गिद्धौर का दुर्गा पूजा

बिहार : जमुई के गिद्धौर का दुर्गा पूजा बेहद मशहूर है, चंदेल राजवंश के द्वारा बनवाए दुर्गा मंदिर की जानिए खासियत –

Gidhaur Durga puja

जमुई के गिद्धौर में मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा का इतिहास बहुत पुराना है. प्राचीन काल में महाराजा के निमंत्रण पर ब्रिटिश शासक भी यहां मेले में भाग लेते थे चंदेल राज रियासत से जुड़े झारखंड राज्य देवघर के विद्वान पंडितों द्वारा भगवती की तांत्रिक विधि से विशिष्ट पूजा करायी जाती है.

गिद्धौर का दुर्गा पूजा

Gidhaur Durga puja: जमुई के गिद्धौर में भी दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है. 

भारतीय इतिहास के कालखंड में देवी पूजा से संबंधित अनेक देवी-देवताओं का वर्णन धार्मिक ग्रंथों एवं वेद-पुराणों में मिलता है। देवी पूजा की पौराणिक कथाओं में चंदेल राजवंश द्वारा स्थापित गिद्धौर महल की ऐतिहासिक दुर्गा पूजा भी शामिल है।

धार्मिक मान्यताओं एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा गया है कि ‘जहां नारियों की पूजा होती है, वहीं देवताओं का वास होता हैं, और आदिशक्ति मां दुर्गा भी नारी शक्ति स्वरूप हैं. आदिशक्ति मां भगवती की पूजा कभी चंदेल वंश का गढ़ रही है, गिद्धौर रियासत द्वारा भी पूजा करवायी जाती रही है।

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पूजा राज्य के रियासत के विद्वान पंडितों से करवायी जाती :

अलीगढ़ के शिल्पकारों द्वारा निर्मित जैन धर्म ग्रंथ में वर्णित उज्जूवलिया वर्तमान में उलाय नदी के नागी नकटी संगम के तट पर स्थित मां दुर्गा के एतिहासिक मंदिर में तंत्र विद्या के तंत्रविधान की कुंडलिनी विधि से पूजा की जाती है. सदियों से राज्य रियासत के विद्वान पंडितों के द्वारा यहां दुर्गा पूजा करवायी जाती रही है, जो वर्तमान काल में आज भी कायम है. 

गिद्धौर का दुर्गा पूजा

विसर्जन : मां दुर्गा का विसर्जन दशमी के दिन वही के निकट गिद्धौर के मां त्रिपुर सुंदरी तालाब में श्रद्धापूर्वक करते है।

गिद्धौर का दुर्गा पूजा

चंदेल राज्य रियासत के ग्रामीणों में दुर्गा पूजा वा दशहरे को लेकर यह कहाबत :

गिद्धौर के इस ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर में मां पतसंडा की पूजा को लेकर सदियों से एक कहाबत है, कि काली है कलकत्ते की दुर्गा है पतसंडे की. अर्थात काली के प्रतिमा की भव्य जो स्थान बंगाल राज्य के कोलकत्ता में है. वही स्थान गिद्धौर में आयोजित मां पतसंडा के दुर्गा पूजा का यहां के दशहरा में है. यहां पर नवरात्र के पावन पर्व में हर रोज हजारों श्रद्धालू पुर्ण श्रद्धा व अखंड विश्वास के साथ माता दुर्गा की प्रतिमा की पूजा एवं दर्शन करने के लिए मंदिर परिसर में आते हैं.

11वीं शताब्दी से ही यहां निरंतर चलती आ रही है मां पतसंडा की पूजा :

गिद्धौर का दुर्गा पूजा

यहां यह कहना कठिन है कि गिद्धौर के दशहरा की शुरूआत कब और कैसे हुई. समय के साथ इसके स्वरूप व संरचना में कई तरह के बदलाव आये. लेकिन निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि जब से गिद्धौर चंदेल राज्य रियासत की नींव वीर विक्रम सिंह ने 11वीं शताब्दी में रखी थी, गिद्धौर का ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर गिद्धौर राज्य रियासत के किले के निकट उलाय नदी के पावन तट पर स्थित है। यह मंदिर पौराणिक काल से ही चंदेल राजाओं के कुल देवी के रूप में विख्यात हैं। यू तो कई बार मां के मंदिर की मरम्मत हो चुकी है।

