एवीएन न्यूज डेस्क बिहार: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट आखिरकार जमीन पर आ गया है। मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने गांधी जयंती पर पटना में प्रेस कांफ्रेंस कर रिपोर्ट जारी की है। उन्होंने रिपोर्ट को लेकर तमाम बिंदुओं और पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी है।
सोमवार को मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने यह रिपोर्ट जारी कर दिया है। बिहार में सामान्य वर्ग के लोगों की आबादी 15 प्रतिशत है। पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी करीब 20 फीसदी है। नीतीश कुमार सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट में यह बात आयी है।
बिहार में 81.99 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू की हैं
. बिहार में 81.99 प्रतिशत यानी लगभग 82 प्रतिशत हिंदू हैं।
. इस्लाम धर्म के मानने वालों की संख्या बिहार मै 17.7% प्रतिशत है।
. शेष ईसाई सिख बौद्ध जैन या अन्य धर्म मानने वालों की संख्या 1 प्रतिशत से भी कम है।
बिहार में 2146 लोगों ने अपना कोई भी धर्म नहीं बताया है।
बिहार में जब भारतीय जनता पार्टी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी सत्ता यानी सरकार में थी, तभी बिहार विधानसभा और विधान परिषद ने राज्य में जाति आधारित गणना कराए जाने का प्रस्ताव पारित किया था। कोरोना की स्थिति संभालने के बाद 1 जून 2022 को सर्वदलीय बैठक में जाति आधारित जनगणना को सर्वसम्मति से करने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है.
आइए जानते है, किस वर्ग की कितनी आबादी
सामान्य वर्ग – 15.52%
पिछड़ा वर्ग- 27.12%
ओबीसी – 36.1%
अनूसूचित जाति- 19.65%
अनुसूचित जनजाति – 1.68%
आइए अब जानते है, किस जाति की कितनी आबादी
ब्राह्मण- 3.67%
राजपूत- 3.45%
भूमिहार- 2.89%
कायस्थ – 0.60%
यादव – 14.26 %
कुरमी- 2.87%
तेली- 2.81%
मुसहर- 3.08%
सोनार-0.68%
धर्म के आधार पर भी बिहार में सामने आया आंकड़ा
धर्म के आधार पर भी बिहार में सामने आया आंकड़ा
दो चरणो में पूरी हुई थी जाति आधारित गणना
आप को बता दें कि बिहार में जाति आधारित जनगणना का पहला चरण 7 जनवरी से शुरू हुआ था। इस चरण में मकानों को गिना गया था। यह चरण 21 जनवरी 2023 को पूरा कर लिया गया था। वहीं 15 अप्रैल से दूसरा चरण यानी फेस की गणना की शुरुआत हुई। इसे 15 मई को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन, मामला कोर्ट में चला गया था। इसके बाद पटना हाईकोर्ट ने जाति गणना पर रोक लगा दिया था। बाद में फिर पटना हाईकोर्ट ने ही जाति आधारित गणना को हरी झंडी दी। दूसरे चरण में परिवारों की संख्या, उनके रहन-सहन, आय आदि के आंकड़े जुटाए गए। इसके बाद मामला सुप्रीमो कोर्ट में भी गया। लेकिन, सुप्रीमो कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।