Pitru Paksha : पितृपक्ष हिन्दू धर्म का एक खास समय होता है जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि इन दिनों में पितृलोक के द्वार खुलते हैं और पितर धरती पर आकर अपने वंशजों से तर्पण और पिंडदान की प्रतीक्षा करते हैं।
पितृपक्ष हिन्दू धर्म
कब मनाया जाता है पितृपक्ष
भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक 15 दिनों तक पितृपक्ष चलता है। इस दौरान लोग अपने पितरों को जल तर्पण, पिंडदान और अन्नदान करते हैं। अगर मृत्यु की तिथि ज्ञात हो तो उसी दिन श्राद्ध किया जाता है, नहीं तो अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है।
पितृपक्ष की शुरुआत कैसे हुई
महाभारत काल में जब दानवीर कर्ण स्वर्ग पहुंचे तो उन्हें भोजन की जगह आभूषण मिले। देवताओं ने बताया कि उन्होंने जीवनभर दान तो किया पर पूर्वजों को कभी भोजन दान नहीं दिया। इसके बाद कर्ण को 15 दिन पृथ्वी पर भेजा गया ताकि वह पितरों को अन्न दान कर सके। तभी से यह अवधि पितृपक्ष कहलाने लगी।
पितृपक्ष का महत्व
श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आयु, स्वास्थ्य, धन और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार इससे परिवार में शांति बनी रहती है और पितरों की इच्छाएँ पूरी होती हैं। यह पर्व हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताने का अवसर भी देता है।
श्राद्ध के मुख्य नियम
- श्राद्ध सात्विक भोजन से करें, प्याज-लहसुन और मांसाहार न खाएं।
- ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है।
- तर्पण जल, तिल और कुश से करना चाहिए।
- दिखावा, मद्यपान और मनोरंजन से बचें।
- सबसे जरूरी है श्रद्धा और भक्ति का भाव।