भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश में हर नागरिक को अपनी बात कहने का अधिकार है। विपक्ष, किसान, युवा, या आम नागरिक – इन सभी का काम है लोकतंत्र को मजबूत करना, न कि उसे कमजोर करना। सरकार का काम है उनकी आवाज को सुनना और उनके मुद्दों को सुलझाना। लेकिन अगर हर किसी की आवाज को दबा दिया जाएगा, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है। वही सवाल यह नहीं है कि सही कौन है, सवाल यह है कि क्या हम सही सवाल पूछने की हिम्मत रखते हैं?
आखिर सही कौन?
भारत में पिछले कुछ सालों में एक नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। जब भी कोई सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, उसे या तो विरोधी खेमे में डाल दिया जाता है, या देश विरोधी करार दे दिया जाता है। विपक्ष, किसान, युवा, या आम नागरिक अगर महंगाई, बेरोज़गारी, कृषि कानूनों या अन्य मुद्दों पर सवाल उठाते हैं, तो उन्हें अक्सर “गलत” ठहराया जाता है। लेकिन इस माहौल में सवाल यह उठता है: आखिर सही कौन है?
विपक्ष की भूमिका और उसकी आलोचना
विपक्ष लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसका काम है सरकार की नीतियों और फैसलों पर सवाल उठाना, जिससे जनता के हितों को सुरक्षित रखें। लेकिन आज के दौर में विपक्ष अगर सरकार की नीतियों का विरोध करता है, तो उसे “विकास विरोधी” या “राष्ट्र विरोधी” कह दिया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, संसद में चर्चा के दौरान कई बार विपक्ष के सवालों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। कुछ मुद्दों पर बहस के बजाय, विपक्ष के खिलाफ बयानबाज़ी शुरू कर दी जाती है। ऐसा लगता है जैसे विपक्ष की आलोचना को सरकार के प्रति नफरत के रूप में देखा जा रहा है, न कि लोकतंत्र के स्वस्थ संवाद के रूप में।
भारत में किसानों का आंदोलन और उनका संघर्ष
किसान भारत की रीढ़ हैं। जब उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज़ उठाई, तो उन्हें “आंदोलनजीवी” और “राजनीति से प्रेरित” करार दिया गया। लाखों किसानों ने महीनों तक सड़कों पर प्रदर्शन किया, ओर 700 से अधिक किसानों ने अपनी जान गवाई, लेकिन उनकी मांगों को लंबे समय तक नजर अंदाज किया गया। सरकार का तर्क था कि ये कानून किसानों के फायदे के लिए हैं, लेकिन किसान जब अपनी समस्याओं को सामने रख रहे थे, तो उनके तर्कों को “गलत जानकारी का शिकार” बताया गया। अगर किसान अपनी समस्या खुद नहीं बताएंगे, तो और कौन बताएगा? फिर उन्हें “गलत” कहना क्या उचित है?
युवा और बेरोज़गारी का मुद्दा
आज का युवा भारत का भविष्य है, लेकिन उसे नौकरी मांगने पर “गैर-जिम्मेदार” या “असंतुष्ट” कहा जाता है। देश में बेरोज़गारी की समस्या बहुत बड़ी है। सरकारी आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि रोजगार के अवसर सीमित हो रहे हैं।
अगर युवा सोशल मीडिया, सड़कों, या अन्य मंचों पर अपनी आवाज़ उठाते हैं, तो उन्हें राजनीति से प्रेरित या “नकारात्मक सोच” वाला बता दिया जाता है। सवाल ये है कि अगर रोजगार की समस्या पर युवा नहीं बोलेंगे, तो क्या सिर्फ तारीफ ही की जानी चाहिए?
महंगाई और आम जनता का दर्द
महंगाई का असर हर नागरिक पर पड़ता है। पेट्रोल-डीजल, गैस सिलेंडर, सब्जियां, और अन्य ज़रूरत की चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। अगर कोई महंगाई पर बात करता है, तो उसे “सरकार विरोधी” कह दिया जाता है। महंगाई पर सवाल उठाना कोई गुनाह तो नहीं है। यह हर नागरिक का अधिकार है कि वह सरकार से जवाब मांगे। लेकिन जब इन मुद्दों को उठाने वालों को देशद्रोही या नकारात्मक सोच वाला बता दिया जाता है, तो यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत है।
आखिर सही कौन?
यह सवाल आज हर किसी के मन में है कि आखिर सही कौन है।
क्या सही वो हैं जो हर मुद्दे पर चुप रहते हैं?
क्या सही वो हैं जो सिर्फ सरकार की तारीफ करते हैं?
या सही वो हैं जो लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों के लिए सवाल उठाते हैं?
सही वही है जो देशहित के लिए सवाल उठाए, चाहे वह विपक्ष हो, किसान हो, युवा हो या आम नागरिक। लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है। सरकार का काम है इन सवालों का जवाब देना, न कि सवाल उठाने वालों को चुप कराना।
भारत का लोकतंत्र तब मजबूत रहेगा जब हर व्यक्ति अपनी बात स्वतंत्रता से कह सके। सवाल उठाना गलत नहीं है; गलत तब है जब सवालों को दबाया जाए। सही वही होगा जो देश की भलाई के लिए काम करेगा, चाहे वह कोई भी हो।
देश की मीडिया आज कर सत्ता के चरण वंदना करने में मशरूफ और अपना असली काम ओर जिम्मेदारी भूल गई।