Declining Standard In Indian Politics : भारतीय राजनीति में गिरते स्तर का मुद्दा आज कल खूब चर्चा में रहता है। वैसे तो इसके कई कारण और परिणाम हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
1. स्वार्थ और भ्रष्टाचार
स्वार्थी राजनीति: कई नेता व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीति में आते हैं, जिससे जनता के हितों की अनदेखी होती है। ओर उनको जनता के हितों से कोई वास्ता नहीं होता उन्हें बस पावर और पैसे से मतलब है। यही कारण है कि जनता के हालात नहीं सुधर रहे है।
भ्रष्टाचार: आर्थिक संसाधनों का दुरुपयोग, रिश्वतखोरी और काले धन का चलन अभी भी खूब जोर शोर से बढ़ बढ़ रहा है। काले धन को वापस लाने के लिए देश में बड़े बड़े कानून बनाए गए लेकिन हुआ कुछ नहीं आज भी खूब भ्रष्टाचार हो रहा है।
2. अनुशासनहीनता और विवादास्पद बयान
विवादास्पद बयानों का चलन: कई नेता अपने विवादास्पद बयानों से समाज में तनाव पैदा करते हैं, जिससे राजनीतिक वातावरण और बिगड़ता है। और अक्सर धर्मों के खिलाफ बयानबाजी और किसी एक धर्म को टारगेट करना ओर विवादास्पद बयान ओर समाज को बांटने की कोशिश में लगे रहते है। इससे समाज में तनाव बढ़ने लगता है और कभी -कभी इतना भयानक हो जाता है। ओर यह विवादास्पद बयान दंगों में तब्दील हो जाता है।
अनुशासनहीनता: राजनीतिक दलों में अनुशासन की कमी है, जिससे आंतरिक झगड़े और असहमति बढ़ती है।
3. भारतीय राजनीतिक में संस्कृति का परिवर्तन
राजनीतिक आदर्शों की कमी: पहले के समय में राजनीति में नैतिकता और सिद्धांत महत्वपूर्ण थे, लेकिन अब यह तेजी से कम हो रहा है। क्योंकि आज कल नेताओं को सेवा भाव से कोई वास्ता नहीं है वह सिर्फ स्वार्थ के लिए आते है।
जिम्मेदारी का अभाव: नेता अपने कार्यों के लिए जवाबदेह नहीं होते, जिससे लोकतंत्र कमजोर होता चला जा रहा है।
4. जनता की भागीदारी की कमी
जनता का विश्वास घटता जा रहा है: राजनीतिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी दिन पर दिन कम होती जा रही है, जिससे प्रतिनिधित्व की भावना कमजोर हो रही है। क्योंकि जब तक जनता अपनी दायित्व नहीं समझेगी और अच्छे नेताओं को नहीं चुनेगी तब तक राजनीति में कोई बदलाव नहीं होगा। ओर जनता का विश्वास ऐसे ही घटता जाएगा।
मतदाता शिक्षा का अभाव: चुनावी प्रक्रिया और मुद्दों को समझने में मतदाताओं की कमी है, जिससे सही उम्मीदवार का चयन मुश्किल हो रहा है। क्योंकि जब तक राजनीति दल और राजनेता जाती धर्म के नाम पर बांटते रहेंगे और मतदाता आसानी से ऐसे ही बांटते रहेंगे , मतदाता जब तक अपने विवेक से राजनेता नहीं चुनेंगे ऐसा अभाव तब तक रहेगा।
5. भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव
फर्जी समाचार और प्रोपेगैंडा: सोशल मीडिया पर फैलने वाली गलत सूचनाएं और नकारात्मक प्रचार राजनीति को और अधिक विवादास्पद बनाते हैं। आज कल के राजनीति में गिरावट आई है इसमें सबसे बड़ा हाथ भारत के टीवी और प्रिंट मीडिया का है। क्योंकि ये लोग अपना दायित्व निभा ही नहीं रहे क्योंकि जब यह लोग जनता के मूल भूत अधिकारों जैसे महंगाई, रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य पर बात ही नहीं करते यह सिर्फ सत्ता में बैठे लोगों को खिदमत और वाह वाही करते रहेंगे तब तक देश का भला नहीं हो सकता।
सेंसैशनलिज्म: मीडिया में सनसनीखेज खबरों का चलन नेताओं के व्यक्तिगत जीवन को अधिक महत्व देता है, जो राजनीतिक मुद्दों से ध्यान हटाता है। आज कल की मीडिया मुद्दों से परे ख़बरों को जनता को दिखाएगी तो लोकतंत्र रहेगा ही नहीं क्योंकि ज़रूरी खबरें छूट जाएगी।
6. भारतीय राजनीति में अवसरवादिता
दल बदलना: कई नेता चुनावी फायदे के लिए दल बदलते हैं, जिससे राजनीतिक स्थिरता में कमी आती है। आज कल राजनेताओं ने एक नया चलन शुरू कर दिया है। दल बदलने का क्योंकि सत्ता का मोह और चुनावी वादों को पूरा न करना ओर ज़मीन पर लड़ाई लड़ने की वजह वह सत्ता में क़ाबिज़ दलों में शामिल हो जाते ओर इसी तरह दल बदलते रहते है और मतदाता को गुमराह करते रहते है।
राजनीतिक गठबंधन: कई बार अस्थायी गठबंधन बनते हैं, जो वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सत्ता के लिए होते हैं। आज कल ये भी एक नया चलन शुरू हो गया है राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए गठबन्धन करते है और तोड़ते हैं।
इसका निष्कर्ष
राजनीति में गिरते स्तर को रोकने के लिए आवश्यक है कि नेता नैतिकता और जिम्मेदारी को अपनाएं। साथ ही, जनता को जागरूक रहना और सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। इसके अलावा, सुधारात्मक नीतियों और शिक्षा पर जोर देना बेहद ही जरूरी है।