CAA

Information of CAA : केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) नियमों का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। यह कानून 2019 में पारित किया गया था और इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर देशभर में विरोध-प्रदर्शन हुए थे। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि CAA क्या है और इससे जुड़ा विवाद क्या है?

CAA जिसे 11 दिसंबर 2019 को पार्लियामेंट में पास किया गया इसके तहत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का आदेश है। लेकिन इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ है। विपक्ष इसे संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन मान रहा है, जो समानता के सिद्धांत को बनाए रखने की बात करता है।

क्या है CAA पर आपत्ति ?

CAA के पक्ष और विपक्ष में दो भिन्न मत हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि यह कानून धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को सहारा देने के लिए बनाया गया है। विपक्ष का दावा है कि इसका असली उद्देश्य मुसलमानों को बेघर करना है। लोकसभा में बहस के दौरान AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसी तरह के आरोप लगाए थे।

NRC और CAA के संबंध में एक मुद्दा उठा है। यहाँ एक समस्या है कि यदि एक मुसलमान NRC के दौरान अपने नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ नहीं प्रस्तुत कर पाता है, तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। गृहमंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा है कि सीएए को NRC से जोड़कर नहीं देखा जाएगा और किसी भारतीय की नागरिकता को छेड़ने का कोई इरादा नहीं है।

NPR की प्रक्रिया को NRC का पहली कदम माना जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारी हर घर में जायेंगे और हर व्यक्ति का डेटा जमा जमा करेंगे उनके आधार पर ‘संदेहपूर्ण नागरिक’ की सूची तैयार की जाती है, जिन्हें कहा जाता है कि वे अपनी नागरिकता को प्रमाणित करने वाले दस्तावेज़ पेश करें। उसके बाद, एक सूची तैयार की जाती है जो यह निर्धारित करती है कि कितने लोग अपनी नागरिकता साबित कर पाए हैं और कितने नहीं। वे जो नागरिकता में विफल होते हैं, उन्हें ‘डिटेनशन सेंटर‘ भेज दिया जायेगा ।

CAA

कुछ लोगों के लिए NRC के दौरान अपनी नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में, उन्हें अवैध प्रवासी घोषित किया जा सकता है। और CAA के तहत भी उन्हें नागरिकता प्राप्त नहीं करने का मौका मिल सकता है, क्योंकि यह केवल निर्दिष्ट धर्मों के अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता प्रदान करने की प्रावधानिकता रखता है।

कुछ लोगों का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना चाहती है, तो तिब्बत, श्रीलंका, और म्यांमार के साथ-साथ हजारा और अहमदिया नागरिकों को भी इसमें क्यों शामिल नहीं किया गया है।

 

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