष): बच्चा तार्किक (लॉजिकल) सोच विकसित करना शुरू करता है और सामाजिक नियमों को समझने लगता है।

    4. फॉर्मल ऑपरेशनल अवस्था (12 वर्ष और उससे ऊपर): बच्चा सैद्धांतिक (थ्योरेटिकली) सोच और गहराई से विश्लेषण करने लगता है।

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बच्चों की साइकोलॉजी

बच्चों की साइकोलॉजी को कैसे समझें?

धैर्य से सुनें  – बच्चों की बातों को ध्यान से सुनें। वे क्या कहना चाह रहे हैं, उसकी गहराई को समझें बच्चों से बिना टोके या जज किए बात करें। जब वे खुलकर बोलते हैं, तो आप उनके मन की गहराई तक पहुँच सकते हैं।

उनके व्यवहार को Observe करें –बच्चों का व्यवहार, नींद का पैटर्न, खाने की आदतें, बच्चा गुस्सा कर रहा है या चुपचाप है और दूसरे बच्चों के साथ उनका व्यवहार इसके पीछे कोई वजह जरूर होती है। ये सब उनके मानसिक स्थिति का संकेत देते हैं।

खेल और रचनात्मकता को महत्व दें – उनके ड्रॉइंग, खेल, या कहानियाँ उनके मन की स्थिति को दर्शाती हैं।

डाँटना नहीं, समझना ज़रूरी है – जब कोई बच्चा गलत करता है, तो उसे सिर्फ सज़ा नहीं, समझ भी चाहिए कि क्यों ऐसा नहीं करना चाहिए।

प्रोफेशनल (मनोवैज्ञानिक) सलाह लेने से न डरें – यदि बच्चा ज्यादा डरता है, गुस्से में रहता है, या सामाजिक रूप से अलग-थलग है, तो एक बाल मनोवैज्ञानिक की मदद ज़रूरी हो सकती है।

निष्कर्ष:…

बच्चों की दुनिया बहुत छोटी और कोमल जरूर होती है, लेकिन उनके जज़्बात बहुत गहरे होते हैं।
अगर हम उन्हें समझने की कोशिश करें, तो न सिर्फ वे बेहतर बनते हैं, बल्कि हम भी एक बेहतर इंसान बनते हैं। और हम उनके भविष्य को भी संवार सकते हैं। 

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Note :-

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By: KP

Edited by: KP

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