बिहार के विधानसभा चुनाव हो चुके है और नई सरकार ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में शपथ ग्रहण भी हो चुका तो क्या सूबे में बेरोजगारी और पलायन (माइग्रेशन) मुद्दे पर मौजूदा सरकार ध्यान देगी या वही धाक के तीन पात। लेकिन हर चुनाव के बाद एक सवाल यह उठता है: क्या वाकई सरकारी नीतियाँ युवाओं की तस्वीर बदलने को तैयार हैं, या सिर्फ वादों का सिलसिला चलता रहेगा? मगर फिर वही सरकार बनी, क्या युवा वर्ग की तसवीर बदलेगी, पलायन रुकेगा या नहीं — आइए देखें ताज़ा तथ्य और भावनात्मक परिदृश्य।

बिहार में ताज़ा आर्थिक और सामाजिक तस्वीर: हक़ीक़तें और आंकड़े

1. उच्च युवाओं में बेरोजगारी

PLFS (Periodic Labour Force Survey) के अनुसार, बिहार में 15–29 साल के युवाओं की बेरोजगारी दर 23.2% है।

इसके साथ ही, राज्य में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन दर (LFPR) भी बहुत कम है: युवा वर्ग में जितने लोग नौकरी सीखने या खोजने की स्थिति में हैं, उनकी हिस्सेदारी सीमित है।

Forbes India की रिपोर्ट कहती है कि बिहार के लेबर मार्केट में औपचारिक और स्थिर रोज़गार की बहुत कमी है।

2. पलायन का विकराल चरित्र

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार अब भी दूसरे राज्यों की ओर पलायन में दूसरे नंबर पर है।

लगभग 3 करोड़ बिहारी वर्तमान में राज्य के बाहर काम कर रहे हैं — हर चार वयस्कों में से एक।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट में उल्लेख है कि 39% पलायन का कारण रोज़गार है, और बिहार का employment condition index (नौकरी की गुणवत्ता: वेतन, फॉर्मल/कैज़ुअल काम आदि) राज्य में सबसे नीचे है।

बिहार
बिहार से लोगों का पलायन की तस्वीर

3. सरकार की नई योजनाएं

पलायन के राजनीतिक दवाब में, NDA सरकार ने चुनी लड़ाई में लगभग ₹62,000 करोड़ की योजनाओं की घोषणा की है।

कौशल विकास (skill-training) केंद्रों, आईटी पार्क्स, और नौकरी देने की प्रतिबद्धता बढ़ाने की बातें सामने आ रही हैं। इंडिया टुडे की रिपोर्ट में ये उम्मीद जगी है कि ये कदम पलायन को पलट सकते हैं।

उद्योग मंत्री ने यह भी कहा है कि रिवर्स माइग्रेशन (पलायन का उल्टा प्रवाह) शुरू हो गया है — यानी बाहर गए बेरोज़गार युवा वापस आकर बिहार में काम करने लगे हैं।

4. रोज़गार उत्पादन लक्ष्य

एक रिपोर्ट कहती है कि बिहार “सात निश्चय-2” योजना के अंतर्गत 12 लाख सरकारी नौकरियों और 38 लाख अन्य रोजगार के अवसर बनाने का लक्ष्य रख रहा है।

हालांकि, सरकारी रोजगार ही एक समाधान नहीं है — क्योंकि राज्य की अर्थव्यवस्था में पूरक उद्योग (मैन्युफैक्चरिंग, सेकेंडरी सेक्टर) की हिस्सेदारी अभी सीमित है।

भावनात्मक और राजनैतिक परिप्रेक्ष्य

उम्मीद vs. हताशा

युवाओं में उम्मीदों का एक बड़ा सागर है। वे सपना देखते हैं कि “घर ही काम मिले, बाहर भागने की ज़रूरत न पड़े” — लेकिन अगर वादे सिर्फ चुनावी नारों तक सिमटे, तो ये हताशा गहरी हो जाएगी।

वोट की ताकत

युवा वोटर इस बार बहुत मुखर हैं। उन्हें सिर्फ भाषण नहीं चाहिए, असली काम चाहिए। उनकी पीड़ा यह है कि पिछली बार भी बहुत वादे हुए, लेकिन जीवन स्तर में वह बदलाव बिल्कुल वैसा न था जैसा दिखाया गया था।

परिवार और जड़ें

पलायन सिर्फ नौकरी का मामला नहीं है। जब युवा बाहर जाते हैं, तो परिवार टूटता है — न मजबूत जड़ी-जमीन मिल पाती है, न स्थायित्व। अगर सरकार योजनाओं के जरिए पलायन को पलट सके, तो यह सिर्फ आर्थिक जीत नहीं होगी, बल्कि संघर्ष करने वाले परिवारों की आत्मा की जीत होगी।

पूंजी और निवेश की लड़ाई

बिहार में स्थानीय उद्योगों की कमी ही पलायन का बड़ा कारण है। अगर सरकार नई औद्योगिकी नीति, निवेश बढ़ाने और छोटे-लघु उद्योगों (MSME) को बढ़ावा दे, तो यह युवाओं के लिए मकान ही नहीं, पट्टीदार खेत भी बना सकता है।

संभावित ख़तरे और चुनौतियाँ

यदि योजनाओं की घोषणाएं मात्र चुनावी वादा रह जाएँ और उनकी क्रियान्वयन कमजोर हो, तो पलायन में फिर बढ़ोतरी हो सकती है।

रिवर्स माइग्रेशन की बात होती है, लेकिन उसे टिकाऊ बनाने के लिए औपचारिक रोज़गार, उच्च वेतन, और स्थिर निवेश की ज़रूरत होगी — सिर्फ लौटना ही काफी नहीं।

कौशल प्रशिक्षण केंद्रों को बढ़ाना एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन उद्योगों का विस्तार भी उतना ही जरूरी है ताकि प्रशिक्षित युवाओं को नौकरी मिले, न कि वे फिर बाहर जाएँ।

राजनैतिक स्थिरता और नीति कंटिन्यूिटी मायने रखती है: यदि सरकार बदले या नीतियाँ बीच में बदलें, तो युवा भरोसा खो सकते हैं।

बिहार में एक सपना या हकीकत?

अगर फिर वही सरकार बनी, तो यह युवाओं के लिए दो रास्तों वाला मोड़ हो सकता है — एक जहाँ सिर्फ बड़े वादे और मंच की चमक है, और दूसरा जहाँ वास्तव में उनकी तसवीर बदल सके: पलायन कम हो, घरों में काम हो, और युवा बिहार की मिट्टी में अपनी जड़ें गहरा सकें।

यह परिवर्तन आसान नहीं होगा। लेकिन अगर सरकार जिम्मेदारी से, निरंतरता के साथ, और लगातार निवेश कर काम करे, तो यह सिर्फ एक सपना ही नहीं — हकीकत बन सकता है। बिहार का युवा तब सिर्फ “मज़दूर बाहर” न रह जाएगा, बल्कि निर्माता, उद्यमी, और राज्य का भविष्य बनकर आएगा।

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