क्या बोलूं?…

क्या बोलूं?…

क्या बोलूं इन ख़ामोशियों से,
जो शब्दों से पहले बोल जाती हैं।
क्या कहूँ इन आँखों से,
जो हर राज़ चुपचाप खोल जाती हैं।

हवा भी आज ठहर-सी गई है,
दिल की बात सुनने को।
शायद कुछ एहसास बचे हैं अभी,
टूटने और जुड़ने को।

क्या बोलूं… बस इतना जान लूँ,
कि ख़ामोशी भी एक आवाज़ है।
जो महसूस कर ले इसे दिल से,
उसी के लिए ये अल्फ़ाज़ है।

क्या बोलूं?

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Note :-

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By: KP
Edited  by: KP

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