बिहार… देश का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक राज्य, जहां चंद्रगुप्त मौर्य और आर्यभट्ट जैसे महापुरुष पैदा हुए, वहीं आज यह राज्य कानून व्यवस्था की बदहाली को लेकर खूब चर्चा में है। एक समय था जब लोग कहने लगे थे – “सुशासन बाबू” आए हैं, अब बिहार में बदलाव होगा। लेकिन आज, जब हम 2025 की ओर खड़े हैं, तो एक सवाल सीना ठोक कर खड़ा है – क्यों बिहार में अपराध का ग्राफ थमने का नाम ही नहीं ले रहा?

2005 में बिहार का क्या था हाल?

साल 2005 में जब नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली, तो वादे बड़े-बड़े थे। जंगलराज को खत्म करना, कानून व्यवस्था दुरुस्त करना और अपराध पर लगाम लगाना। और सच कहा जाए तो शुरुआती वर्षों में थोड़ी राहत तो जरूर मिली।

2005 में हत्या के मामले: करीब 3,000

अपहरण: 5,000 से अधिक

सड़क लूट, रंगदारी, महिला उत्पीड़न – सब पर थोड़ी लगाम भी लगी थी।

लोगों को लगा, बिहार अब पटरी पर आ रहा है।

2010 के बाद धीरे-धीरे फिर लौटने लगा ‘अंधेरा’

2010 के बाद जैसे-जैसे सत्ता में स्थिरता आई, वैसे-वैसे अपराधियों का हौसला भी खूब बुलंद और बढ़ता गया। पुलिस-प्रशासन एक बार फिर ‘पुराने ढर्रे’ पर लौटने लगा।

अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा।

थानों में भ्रष्टाचार खुलकर होने लगा।

पुलिस जांच से ज़्यादा “मिलीभगत” में दिखने लगी।

⚠️ बिहार में 2020 से 2025: कानून व्यवस्था का गिरता ग्राफ

अब आते हैं हाल की तस्वीर पर…
2020 से 2025 के बीच बिहार में अपराध और भी भयानक रूप लेने लगे।

कुछ प्रमुख आंकड़े:

(बिहार सरकार व NCRB रिपोर्ट्स के अनुसार)

2020 में हत्या के मामले: 3,400+

2023 में हत्या: 3,700+

2024 में अपहरण: 9,000+

2025 (अब तक):

हत्या: लगभग 1,800 (6 महीने में)

महिला अपराध: हर दिन औसतन 40 मामले

शराबबंदी के बाद अवैध धंधे और तस्करी में जबरदस्त उछाल

शराबबंदी – एक कानून, जो बना अपराध का कारण!

2016 में जब शराबबंदी लागू हुई, तो सरकार ने इसे सामाजिक सुधार बताया, लेकिन हकीकत ये है कि…अवैध शराब का कारोबार तेजी से फैल गया।

पुलिस और माफियाओं की मिलीभगत से गांव-गांव में शराब बिकने लगी।

कई जिलों में जहरीली शराब से सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं।

राजनीतिक संरक्षण और जातिगत अपराध
आज भी नेताओं के गुर्गे खुलेआम रंगदारी वसूलते हैं।

जमीन कब्जा, हत्या, बलात्कार जैसे मामलों में सत्ता पक्ष के लोग बच निकलते हैं।

जातीय तनाव और पंचायत चुनावों के समय बड़े पैमाने पर हिंसा होती है।

प्रशासनिक लापरवाही और पुलिस की कमजोरी

बिहार में अभी भी 1 लाख से ज्यादा पुलिस पद खाली हैं।

केस दर्ज नहीं होता, या होता भी है तो चार्जशीट सालों तक नहीं।

पीड़ित कोर्ट और थाने के चक्कर लगाता है, अपराधी मुस्कुराता है।

हाल के कुछ चर्चित आपराधिक मामले (2023–2025)
वैशाली में सड़क हादसा, जिसमें 5 मौतें – पुलिस की देरी और अव्यवस्था।

बेगूसराय में रंगदारी न मिलने पर गोलीबारी।

गया में गैंगरेप और प्रशासन की चुप्पी।

जनता का दर्द और गुस्सा

बिहार का युवा बेरोजगार है, पढ़ा-लिखा है, लेकिन डर में जी रहा है। माता-पिता बेटियों को कॉलेज भेजने से डरते हैं। व्यापारी दुकान खोलने से पहले सोचना पड़ता है – “आज कुछ उगाही न हो जाए।”

2015-2020: महागठबंधन से लेकर NDA की वापसी, लेकिन अपराध पर ब्रेक नहीं
2015 में लालू-नीतीश का महागठबंधन आया, फिर NDA की वापसी हुई।

बिहार

मगर इन राजनीतिक उलटफेरों के बीच अपराध बढ़ता रहा:

• पटना, मुजफ्फरपुर, गया, और भागलपुर जैसे शहर अपराध के हॉटस्पॉट बन गए।
• 2019 में बलात्कार के 1450 से ज्यादा केस दर्ज हुए।
• हत्या के 3200 से ज्यादा मामले सामने आए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, बिहार कई सालों से टॉप 5 अपराध-ग्रस्त राज्यों में बना हुआ है।
2020-2025: शराबबंदी और उसका उल्टा असर
2016 में शराबबंदी लागू हुई। नीतीश कुमार ने इसे महिलाओं की सुरक्षा और घरेलू शांति का कदम बताया।

पर सच्चाई ये रही:

• शराब माफियाओं का जन्म हुआ।
• पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से अवैध धंधा बढ़ा।
• शराबबंदी के नाम पर गरीबों को फंसाया गया, असली खिलाड़ी आज़ाद रहे।

  • जिस प्रकार पटना में गोली बारी की घटना हुआ है।
  • बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के घर के बाहर जो घटना हुआ है अब आप समझ लीजिए कि जनता कितना सुरक्षित होगी।

बिहार

तो आखिर क्या है समाधान?

राजनीति से अपराधियों की सफाई (जो आसान नहीं)

पुलिस सुधार और संसाधनों में वृद्धि

फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़े

जवाबदेही तय हो – मंत्री हो या थानेदार

जनता को भी अब डर नहीं, सवाल उठाना होगा।

क्या ये समाधान है?

1. पुलिस सुधार: नए भरती और जवाबदेही तय हो।
2. बेरोजगारी दूर करें: युवाओं को काम मिलेगा तो अपराध कम होगा।
3. राजनीति से अपराधी बाहर हों: चुनाव आयोग को सख्ती से काम लेना चाहिए।
4. शराबबंदी की समीक्षा हो: नीति में सुधार जरूरी है।

✍️ सवाल अब भी जिंदा है

2005 से लेकर 2025 तक का ये बीस साल का सफर बताता है कि शासन आया, बदला, फिर ढीला पड़ा। बिहार की तस्वीर बदली नहीं, बल्कि अपराध ने नए चेहरे पहन लिए।

2005 से 2025 तक की यात्रा में बिहार ने विकास के साथ-साथ अपराध की मार भी झेली है। नेता बदलते रहे, वादे होते रहे — पर हालत ये है कि लोग अब खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। जरूरत है अब “विकास” से पहले “सुरक्षा” की।

अब वक्त है, जब जनता कहे – ‘कानून राज चाहिए, बहानों की राजनीति नहीं।’

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