देश में इन दिनों एक ऐप का नाम खूब चर्चा में है — ‘संचार साथी’ ऐप। सरकार इसे हर नागरिक के मोबाइल में इंस्टॉल करवाना चाहती है, जबकि विपक्ष इसे “सरकारी जासूसी” का नया तरीका बता रहा है। आम जनता के मन में भी सवाल है कि आखिर ये ऐप करता क्या है? इसमें ऐसा क्या है जिससे राजनीतिक विवाद बढ़ गया? आइए आसान भाषा में समझते हैं।
संचार साथी ऐप क्या है?
‘संचार साथी’ दूरसंचार मंत्रालय की ओर से लाया गया एक अधिकारिक मोबाइल एप्लिकेशन है। इस ऐप का मकसद है:
आपके मोबाइल नंबर की सुरक्षा
फर्जी सिम कार्ड से बचाव
साइबर फ्रॉड और धोखाधड़ी रोकना
कोई आपके नाम पर गलत तरीके से सिम न ले सके इसकी जांच
सरकार का दावा है कि डिजिटल दौर में फोन नंबर और पहचान की सुरक्षा सबसे जरूरी है, और यह ऐप उसी सुरक्षा को बढ़ाने का काम करता है।

ऐप के मुख्य फीचर्स क्या हैं?
1. मोबाइल नंबर चेक करना
अगर आपके नाम पर कितने-कितने मोबाइल नंबर चल रहे हैं, आप नहीं जानते — तो यह ऐप आपको पूरी सूची दिखाता है।
अगर कोई नंबर ऐसा है जो आपने नहीं लिया, तो आप उसे रिपोर्ट या ब्लॉक कर सकते हैं।
2. चोरी हुआ फोन ट्रैक करना
अगर आपका फोन चोरी हो जाए तो इस ऐप की मदद से:
फोन ब्लॉक
फोन ट्रेस
और गलत इस्तेमाल रोकने के लिए IMEI लॉक
जैसे कदम उठाए जा सकते हैं।
3. फ्रॉड रिपोर्ट करना
किसी ने फर्जी कॉल, बैंक धोखाधड़ी या सिम-संबंधी ठगी की है तो आप सीधे ऐप में शिकायत कर सकते हैं।
सरकार क्यों चाहती है कि हर फोन में यह ऐप हो?
सरकार का कहना है कि:
बढ़ते साइबर फ्रॉड को रोकना
फर्जी सिम कार्ड और फर्जी पहचान का खुलासा
आम जनता की डिजिटल सुरक्षा मजबूत करना
इन सब वजहों से यह ऐप हर नागरिक के लिए जरूरी है। सरकार इसे सुरक्षा कवच की तरह पेश कर रही है।
तो फिर विवाद क्यों? विपक्ष क्यों बोल रहा ‘जासूसी’?
यहां से कहानी दूसरी दिशा ले लेती है। विपक्ष का आरोप है कि:
1. ऐप को कई व्यापक परमिशन चाहिए
जैसे— लोकेशन, कॉल डिटेल, फोन की जानकारी, नंबर की पहचान आदि।
विपक्ष का दावा है कि इन परमिशन के बहाने सरकार लोगों के फोन की निगरानी कर सकती है।
2. डेटा प्राइवेसी को लेकर सवाल
भारत में डेटा संरक्षण कानून नया है। विपक्ष कहता है कि:
नागरिकों के डेटा की सुरक्षा पक्की नहीं
ऐप में डाटा किसके पास जाएगा?
इसका उपयोग चुनावी सर्विलांस या राजनीतिक जासूसी के लिए हो सकता है
इन सवालों का जवाब सरकार स्पष्ट रूप से नहीं देती, विपक्ष का आरोप है।
3. पहले भी उठे थे निगरानी के आरोप
पेगासस जासूसी विवाद जैसे मुद्दों का हवाला देते हुए विपक्ष ने कहा कि सरकार पहले भी निगरानी के आरोप झेल चुकी है, इसलिए इस ऐप पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
सरकार का जवाब क्या है?
सरकार का दावा है कि:
ऐप 100% सुरक्षित है
किसी का भी निजी डेटा न तो लिया जाएगा, न स्टोर किया जाएगा
ऐप सिर्फ सिम सुरक्षा और फ्रॉड रोकने के लिए है
सभी फीचर्स नागरिक की सहमति पर आधारित हैं
सरकार इसे “पब्लिक सेफ्टी एप्लीकेशन“ कहती है, जासूसी का साधन नहीं।
आम जनता के लिए चिंता की बात क्या है?
1. डेटा प्राइवेसी का भरोसा कमजोर
भारत में डेटा सुरक्षा का ढांचा अभी मजबूत नहीं माना जाता। इसलिए लोग सतर्क हैं।
2. फर्जी कॉल-फ्रॉड बढ़ रहे
इसकी वजह से लोग ऐप को जरूरी भी मानते हैं।
3. विश्वास की कमी
राजनीति का माहौल ऐसा है कि लोग किसी भी सरकारी टेक्नोलॉजी पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे।
क्या आपको ऐप इंस्टॉल करना चाहिए?
अगर आप फ्रॉड और फर्जी सिम के खतरे से बचना चाहते हैं, तो यह ऐप काफी उपयोगी है। लेकिन अगर आप प्राइवेसी को लेकर बहुत सतर्क हैं, तो:
ऐप की परमिशन ध्यान से पढ़ें
गैरजरूरी परमिशन न दें
नियमित रूप से डेटा हटाएं
सुरक्षा और प्राइवेसी, दोनों का संतुलन जरूरी है।
सच्चाई इन दोनों के बीच कहीं है
‘संचार साथी’ ऐप एक तरफ नागरिकों की मोबाइल सुरक्षा बढ़ाने का उपकरण है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक विवादों का नया मुद्दा। सरकार इसे सुरक्षा कवच कह रही है, और विपक्ष इसे जासूसी का नया रास्ता बता रहा है। लेकिन सरकार कोई भी चीज जनता पर थोपा नहीं जा सकता लोकतांत्रिक देश में निजता का हनन है ऐसा विपक्ष का कहना है।
सच्चाई इन दोनों के बीच कहीं है—
तकनीक अच्छी है, लेकिन पारदर्शिता और डेटा सुरक्षा की गारंटी उतनी ही जरूरी है।
