रांची : शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति में आदिवासी अस्मिता की पहचान, संघर्ष और अधिकारों की लड़ाई का पर्याय रहे पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। 81 वर्षीय शिबू सोरेन ने अंतिम सांस ली और उनके निधन से पूरे झारखंड समेत देश भर में शोक की लहर दौड़ गई।
आदिवासी आवाज का सबसे बुलंद चेहरा
शिबू सोरेन को झारखंड में लोग प्यार से ‘गुरुजी’ कहकर पुकारते थे। वे न सिर्फ एक राजनेता थे, बल्कि आदिवासियों के हक और सम्मान की आवाज भी थे। उन्होंने झारखंड की मिट्टी के लिए वह लड़ाई लड़ी, जिसे आज भी हजारों आदिवासी याद करते हैं। भूमि अधिग्रहण से लेकर जंगल-जमीन के अधिकारों तक, हर मोर्चे पर शिबू सोरेन ने अपने लोगों का नेतृत्व किया।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव
1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। यह पार्टी सिर्फ एक राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि झारखंडी अस्मिता और संघर्ष का प्रतीक बन गई। लंबे संघर्ष के बाद जब 2000 में झारखंड को बिहार से अलग कर राज्य का दर्जा मिला, तो उसमें शिबू सोरेन की भूमिका ऐतिहासिक मानी जाती है।
शिबू सोरेन तीन बार बने मुख्यमंत्री
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। हालांकि उनका कार्यकाल कई बार राजनीतिक उठा-पटक से प्रभावित रहा, लेकिन जनता के बीच उनका सम्मान कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री के तौर पर भी सेवा दी थी।

एक जननायक का सादा जीवन
शिबू सोरेन का जीवन बेहद सादा रहा। उन्होंने कभी सत्ता को भोग नहीं बनाया, बल्कि सेवा का माध्यम समझा। आदिवासी समाज में उनकी पकड़ इतनी गहरी थी कि वे राजनीति के गुर नहीं, ज़मीन से जुड़े सरोकारों की भाषा बोलते थे।
समाज और राजनीति में अमिट योगदान
आदिवासियों के लिए आरक्षण और अधिकार की लड़ाई।
झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका।
जंगल-जमीन, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए आंदोलन।
उनका जीवन कई बार विवादों से भी घिरा, परंतु आम जनता के लिए वे हमेशा ‘गुरुजी’ ही रहे, जो उनके लिए लड़ते रहे।
शोक और श्रद्धांजलि
उनके निधन की खबर से झारखंड, बिहार, ओडिशा और बंगाल के आदिवासी क्षेत्रों में शोक की लहर दौड़ गई है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो उनके पुत्र भी हैं, ने कहा कि – “मेरे पिता सिर्फ मेरे नहीं, झारखंड के हर बेटे-बेटी के पिता समान थे। उनका जाना एक युग का अंत है।”
अंतिम संदेश
आज जब शिबू सोरेन हमारे बीच नहीं हैं, तो यह सिर्फ एक नेता का नहीं, बल्कि एक विचार, एक संघर्ष और एक सपने का अंत है, जिसे उन्होंने जीते हुए साकार किया। वे चले गए, लेकिन उनका संघर्ष, उनका सपना और उनका जज़्बा झारखंड की मिट्टी में हमेशा ही जिंदा रहेगा।
“गुरुजी “ को भावभीनी श्रद्धांजलि। झारखंड की आत्मा ने अपना प्रहरी खो दिया।