“शरीफ़ दिखने वाला हर शख़्स भोला या भोली नहीं होता, वो समय से पहले ही अपने परिवार का पिंडदान भी कर देता है?।”
इस वाक्य में जीवन की एक गहरी सच्चाई छिपी है। अक्सर हम किसी इंसान की बाहरी शक्ल-सूरत, उसकी मीठी बातों, या सीधे-सादे व्यवहार को देखकर उसे अच्छा, ईमानदार, या भोला मान लेते हैं। लेकिन सच यह है कि हर मुस्कुराता चेहरा वफ़ादार नहीं होता, और हर नम्र बोलने वाला दिल से नेक नहीं होता।
“कवित”
शरीफ़ दिखने वाला हर शख़्स भोला या भोली नहीं होता..
चेहरे पे मुस्कान, मन में घाव रखते हैं,
शरीफ़ दिखते हैं, पर दिल में दाव रखते हैं।
जो अपने माँ-बाप का साथ न निभा सके,
वो समाज में क्या किरदार निभा सके?
कंधों पर संस्कारों का झूठा भार लिए,
हर रिश्ते को बेच आए, व्यापार लिए।
जो ज़िंदा अपनों को ही त्याग देता है,
वो समय से पहले पिंडदान कर देता है।
शरीफ़ दिखना और शरीफ़ होना – बड़ा अंतर है
“शरीफ़ दिखना” आजकल एक तरह का मुखौटा बन गया है। कुछ लोग अपने व्यवहार को इतना सधा हुआ, शांत और विनम्र बना लेते हैं कि सामने वाला तुरंत उनके जाल में फँस जाता है। लेकिन अंदर से वही व्यक्ति कितना स्वार्थी, चालाक या आत्मकेंद्रित हो सकता है – यह समय ही बताता है।
पिंडदान का प्रतीकात्मक अर्थ
“समय से पहले ही परिवार का पिंडदान कर देना” — यह कहना प्रतीकात्मक है। यहाँ इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी ने सचमुच कोई धार्मिक क्रिया कर दी हो, बल्कि इसका आशय है कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए अपने ही परिवार को ज़िंदा होते हुए भी मृत समझ लेते हैं।
- माँ-बाप बूढ़े हो गए, तो उन्हें बोझ समझ कर छोड़ दिया।
- भाई-बहन जरूरत में थे, तो मुँह मोड़ लिया।
- जीवनसाथी बीमार पड़ा, तो उसे अकेला छोड़ दिया।
- प्रेमी – प्रेमिका एक साथ रहने के लिए, परिवार का साथ छोड़ देते है
स्वार्थ का चश्मा और रिश्तों की मौत
जब इंसान पर स्वार्थ का चश्मा चढ़ जाता है, तो उसे अपने ही लोग पराए लगने लगते हैं। यही वो वक्त होता है जब शरीफ़ दिखने वाला शख़्स सबसे बड़ा धोखा दे जाता है। रिश्तों की मौत अकाल ही हो जाती है — और इसी को कहा गया है “समय से पहले पिंडदान”।
आज की सच्चाई
आज के समाज में ऐसे चेहरे बहुत मिलते हैं —
- जो समाज में आदर्श बनने का ढोंग करते हैं,
- लेकिन अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं।
- जो धर्म और सेवा की बातें करते हैं,
- लेकिन अपनों की ज़रूरत के समय गायब हो जाते हैं।
सीख क्या है?
- हर मुस्कान के पीछे का सच जानने की कोशिश करें।
- रिश्तों को परखने में समय लगाएँ, सिर्फ व्यवहार नहीं, कर्म देखें।
- कभी भी किसी की मासूमियत को उसके चेहरे से न आँकें।
- जो अपने खून के नहीं हो सकते, वो किसी और के क्या होंगे।
अंत में:
दुनिया की भीड़ में बहुत से चेहरे शरीफ़ लगते हैं, लेकिन असलियत जानने के लिए दिल की आँखें खोलनी पड़ती हैं। शब्दों से ज़्यादा इंसान के कर्म बोलते हैं। इसलिए आज के दौर में किसी की सादगी, मुस्कुराहट या नम्रता से धोखा न खाएँ।
क्योंकि—
“चेहरा भले फरिश्ते जैसा हो, मगर दिल में अगर ज़हर हो तो वो इंसान नहीं, छुपा हुआ ज़ालिम होता है।”
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