बिहार – ये वही मिट्टी है जिसने देश को बड़े-बड़े नेता, IAS, IPS और देश के पहले राष्ट्रपति तक दिए। यही बिहार हर साल बाढ़ की त्रासदी झेलता है, लेकिन अफसोस की बात है कि न देश की मीडिया में आवाज़ उठती है और न ही केंद्र सरकार के स्तर पर कोई ठोस कदम नज़र आता है। पंजाब, कश्मीर, हिमाचल या उत्तराखंड में बाढ़ या आपदा आती है तो देशभर में शोक और मदद की लहर दौड़ जाती है। मगर बिहार की बाढ़? उस पर शायद ही कभी गंभीर बहस होती है।

बिहार में हर साल दोहराई जाने वाली त्रासदी

गंगा, कोसी, बागमती, गंडक जैसी नदियां जब उफान मारती हैं तो बिहार का आधा हिस्सा जलमग्न हो जाता है। लाखों लोग बेघर हो जाते हैं, मवेशी बह जाते हैं, खेत-खलिहान बर्बाद हो जाते हैं। बाढ़ के पानी में गांव का गांव डूब जाता है और हज़ारों परिवार महीनों तक ऊंचे बांधों और तिरपाल के सहारे जीने को मजबूर हो जाते हैं।

लेकिन यह सवाल आज भी अनुत्तरित है – क्या वजह है कि हर साल यही कहानी दोहराई जाती है और कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाता?

बिहार

आंकड़े चीख-चीख कर बताते हैं सच्चाई

बिहार देश के उन राज्यों में से एक है जहां सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित जिले हैं – लगभग 38 में से 28 जिले हर साल बाढ़ की मार झेलते हैं।

अनुमान है कि बिहार की करीब 70% आबादी सीधे-सीधे बाढ़ की चपेट में आती है।

करोड़ों का नुकसान हर साल सरकार गिनाती है, लेकिन राहत और पुनर्वास योजनाएं महज़ कागजों तक सीमित रह जाती हैं।

देश और सरकार की खामोशी

सवाल यह भी है कि जब उत्तर भारत के दूसरे हिस्सों में बाढ़ आती है तो NDRF से लेकर एयरफोर्स तक तुरंत एक्टिव हो जाती है। मदद के ट्रक, फंड और मीडिया कवरेज सबकुछ वहां दिखता है। मगर बिहार में लोग अपनी नाव और बांस की बल्लियों के सहारे ज़िंदगी बचाते हैं।

क्या बिहार के लोगों का दर्द बाकी देश से कम है? या फिर राजनीतिक प्रभाव की कमी की वजह से बिहार की बाढ़ हमेशा “लो-प्रायोरिटी” लिस्ट में डाल दी जाती है?

इंसानी दर्द

सोचिए, एक बच्चा जो पढ़ाई करने के सपने देख रहा था, उसका स्कूल बाढ़ के पानी में डूब गया। एक किसान जिसने सालभर मेहनत कर धान बोया, उसका खेत नदी बहा ले गई। एक बुजुर्ग जिसने घर बनाया, उसका आशियाना मलबे में बदल गया। और इन सबके बीच सरकार केवल घोषणा करती रह जाती है – “हम मदद करेंगे, पैकेज देंगे।”

लेकिन ये मदद ज़मीन पर कब उतरती है, ये किसी को नहीं पता।

2025 का बाढ़-परिस्थिति का ताज़ा जायज़ा

विषय  और विवरण
प्रभावित लोग अगस्त 2025 तक कम-से-कम 17 लाख लोगों पर बिहार के लगभग 10 जिलों में बाढ़ का प्रभाव पड़ा है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं, जिनमें भागलपुर (Bhagalpur), पटना और अन्य कई जिले शामिल हैं।

जिले और क्षेत्र – प्रभावित जिलों में शामिल हैं Bhagalpur, Munger, Begusarai, Vaishali, Bhojpur, Khagaria, Patna आदि।

नदी स्तर और खतरा

कई नदियाँ जैसे Ganga, Kosi, Bagmati, Burhi Gandak, Punpun आदि खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

मृत्यु और क्षति कम-से-कम 12 लोगों की मौत हुई हो-रही रिपोर्टों में (जिला-स्तर पर drowning आदि)

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मृतों की संख्या 153 को पार कर गई है, जब बाढ़ हालात बिगड़े हैं।

बचाव तथा राहत कार्य NDRF और SDRF की टीमें मोर्चे पर हैं।

स्थानीय प्रशासन ने इवैक्यूएशन, तटबंध और बाँध मॉनिटरिंग बढ़ा दी है। नदी किनारे बसे इलाकों में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने की पहल हो रही है।

जलस्तर की निगरानी और चेतावनी प्रणाली सक्रिय हैं; कई बाँधों की गेटें खोल दी गईं ताकि अतिरिक्त पानी का दबाव कम हो सके।

केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में लगभग 30 रिवर मॉनिटरिंग स्टेशन “severe flood range” में हैं।

नदी-नालों के किनारे या तटीय इलाकों, बाँधों के पास, नदी गाँवों और नीचले इलाके विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हैं।

बचाव तथा राहत कार्य NDRF और SDRF की टीमें मोर्चे पर हैं।

स्थानीय प्रशासन ने इवैक्यूएशन, तटबंध और बाँध मॉनिटरिंग बढ़ा दी है। नदी किनारे बसे इलाकों में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने की पहल हो रही है।

जलस्तर की निगरानी और चेतावनी प्रणाली सक्रिय हैं; कई बाँधों की गेटें खोल दी गईं ताकि अतिरिक्त पानी का दबाव कम हो सके।

सरकारी रवैया एवं चुनौतियाँ प्रभावित जिलों की संख्या वृद्धि, राहत सामग्री की वितरण में देरी, बुनियादी ढाँचे को क्षति, गाँवों-गाँवों में संपर्क टूटना, बिजली एवं पानी सेवाएँ बाधित होना जैसी समस्याएँ आम हैं।

हालांकि राज्य सरकार ने कुछ वित्तीय पैकेज जारी किए हैं, लेकिन लोगों की असमय जरूरतों (आवास-राहत, स्वास्थ्य, पेयजल) पूरी तरह नहीं पहुँच पा रही।

अब और खामोशी क्यों?

आज वक्त है कि देश इस सवाल को गंभीरता से ले – क्यों बिहार की बाढ़ को एक “नेचुरल डिजास्टर” मानकर हर साल की तरह इग्नोर किया जाता है? क्यों नहीं कोई नेशनल पॉलिसी बनती जो बिहार की बाढ़ को स्थायी समाधान दे सके – चाहे वो डैम, ड्रेनेज सिस्टम हो या नेपाल के साथ बेहतर वॉटर मैनेजमेंट?

क्योंकि जब तक बिहार के दर्द को देश का दर्द नहीं माना जाएगा, तब तक हर साल वही तस्वीरें दोहराई जाएंगी – बच्चे नाव पर किताब लेकर बैठे, मांएं बच्चों को गोद में लेकर ऊंचे बांधों पर रात गुजार रही, और किसान बर्बादी की लकीरें माथे पर लिए भगवान को पुकार रहे।

बिहार की बाढ़ अब सिर्फ बिहार का मुद्दा नहीं रहना चाहिए। यह भारत की आत्मा का मुद्दा है। और जब तक देश खामोश रहेगा, तब तक बिहार डूबता रहेगा।

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