जब से मंगनीलाल मंडल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, तब से बिहार की सियासत में एक नई हलचल देखने को मिल रही है। खासकर दलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा वर्ग के लोगों में जो उम्मीदें कहीं धुंधला रही थीं, वो अब दोबारा जाग उठी हैं।
समाज का भरोसा क्यों बढ़ा?
मंगनीलाल मंडल का खुद का राजनीतिक सफर एक संघर्ष की मिसाल है। वो खुद भी समाज के उस वर्ग से आते हैं, जिसे दशकों तक हाशिये पर रखा गया। लेकिन अपनी मेहनत, साफ-सुथरी छवि और जनसंवेदनशीलता के बल पर उन्होंने जो जगह बनाई है, वो आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है।
उनके अध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी में जो सामाजिक समीकरण बदले हैं, वो अब साफ इशारा करते हैं कि अब सिर्फ सत्ता की राजनीति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की लड़ाई भी प्राथमिकता है।
गरीब, वंचित और ग्रामीण वर्ग को मिल रही आवाज
राजद के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर मंगनीलाल मंडल ने लगातार ऐसे कार्यक्रमों में भागीदारी की है, जो ग्रामीण, गरीब और मेहनतकश जनता से सीधे जुड़े हैं। चाहे वह अतिपिछड़ा सम्मेलन हो, दलित सम्मान समारोह हो या फिर पंचायत स्तर की बैठकें—उन्होंने हर मंच से सामाजिक न्याय और बराबरी की बात की है।

भावनात्मक जुड़ाव और ज़मीनी काम
आज भी बिहार के गाँव-गाँव में लोग यह कहते मिल जाते हैं कि “हमरा नेता अब हमरा भाषा में बोले लागल बा, हमरा बात समझे लागल बा।”
यह केवल राजनीतिक बयान नहीं, यह उन लोगों की भावनाएं हैं जिन्हें पहली बार लग रहा है कि कोई नेता सच में उनके लिए खड़ा है।
मंगनीलाल मंडल ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही यह साफ कर दिया कि उनका मकसद सिर्फ संगठन को मजबूत करना नहीं, बल्कि समाज के उस तबके को ताकत देना है जो अब तक सिर्फ वोट बैंक समझा जाता था।
राजनीतिक रणनीति या सामाजिक क्रांति?
राजनीति के जानकार मानते हैं कि मंगनीलाल मंडल का उभार केवल पार्टी का आंतरिक मामला नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा बदलने वाला कदम हो सकता है। अगर इसी तरह से दलित, पिछड़ा और अतिपिछड़ा समाज को पार्टी के साथ जोड़ने का काम होता रहा, तो आने वाले चुनावों में इसका असर साफ दिखेगा।
मंगनीलाल मंडल के नेतृत्व में राजद अब एक नई सामाजिक क्रांति की तरफ
मंगनीलाल मंडल का प्रदेश अध्यक्ष बनना केवल एक पद परिवर्तन नहीं था। यह सामाजिक बदलाव का संकेत है, जिसमें हाशिये पर खड़े लोगों को केंद्र में लाने की कोशिश हो रही है।
उनके नेतृत्व में राजद अब एक नई सामाजिक क्रांति की तरफ बढ़ती दिख रही है, जहाँ सिर्फ सत्ता नहीं, बल्कि सम्मान और अधिकार की भी बात हो रही है।