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लेकिन मंदिर की ऐतिहासिकता व मुल संरचना वहीं है। इस इलाके के लोगो के अनुसार इस मंदिर में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा सुंदर और व्यापक मानी जाती है। यहां के पुजा की पहचान दंडवत देने की व तांत्रिक विधि से कराई गई पुजा से है। बुजुर्गों की मानें तो उलाय नदी तट पर स्थित मां दुर्गा का निर्माण लगभग 1566 ई. में किया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गिद्धौर की दुर्गापूजा अपने परंपरा व पूरे विधि विधान के साथ मनाये जाने के कारण देश के कई राज्यों में प्रसिद्ध हो गई। दुर्गा पूजा में पुरे बिहार में मात्र दो जगह ही दंडवत की प्रथा है। एक है गिद्धौर महाराजा की दुर्गा की पुजा व दूसरा दरभंगा महाराजा के दुर्गा पुजा की। यहां कलश स्थापना से लेकर विजयदशमी तक श्रद्धालु नदी में स्नान कर नदी से मां दुर्गे की मंदिर तक दंडवत देते हुए आते है। देवघर के सुप्रसिद्ध पुरोहित (पंडा जी) के द्वारा पुरे विधि विद्यान के साथ मां दुर्गे की पुजा अर्चना कराई जाती है। दुर्गापुजा के अवसर पर पुरा इलाका भक्ति के माहौल में डूब जाता है। वर्तमान में मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण गिद्धौर के प्रसिद्ध मूर्तिकार राजकुमार रावत के द्वारा गंगा तट से लायी गयी विशेष काली मिटी से बनाई जाती है।

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तब से से लेकर आज तक चाहे वह मूगल सम्राज्य के शासनकाल का समय रहा हो, ईस्ट इंडिया कंपनी का या फिर ब्रिटिश साम्राज्य या स्वतंत्रता प्राप्ति के पुर्व गिद्धौर दशहरे वा दुर्गा पूजा को चंदेल रियासत के महाराजाओं द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। 

बाद में इस ऐतिहासिक पुजा की बागडोर चंदेल राजवंश के अंतिम महाराजा प्रताप सिंह के द्वारा 1996 में दुर्गा पूजा आयोजन का जिम्मा स्थानीय ग्रामीणों द्वारा गठित शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा कमेटी को दे दिया गया। जिसके बाद से इस ऐतिहासक पूजा का आयोजन बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा। गिद्धौर की दुर्गा पूजा में बिहार, झारखंड, बंगाल के लाखो श्रद्धालु मां दुर्गा की अराधना को आते है। 

भारत सरकार के पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह के द्वारा भी लगातार तीन वर्षो तक दुर्गा पूजा में गिद्धौर महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें देश विदेश के नामी संगीतकार व कलाकारों ने गिद्धौर की धरती पर आकर अपनी प्रतिभा का अनोखा संगम प्रस्तुत किया। जिसे देश विदेश के लोग देखते थे। उस समय गिद्धौर की दुर्गा पूजा की पहचान विदेशी धरती पर भी हो गयी। स्व. दिग्विजय सिंह के निधन के बाद गिद्धौर महोत्सव मनाने की परंपरा लगभग बंद हो गयी। पुनः वर्ष 2018 से बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के सौजन्य से गिद्धौर महोत्सव की शुरुवात की गई। इस दुर्गा पुजा में अभी भी इतनी भीड़ उमड़ती है कि जिसकी निगरानी को लेकर दुर्गा पूजा समिति काफी सजग रहती है तो वही दूसरी ओर जिला प्रशासन भी काफी मुस्तैद रहता है।

दुर्गा पूजा वा दशहरा के अवसर पर यहां के प्रसिद्ध मेले में कभी मल्लयुद्ध, तीरंदाजी, कवि सम्मलेन, नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि उन दिनों गिद्धौर के महाराजा दर्शन के लिए आम-जानता के बीच उपस्थित होते थे तो दूसरी विशेषता यह थी कि इस दशहरा पर तत्कालीन ब्रिटिश राज्य के बड़े-बड़े अधिकारी भी मेले में शामिल होते थे, जिसमें बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर एडेन, एलेक्जेंडर मैकेंजी, एनड्रफ फ्रेज, एडवर्ड बेकर जैसे अंग्रेज शासक गिद्धौर में दशहरा के अवसर पर तत्कालीन महाराजा के निमंत्रण पर गिद्धौर आते थे।

मेले में मुख्य आकषर्क केंद्र :

इस मेले का इंतजार वहा के निवासी वा व्यापारी पूरे साल वेसबरी से करते है, बच्चो से लेकर बड़ों तक मुख्य आकषर्क जैसे की एक से एक बड़ कर झूले, बच्चो के लिए खिलोने, लजीज मिठाई, पकवान वा फास्ट फूड, सेल्फी पॉइंट, लड़कियों वा महिलाओ के लिए कास्मेटिक और ज्वैलरी, शादी विवाह के लिए फर्नीचर आदि और इस मेले मे पेड़ पौधे भी विक्री के लिए आते है।

गिद्धौर का प्रमुख धरोहर:

1: दुर्गा मंदिर, 2: पंच मंदिर, 3: राज्य महल, 4: मिंटो टावर, 5: त्रिपुर सुंदरी मंदिर!

 

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By: KP

Edited  by: KP

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