रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र और निस्वार्थ प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। यह त्योहार हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्योहार है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है? रक्षाबंधन को मनाने के पीछे कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं इन कथाओं के बारे में-
रक्षाबंधन मनाने के पीछे की पौराणिक कथाएं
रक्षाबंधन के पर्व को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि राजा बलि देवताओं को परेशान और उन पर आक्रमण किया करता था। इस कारण इंद्र देव काफी दुखी रहते थे। इंद्र देव की पत्नी शची अपने पति और अन्य देवगणों को देखकर चिंतित हो उठीं और भगवान विष्णु की शरण में चली गई। शची ने भगवान विष्णु से देवताओं की मदद करने के लिए कहा तो भगवान विष्णु ने शची को एक रक्षा सूत्र यानी धागा दिया। भगवान विष्णु ने शची से उस धागे को इंद्र देव की कलाई पर बांधने के लिए कहा। शची ने ऐसा ही किया उसने वह रक्षा सूत्र इंद्र देव की कलाई पर बांध दिया। इसके बाद इंद्र देव ने राजा बलि को युद्ध में पराजित कर दिया। उसके बाद से ही बहने अपने भाई को और पत्नियां अपने पति को राखी बांधने लगीं।
ये कथा महाभारत काल की है। और कहा जाता है कि श्री कृष्ण के बुआ के बेटे शिशुपाल के सौ अपराध पूरे हो गए थे। तब भगवान कृष्ण जी ने उसका वध कर दिया। उस वध के दौरान भगवान कृष्ण की तर्जनी (Index Finger) उंगली में चोट लग गई और खून निकलने लगा तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान के हाथ पर पट्टी बांध दी। इसके बाद भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया था भगवान ने द्रौपदी चीर हरण के समय उस वचन को निभाया जब कोरव द्धारा उनको निर्वस्त्र करने की कोशिश की जा रही थी और भगवान कृष्ण ने उन्हें निर्वस्त्र होने से बचाया था।
रक्षाबंधन मनाने के पीछे की ऐतिहासिक कहानी
रक्षाबंधन के त्योहार के साथ ऐतिहासिक कहानी भी जुड़ी है। रानी कर्णावती मेवाड़ की रानी थी और चित्तौड़ के राजा महाराणा सांगा की विधवा थीं। एक बार गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चितौड़ पर आक्रमण कर दिया। रानी कर्णावती ने मुगल साम्राट हुमायूं को राखी भेज कर सहायाता मांगी। मुगल साम्राट हुमायूं को जैसे ही रानी कर्णावती का संदेश और राखी (रेशम का धागा) मिली हुमायूं ने उस राखी का मान रखते हुए मेवाड़ की सहायता का निर्णय लिया और अपनी सेना के साथ रानी कर्णावती की मदद के लिए निकल गया थे लेकिन हुमांयू रानी कर्णावती को नही बचा पाया क्योंकि हुमांयू के वहां पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर चुकी थीं। जब हुमांयू को ये बात पता चली तो उसने बहादुरशाह के साथ युद्ध किया और राजकुमार उदय सिंह को महराणा (राजा बनाया) बनाया।
इस मौजूदा समय मैं जिस परकार महिलाओं पर आए दिन दिल को अशांत और दुखी करने वाली घटनाए हो रही है । ऐसे में समाज के हर एक पुरष को देश की महिलाओं का आत्म विश्वास और सम्मान को बचाने का प्रण लेना चाहिए और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए.