Hanuman Jayanti Katha in hindi : हनुमान जंयती के शुभ अवसर पर हम इस लेख जरिए हनुमान जी के जन्म की कथा के बारे में जानेंगे…
चैत्र माह की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था इसलिए यह दिन हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जी श्रीराम के भक्त थे, जो उनकी भक्ति में लीन रहते थे। उनकी माता का नाम अंजना और पिता का नाम वानर राज केसरी था।
हनुमान जन्म की कथा
हनुमान जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पर प्रमुख रूप से दो कथाएं हैं जो हनुमान जी के जन्म को लेकर प्रचलित हैं। माता अंजना ने अपने बचपन में एक बंदर को अपने पैरों पर खड़े होकर ध्यान लगाते देखा, तो उसने उस बंदर को फल फेंक कर मारा फिर वह बंदर एक ऋषि में बदल गया और उसकी तपस्या भंग होने के कारण ऋषि क्रोधित हो गया। उसने माता अंजना को शाप दिया कि जिस दिन उसे किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी। कुछ समय बाद, अंजना जंगलों में रहने लगी। वहां उनकी मुलाकात राजा केसरी से हुई, और शाप के अनुसार अंजना को प्रेम होने पर वह बंदरिया बन गई और केसरी ने अपने बारे में बताते हुए अंजना को बताया कि वह बंदरों का राजा है। केसरी की ओर से प्रस्ताव रखने पर अंजना मान गई और दोनों का विवाह हो गया। अंजना ने घोर तपस्या कर भगवान शिव से उनके समान एक पुत्र मांगा।
हनुमान जन्म से जुड़ी दूसरी कथा
सूर्य के वर से सुमेरु में सुवर्ण के राज्य में विराजमान केसरी का राज्य था। उसकी अत्यंत सुंदरी अंजना नामक पत्नी थी। एक दिन, अंजना ने शुद्धि के स्नान करके वस्त्र और आभूषण पहने। उस समय, पवन देव ने उसके कान में प्रवेश किया और आते समय उसे आश्वासन दिया कि उसका पुत्र सूर्य, अग्नि और सोने जैसा तेजस्वी होगा जो वेद-वेदांगों का ज्ञाता और विश्व में सबसे महाबली बलशाली होगा।
हनुमान जी का जन्म कार्तिक महिने के कृष्ण चतुर्दशी के दिन अंजना ने दिया। कुछ समय बाद, सूर्योदय के साथ ही बच्चे को भूख लगी। जब माता अंजना फल लाने जा रही थीं, लेकिन उस समय लाल रंग के सूर्य को देखकर हनुमान जी ने उसे फल समझकर उछलकर आकाश में उड़ चढ़ा।
उस दिन अमावस्या के समय, सूर्य को ग्रसने के लिए राहु भी उपस्थित था, लेकिन हनुमान जी ने उसे न देखकर दूसरा राहु मानकर वहां से भाग गए। इस पर इंद्र ने उन पर वज्र से प्रहार किया, जिससे हनुमान जी मूर्छित हो गए। उसके बाद पवन देव ने पृथ्वी पर वायु का संचार रोक दिया। इससे इंद्रदेव ने हनुमान से माफी मांगी, और भगवान शिव ने उन्हें ठीक किया। इसके बाद पवनदेव ने फिर से वायु का संचार पुनः सुचारू रूप से शुरू किया। उसके बाद सभी देवताओं ने हनुमान को विशेष वर वरदान दिए, जिससे उन्होंने बहुत सारे अदभुद कार्य किए।