Janmashtami Mahotsav : भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है, जिसे जन्माष्टमी कहा जाता है। श्रीकृष्ण ऐसे हिंदू देवता हैं जिनके मंदिर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हैं। इसलिए, भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग और विदेशों में बसे भारतीय भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को बड़े धूमधाम से उत्सव के रूप में मनाते हैं।
Janmashtami Mahotsav
भारत में जन्माष्टमी के दिन लोग अलग-अलग तरीके से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। कहीं उनकी लीलाओं का आनंद लिया जाता है, तो कहीं 56 भोग अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और रात 12 बजे उनके जन्म के लिए विशेष तैयारियां करते हैं। इस बार जन्माष्टमी 26 अगस्त, सोमवार को मनाई जाएगी। इस अवसर पर, हम आपको बताएंगे कि देश के विभिन्न हिस्सों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व किस प्रकार मनाया जाता है।
ब्रज क्षेत्र
जन्माष्टमी के संदर्भ में सबसे पहली बात ब्रज क्षेत्र की होती है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था और उनका बाल्यकाल भी यहीं बीता था। ब्रज के लोग श्रीकृष्ण के प्रति गहरा प्यार और आस्था रखते हैं। यहां उन्हें कान्हा, कन्हैया, माखन चोर जैसे नामों से पुकारा जाता है। जन्माष्टमी के दिन ब्रज पूरी तरह से कन्हैया के रंग में रंग जाता है। इस पर्व की तैयारियां बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों और मंदिरों में झांकियां सजाते हैं, जो कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाती हैं। छोटे बच्चों को कन्हैया और राधा बना कर इन लीलाओं को जीवंत किया जाता है।
जन्माष्टमी महोत्सव
कैसे मनाते है उत्सव
जन्माष्टमी के पावन दिन पर महिलाएं अपने प्यारे कान्हा के लिए माखन और मिश्री के साथ-साथ कई विशेष व्यंजन घर पर ही बनाती हैं। शाम को सभी मंदिरों में भजन और कीर्तन शुरू हो जाते हैं। रात 12 बजे मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि में कन्हैया का जन्म मनाया जाता है और उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है। ब्रज के लोग भी अपने घरों में रात 12 बजे नारियल वाले खीरे से कन्हैया का जन्म कराते हैं और उन्हें दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल से स्नान कराते हैं। इसके बाद, मिष्ठान, मेवा, और पंचामृत का भोग अर्पित किया जाता है। कन्हैया को सुंदर वस्त्र पहनाकर झूले पर बिठाया जाता है और झुलाया जाता है। अंत में, लोग प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं। इस अवसर पर दूर-दूर से लोग मथुरा और वृंदावन आते हैं।
गुजरात
मथुरा छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में बस गए थे और वहां द्वारकापुरी की स्थापना की थी। इसलिए गुजरात में उन्हें द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के रूप में पूजा जाता है। गुजरात में, जन्माष्टमी के मौके पर “माखन हांडी” नामक एक खास परंपरा मनाई जाती है, जिसमें दही हांडी की तरह माखन हांडी तोड़ी जाती है। द्वारकाधीश मंदिर को फूलों से सजाया जाता है और छोटे बच्चों को कन्हैया के रूप में सजाया जाता है। मंदिरों में भजन, लोक नृत्य और गायन का आयोजन होता है। कच्छ जिले में, किसान अपनी बैलगाड़ियों को सजाकर कृष्ण जुलूस निकालते हैं और सामूहिक गायन और नृत्य करते हैं। गुजरात भर में जय श्रीकृष्ण की धूम मचती है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के मौके पर कन्हैया की बाल लीलाओं का आनंद बड़े धूमधाम से लिया जाता है। सड़कें भीड़ से भर जाती हैं। मिट्टी की हांडी में माखन और मिश्री भरकर उसे ऊंचे स्थान पर लटकाया जाता है, जिसे एक लड़का कन्हैया बनकर तोड़ता है। इस तरह, महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, और जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है।
ओडिशा
ओडिशा के जगन्नाथपुरी मंदिर को जन्माष्टमी के दिन बहुत ही भव्य तरीके से सजाया जाता है। यह मंदिर चार धामों में से एक माना जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं और रात को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं।
दक्षिण और पूर्वी भारत
जन्माष्टमी के दिन लोग घरों की सफाई कर कई डिज़ाइन के रंगोली बनाते हैं और कन्हैया की मूर्ति स्थापित कर धूप, दीप और प्रसाद अर्पित करते हैं। पूर्वी भारत में कृष्ण की रासलीलाओं को मणिपुरी नृत्य शैली में प्रस्तुत किया जाता है। इसके अलावा, देश और विदेश में स्थित इस्कॉन मंदिरों को भी इस पर्व के अवसर पर भव्य तरीके से सजाया जाता है।